Saturday, March 2, 2019

29...जमीन की सोच है, फिर क्यों, बार बार हवाबाजों में फंस जाता है

मार्च का महीना....दूसरा दिन
बीते फरवरी में
आया था एक ज़लज़ला
हवाबाजों ने ढाया था कहर
शानदार तेरहवीं मनाई गई थी
शहीदों की....
शहीदानियों का अभिशाप ही था
जो ज़मींदोज हो गए पापी..
कुल मिला कर शान्ति है अब तक


चलिए आगाज़ करते है आज के अंक का

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

रंग मुस्कुराहटों का ....

हर सिम्त आईना शहर में लगाया जाये
अक्स-दर-अक्स सच को उभरना होगा

मुखौटों के चलन में एक से हुये चेहरे
बग़ावत में कोई हड़ताल न धरना होगा

सियासी बिसात पर काले-सादे मोहरे हम
वक़्त की चाल पर बे-मौत भी मरना होगा

तुम निश्चिन्त रहना ..... 

धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम
छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना

जीने की वज़ह दे दो ......

टूटे  इस  रिश्ते  में, आ  कर के  गिरह  दे दो
शिकवों को संग लाओ, लंबी सी जिरह दे दो

अश्कों  से  भरी आँखें, ग़मगीन  सी  हैं  रातें
शामों में हो शामिल, मुझे अपनी सुबह दे दो

खबर-ए-उलूकिस्तान

पर क्या 
किया जाय 
आज 
हवा बनाने 
वालों को ही 
ताजो तख्त 
दिया जाता है 

जमीन 
की बात 
करने वाला 
सोचते सोचते 
एक दिन 
खुद ही 
जमींदोज 
हो जाता है ।

सोचती हूँ कि कुछ और लिख दूँ
पर अब बस करती हूँ
यशोदा














7 comments:

  1. संग्रहनीय संकलन
    सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना

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  2. बहुत सुंदर रचनाओं का संकलन

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  3. सराहनीय प्रस्तुतिकरण ।

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  4. आभार यशोदा जी । सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीया यशोदा दी
    सादर

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  6. सुन्दर रचनाओं का संकलन...।

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  7. बेहतरीन साप्ताहिक अंक
    उम्दा रचनाएँ
    ढेरो शुभकामनाएं आदरणीया आपको
    सरोज जी की रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार
    सादर

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