सादर अभिवादन...
मार्च भी निकलने को है
रोक सकता है कोई तो रोक ले
वक्त किसके रोके रुका है
वक्त स्वयं नही रोक सकते वक्त को
सादर...
जीवन-चक्र ......
निर्जीव,बिखरते पत्तों की
खड़खडाहट पर अवश खड़ा
शाखाओं का कंकाल पहने
पत्रविहीन वृक्ष
जिसकी उदास बाहें
ताकती हैं
सूखे नभ का
निर्विकार चेहरा
हंस रहा है कोई रो रहा है ...
कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है
कोई ताक में है किसी को है गफ़लत
कोई जागता है कोई सो रहा है
खूबसूरत धुंध....
मेरी अखियों में वो ख्वाब सुनहरा था
मेरे ख्वाब को कोमल पंखुड़ियों ने घेरा था
वदन को उसका आज इंतजार गहरा था
खिंचने लगी बिन डोर उसकी श्वांसों की ओर
मेरी श्वासों ने चुना वो शख्स हीरा था
मानवता ........
अनाज के कुछ दानें पक्षिओं के हिस्सें में जाने लगे,
अपने हिस्सें की एक रोटी गाय को खिलाने लगे ,
प्यास से अतृप्त सूख़ रहे पेड़, लोग पानी पिलाने लगे ,
कुछ ने बधाया ढाढ़स, कुछ अस्पताल ले जाने लगे ,
मुक़म्मल मोहब्बत की दास्तान ............
पर मैं कोशिश कर रहा हूँ ,
जिंदगी को साथ लेकर चलने की,
तुम्हें साथ लेकर चलने की।
एक दिन होगी मुलाकात,
फिर वही नहर के किनारे,
शाम के डूबते किरण के साथ।
और फिर से हमारा प्यार मुकम्मल हो जाएगा।
वजह क्या थी ....
वजह क्या थी छोटे वस्त्र पहने थे
नहीं
इंसानियत
मर चुकी थी
वहशी दरिंदों की
वासना में लिप्त थे
तभी तो नहीं दिखी थी
उन्हे नन्ही कली नाजों से पली
चलते-चलते कुछ हटके
पहले दिन
की खबर
दूसरे दिन
मिर्च मसाले
धनिये से
सजा कर
परोसी गई
होती है
‘उलूक’ से
होना कुछ
नहीं होता है
हमेशा
की तरह
उसके पेट में
गुड़ गुड़ हो
रही होती है
आज की प्रस्तुति बस यहीं तक
फिर मिलेंगे
सादर
यशोदा
मार्च भी निकलने को है
रोक सकता है कोई तो रोक ले
वक्त किसके रोके रुका है
वक्त स्वयं नही रोक सकते वक्त को
सादर...
जीवन-चक्र ......
निर्जीव,बिखरते पत्तों की
खड़खडाहट पर अवश खड़ा
शाखाओं का कंकाल पहने
पत्रविहीन वृक्ष
जिसकी उदास बाहें
ताकती हैं
सूखे नभ का
निर्विकार चेहरा
कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है
कोई ताक में है किसी को है गफ़लत
कोई जागता है कोई सो रहा है
खूबसूरत धुंध....
मेरी अखियों में वो ख्वाब सुनहरा था
मेरे ख्वाब को कोमल पंखुड़ियों ने घेरा था
वदन को उसका आज इंतजार गहरा था
खिंचने लगी बिन डोर उसकी श्वांसों की ओर
मेरी श्वासों ने चुना वो शख्स हीरा था
मानवता ........
अनाज के कुछ दानें पक्षिओं के हिस्सें में जाने लगे,
अपने हिस्सें की एक रोटी गाय को खिलाने लगे ,
प्यास से अतृप्त सूख़ रहे पेड़, लोग पानी पिलाने लगे ,
कुछ ने बधाया ढाढ़स, कुछ अस्पताल ले जाने लगे ,
मुक़म्मल मोहब्बत की दास्तान ............
पर मैं कोशिश कर रहा हूँ ,
जिंदगी को साथ लेकर चलने की,
तुम्हें साथ लेकर चलने की।
एक दिन होगी मुलाकात,
फिर वही नहर के किनारे,
शाम के डूबते किरण के साथ।
और फिर से हमारा प्यार मुकम्मल हो जाएगा।
वजह क्या थी ....
वजह क्या थी छोटे वस्त्र पहने थे
नहीं
इंसानियत
मर चुकी थी
वहशी दरिंदों की
वासना में लिप्त थे
तभी तो नहीं दिखी थी
उन्हे नन्ही कली नाजों से पली
पहले दिन
की खबर
दूसरे दिन
मिर्च मसाले
धनिये से
सजा कर
परोसी गई
होती है
‘उलूक’ से
होना कुछ
नहीं होता है
हमेशा
की तरह
उसके पेट में
गुड़ गुड़ हो
रही होती है
आज की प्रस्तुति बस यहीं तक
फिर मिलेंगे
सादर
यशोदा
बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी
ReplyDeleteवाहह दी नायाब संकवन है..सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभारी हूँ दी।
ReplyDeleteआभार यशोदा जी। 'उलूक' की बड़बड़ को जगह देने के लिये।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया 👌|मुझे स्थान देने के लिए सहृदय आभार आप का
ReplyDeleteसादर नमन
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग उत्तम संकलन के लिए बधाई छोटी बहना
ReplyDeleteबेहतरीन अंक
ReplyDeleteउम्दा रचनाएं
एक अच्छा संकलन रचनाओं का ...
ReplyDeleteआपने काफी बढ़िया पोस्ट लिखी है आप एक बार हमारे ब्लॉग पर भी विजिट करें online hindi book
ReplyDeleteKya Hai Kaise