Saturday, September 1, 2018

अंक चौथा ......मर के वो तेरी निगाहों में, फ़रिश्ता क्यूँ है

अगला अँक कैसा हो...
आप क्या पढ़ना चाहते हैं
नहीं तलाश पा रहे हैं
हमसे कहिए..हम पढ़वाएँगे आपको
चलिए चलें देखें आज क्या है.....
आज की शुरुआत एक छोटी सी लम्बी कविता से....
वही तार
संवेदना के
बार-बार
क्यूं?
छेड़ते हो तुम,
अपनी ही
संवेदनाओं के

प्रतिश्राव

भाई पुरुषोत्तम सिन्हा की कलम से प्रसवित..

चंद सवालात...जोशी दंपत्ति (विवेक जोशी और शशि जोशी) मुझे बहुत अज़ीज़ हैं. फ़ेसबुक पर इन से मेरा आये दिन बहस-मुबाहिसा होता रहता है. कल शशि जोशी ने हाकिम से एक सवाल पूछा –

तेरे दावे हैं तरक्क़ी के, तो ऐसा क्यूँ है, 
मुल्क आधा मेरा, फुटपाथ पे, सोता क्यूँ है? 

इसके जवाब में मैंने अपनी एक पुरानी कविता उद्धृत की. हमारे बीच सवाल-जवाब में कुछ सवाल और बने जिन्हें मैंने अपनी पुरानी कविता में जोड़ दिया है. अब प्रस्तुत है संवर्धित कविता जिसमें कि चंद सवालात आम आदमी से हैं और आख़री सवाल अपने आक़ा से है - 
अपने ज़ख्मों पे नमक, ख़ुद ही छिड़कने वाला,
पूछता हमसे, किसी वैद का रस्ता क्यूँ है?

जीते जी जिसको, भुलाया था, बुरे सपने सा,
मर के वो तेरी निगाहों में, फ़रिश्ता क्यूँ है?
मेरी फ़ोटो
तिरछी नज़र से श्री गोपेश जसवाल

वहां पहुंचकर अजय बड़ी आत्मीयता से मुझसे गले मिला और मेहमानों से अपना विशेष मित्र कह कर परिचय कराया। मैं कुछ असहज हो रहा था क्योंकि अधिकतर मेहमानों को मैंने टी वी या अखबार में ही देखा था और उम्मीद न थी कि उनसे इतना नजदीकी सामना होगा।

पूरा आयोजन एक तरफ सादगी से रचा हुआ तो दूसरी तरफ गरिमापूर्ण था। कहीं भी मुझे वह स्टाल /टेबल नहीं दिखी जो अक्सर लोगों के लाये हुए उपहार को रखने के लिए शादियों में लगाया जाता है। न ही आने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों में कोई उपहार दिखाई दे रहा था।

एक लघु कथा जो कि अनुकरणीय है....श्री दीपक जी दीक्षित


 सुबह-सुबह गरमा - गरम जलेबी और पोहा खाने के बाद जैसई पेट गुर्राया तो मास्टर जी सकते में आ गए, लगा महापाप हो गया। बीस साल से नियमपूर्वक चल रहा एकादशी का व्रत अनजाने में टूट गया। स्कूल पहुंचे तो हताशा और निराशा में मन पढ़ाने में नहीं लगा, अंदर उपवास टूटने का अपराध बोध पसर गया। दो बच्चों को गुड्डी तनवा दी, तीन को घुटने के बल खड़ा किया और दो बच्चों के पिछवाड़े में छड़ी चला दी। बीस साल का एकादशी के उपवास में मुफ्त की जलेबी ने कबाड़ा कर दिया। हेड मास्टर को आते देख अनमने मन से पढ़ाने लगे, छड़ी उठाई मेज पर पटकी, श्याम पट को डस्टर से पीटा और कहने लगे - नियमपूर्वक उपवास करने की आदत डाली जाय तो खाये हुए भोजन का विकार दूर हो जाता है। 
IMG_20180217_151350
"जलेबी की जलन" और जय प्रकाश पाण्डेय जी की कलम


आज यहीं तक....
आज्ञा दें यशोदा को
सुने ये गीत...



6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,

    ReplyDelete
  2. सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति यशोदा जी ... सभी रचनाएँ शानदार

    ReplyDelete
  4. शुभ संध्या दी,
    प्रयोगात्मक प्रस्तुति अच्छी लगी..।
    सभी रचनाएँ स्तरीय हैं।

    ReplyDelete
  5. खूबसूरत ....लाजवाब प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. खूबसूरत ....लाजवाब प्रस्तुति

    ReplyDelete