टूटता शरीर...
खाया-पिया कुछ नहीं
और ग्लास भी टूटा...
खैर..उत्सव है और
खास उत्सव है...
नजरअंदाज नही न कर सकते...
आइए एक नज़र...
फागुन की मनुहार सखी री
उपवन पड़ा हिंडोला
चटक नशीले टेसू ने फिर
प्रेम रंग है घोला
दस्तक से पहले ....शान्तनु सान्याल
हमेशा की तरह फिर हाथ हैं ख़ाली, अंजुरियों
से जो गुज़र गए उनका अफ़सोस नहीं,
कुछ नेह रंग यूँ घुले मेरी रूह में
कि चाह कर भी अब उनसे
निजात नहीं, न जाने
कितनी बार ओढ़ी
है ख़्वाबों के
पैरहन,
एकदिन ये भी हैं..... रवीन्द्र भारद्वाज
सपने टूटें
शीशे जैसे
कि जुड़ना भी मुश्किल
तुम रूठे
पर्वत जैसे
कि बात करना भी मुश्किल
रंगों की होली ....डॉ. जेन्नी शबनम
रंगो की होली
गाँठ मन की खोली
प्रीत बरसी।
पावन होली
मन है सतरंगी
सूरत भोली।
भारत का भविष्य ......अभिलाषा चौहान
प्रगति मैदान में
शायद कोई मेला लगा था।
एक ओर,
एक नेता
भारत की प्रगति पर,
भाषण दे रहा था।
एक ओर,एक बच्चा
हाथ में कटोरा लिए खड़ा था।
राधा कृष्ण की होली.......आँचल पाण्डेय
जा रे हट सरपट तू बड़ा नटखट
खेलूँ ना तुम संग होली
तुम छलिया मैं भोली किशोरी
जमे ना अपनी जोड़ी
अरे फगुआ के संग झूम ले तू भी
बरसाने की छोरी
काले के संग हो जा काली
छोड़ दे चमड़ी गोरी
आज बस..
आज्ञा दें
यशोदा
आज के अंक की प्रकाशन सूचना नहीं दी गई है
दस्तक से पहले ....शान्तनु सान्याल
हमेशा की तरह फिर हाथ हैं ख़ाली, अंजुरियों
से जो गुज़र गए उनका अफ़सोस नहीं,
कुछ नेह रंग यूँ घुले मेरी रूह में
कि चाह कर भी अब उनसे
निजात नहीं, न जाने
कितनी बार ओढ़ी
है ख़्वाबों के
पैरहन,
एकदिन ये भी हैं..... रवीन्द्र भारद्वाज
सपने टूटें
शीशे जैसे
कि जुड़ना भी मुश्किल
तुम रूठे
पर्वत जैसे
कि बात करना भी मुश्किल
रंगों की होली ....डॉ. जेन्नी शबनम
रंगो की होली
गाँठ मन की खोली
प्रीत बरसी।
पावन होली
मन है सतरंगी
सूरत भोली।
भारत का भविष्य ......अभिलाषा चौहान
प्रगति मैदान में
शायद कोई मेला लगा था।
एक ओर,
एक नेता
भारत की प्रगति पर,
भाषण दे रहा था।
एक ओर,एक बच्चा
हाथ में कटोरा लिए खड़ा था।
राधा कृष्ण की होली.......आँचल पाण्डेय
जा रे हट सरपट तू बड़ा नटखट
खेलूँ ना तुम संग होली
तुम छलिया मैं भोली किशोरी
जमे ना अपनी जोड़ी
अरे फगुआ के संग झूम ले तू भी
बरसाने की छोरी
काले के संग हो जा काली
छोड़ दे चमड़ी गोरी
आज बस..
आज्ञा दें
यशोदा
आज के अंक की प्रकाशन सूचना नहीं दी गई है
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति पर होली पर किसी शानदार आलेख की कमी रही.. सभी रचनाएं मौन को मुखरित करती।
ReplyDeleteभुमिका में झलकती थकावट या समय की कमी जो स्वाभाविक है त्योहारों में अति व्यस्तता के चलते ।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर साप्ताहिक अंक
ReplyDeleteउम्दा रचनाएं
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिये जी सह्दय आभार...
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति, सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार,रच रचनाकारों को हार्दिक बधाई
ReplyDeleteवाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteशानदार रचनाएँ
सभी को खूब बधाई
हमारी रचना को आपने स्थान दिया इसके लिए हृदयतल से हार्दिक आभार आपका
सादर नमन शुभ संध्या
दीदी सुंदर साप्ताहिक अंक
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