तीसवाँ सप्ताह
मुखरित मौन का
हंगामें और अनिश्चिन्तताओं के माहोल में भी
हंसता रहा - रोता रहा
नामालूम ज़िन्दगी की तरह
सादर अभिवादन...
कल निपट गया हम महिलाओं का सम्मान समारोह...
ये सच में...सत्य या छलावा
जिस भी दिन आप किसी महिला को मान देते हैं,
उसकी महत्ता स्वीकार करते हैं,
वही दिन उसके लिए महिला -दिवस है
नारी,औरत,स्त्री, या वुमन जिसे सब आधी दुनिया कहते हैं , क्या
वास्तव में वह आधी दुनिया है ? यह एक ऐसी आधी दुनिया है जो
अपने अंदर पूरी दुनिया समेटे हुए है | स्त्री ही तो है जिससे जीवन
का आरंभ होता है | लड़की-लड़का दोनों को जन्म देने वाली
स्त्री ही तो है पर फिर भी वह अधूरी ही कहलाती है |
कहने दो मुझे कि प्यार है......
मैं फिर कहूंगी,
मुझे फिर-फिर कहना है
तुम्हारा प्यार मेरा सौभाग्य है
तुम कहोगे प्यार है तो है
सबको बताना क्यों
और मेरा जवाब होगा
प्यार है तो है
उम्मीदें .......
छू भी नहीं पाते,
जमीं के
जलते पाँव,
दरख़्तों से
सायों की,
बेमानी उम्मीदें
जाते जाते वो मुझे ....
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
उलूकिस्तान में उलूक..
‘उलूक’
कपड़े लत्ते की
सोचते सोचते
गंगा नहाने
नदी में उतर जाता है
महाकुँभ
की भीड़ में
खबरची के
कैमरे में आ जाता है
पकड़ा जाता है
..
अब बस
सादर..
मुखरित मौन का
हंगामें और अनिश्चिन्तताओं के माहोल में भी
हंसता रहा - रोता रहा
नामालूम ज़िन्दगी की तरह
सादर अभिवादन...
कल निपट गया हम महिलाओं का सम्मान समारोह...
ये सच में...सत्य या छलावा
जिस भी दिन आप किसी महिला को मान देते हैं,
उसकी महत्ता स्वीकार करते हैं,
वही दिन उसके लिए महिला -दिवस है
नारी,औरत,स्त्री, या वुमन जिसे सब आधी दुनिया कहते हैं , क्या
वास्तव में वह आधी दुनिया है ? यह एक ऐसी आधी दुनिया है जो
अपने अंदर पूरी दुनिया समेटे हुए है | स्त्री ही तो है जिससे जीवन
का आरंभ होता है | लड़की-लड़का दोनों को जन्म देने वाली
स्त्री ही तो है पर फिर भी वह अधूरी ही कहलाती है |
मैं फिर कहूंगी,
मुझे फिर-फिर कहना है
तुम्हारा प्यार मेरा सौभाग्य है
तुम कहोगे प्यार है तो है
सबको बताना क्यों
और मेरा जवाब होगा
प्यार है तो है
उम्मीदें .......
छू भी नहीं पाते,
जमीं के
जलते पाँव,
दरख़्तों से
सायों की,
बेमानी उम्मीदें
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
उलूकिस्तान में उलूक..
‘उलूक’
कपड़े लत्ते की
सोचते सोचते
गंगा नहाने
नदी में उतर जाता है
महाकुँभ
की भीड़ में
खबरची के
कैमरे में आ जाता है
पकड़ा जाता है
..
अब बस
सादर..
बेहद अच्छा लगा आज का अंक ,बिलकुल अलग सा ।
ReplyDeleteसुंदर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाओं से सजा शानदार संकलन..मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभारी हूँ दी।
ReplyDeleteआभार यशोदा जी 'उलूक' को आज के मुखरित मौन में जगह देने के लिये।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार संकलन।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई ।
सुन्दर
ReplyDelete