सादर अभिवादन..
मार्च की हमारी अंतिम प्रस्तुति
दंगल शुरु है आरोप-प्रत्यारोपों का
रहेगा चालू मई माह तक...
मजा लेते रहिए...पर अफवाहों से
जरूर सतर्क रहिए....
शुरू करते हैं रचनाओं का दौर.....
सौतेली ......... साहसिक कथा
"आंटी, दादी कह रही हैं कि आपसे चोटी बनवा लूँ।" तरु डरती हुई बोली।
"तो ठीक है इसमें डरने की क्या बात है, आओ मैं बना देती हूँ।" उसे पकड़ कर कुर्सी पर बैठाते हुए उर्मी बोली।
चोटी बनाकर उसके कोमल किन्तु खुश्की से रूखे कपोलों को देखकर उर्मी बोली- "चेहरे पर कुछ नहीं लगाया, देखो त्वचा कितनी सूख गई है!" कहकर उसने लोशन निकालकर उसके चेहरे और हाथ पैरों पर अच्छी तरह से लगाया, फिर उसके होठों पर बाम लगाया और पूरी तरह तैयार करके उसे भेज दिया।
उसका यह स्नेहिल अपनापन पाकर तरु मन ही मन खिल गई, परंतु बाल सुलभ संकोच और अनजानेपन के कारण कुछ कह न सकी।
उसके चेहरे के परिवर्तन को सुहास ने भी महसूस किया।
अभिनय ....
त्योहारों में मन जतन से शामिल होने
पकवानों को कभी खाते, कभी बनाने
दोस्तों के संग धौल-धप्पा करने
बेवजह की बातों में रूठ जाने
और फिर खुद ही मान जाने में
वो भी क्या दिन थे ...
वो भी क्या दिन थे ना
जब तुम्हारे घर के पचिसो चक्कर लगाया करते थे
वो भी क्या दिन थे ना
जब जम कर हम होली खेला करते थे
वो भी क्या दिन थे न
जब ईद में घर जा जा कर मिला करते थे
मन्दिर नही जाना पड़ेगा .....
'गुरुदेव 'की मानों तो
घर में बना लो अगर शांति तो
मन्दिर नही जाना पड़ेगा
सुबहो-शाम
हम कहाँ जा रहे हैं ?
हिन्दोस्तां विज्ञान छोड़कर, मंदिर मस्जिद बना रहे हैं,
विकास का मार्ग छोड़ कर, हम मध्य युग में जा रहे हैं |
टीवी चैनल दिन और रात सदाचार का करते कलरव
किंतु देश में बलात्कार का, होता रहता प्रतिदिन तांडव |
उलूकिस्तान की खबर...
तोते को
कितना भी
सिखा लो
चोर चोर
चिल्लाना
चोरों के
मोहल्ले में तो
इसी
बात को
कुर्सी में
बैठने का
शगुन माना
जाता है ।
आज तनिक से कुछ
ज़ियादा ही हो गया
अब बस भी कर...
यशोदा
मार्च की हमारी अंतिम प्रस्तुति
दंगल शुरु है आरोप-प्रत्यारोपों का
रहेगा चालू मई माह तक...
मजा लेते रहिए...पर अफवाहों से
जरूर सतर्क रहिए....
शुरू करते हैं रचनाओं का दौर.....
सौतेली ......... साहसिक कथा
"आंटी, दादी कह रही हैं कि आपसे चोटी बनवा लूँ।" तरु डरती हुई बोली।
"तो ठीक है इसमें डरने की क्या बात है, आओ मैं बना देती हूँ।" उसे पकड़ कर कुर्सी पर बैठाते हुए उर्मी बोली।
चोटी बनाकर उसके कोमल किन्तु खुश्की से रूखे कपोलों को देखकर उर्मी बोली- "चेहरे पर कुछ नहीं लगाया, देखो त्वचा कितनी सूख गई है!" कहकर उसने लोशन निकालकर उसके चेहरे और हाथ पैरों पर अच्छी तरह से लगाया, फिर उसके होठों पर बाम लगाया और पूरी तरह तैयार करके उसे भेज दिया।
उसका यह स्नेहिल अपनापन पाकर तरु मन ही मन खिल गई, परंतु बाल सुलभ संकोच और अनजानेपन के कारण कुछ कह न सकी।
उसके चेहरे के परिवर्तन को सुहास ने भी महसूस किया।
अभिनय ....
त्योहारों में मन जतन से शामिल होने
पकवानों को कभी खाते, कभी बनाने
दोस्तों के संग धौल-धप्पा करने
बेवजह की बातों में रूठ जाने
और फिर खुद ही मान जाने में
वो भी क्या दिन थे ना
जब तुम्हारे घर के पचिसो चक्कर लगाया करते थे
वो भी क्या दिन थे ना
जब जम कर हम होली खेला करते थे
वो भी क्या दिन थे न
जब ईद में घर जा जा कर मिला करते थे
मन्दिर नही जाना पड़ेगा .....
'गुरुदेव 'की मानों तो
घर में बना लो अगर शांति तो
मन्दिर नही जाना पड़ेगा
सुबहो-शाम
हम कहाँ जा रहे हैं ?
हिन्दोस्तां विज्ञान छोड़कर, मंदिर मस्जिद बना रहे हैं,
विकास का मार्ग छोड़ कर, हम मध्य युग में जा रहे हैं |
टीवी चैनल दिन और रात सदाचार का करते कलरव
किंतु देश में बलात्कार का, होता रहता प्रतिदिन तांडव |
उलूकिस्तान की खबर...
तोते को
कितना भी
सिखा लो
चोर चोर
चिल्लाना
चोरों के
मोहल्ले में तो
इसी
बात को
कुर्सी में
बैठने का
शगुन माना
जाता है ।
आज तनिक से कुछ
ज़ियादा ही हो गया
अब बस भी कर...
यशोदा
सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं बेहतरीन
ReplyDeleteहमेशा की तरह सराहनीय रचनाओं से सजा मुखरित मौन का यह अंक भी बेहद लाज़वाब है दी..👌👌
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन संकलन ।
ReplyDeleteसुन्दर मुखरित मौन प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' पर नजरे इनायत के लिये।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मुखरित मौन...
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं का संकलन ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का साप्ताहिक अंक
ReplyDeleteमुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार ...जी सादर
बेहतरीन रचनाओं का साप्ताहिक अंक
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