हिन्दी...
एक सर्वमान्य भाषा
जो अखिल भारत में सुनी-बोली-पढ़ी-लिखी जाती है
अहिन्दी भाषी राज्यों में फिल्मी डॉयलाग को रूप में
और ये ध्रुव सत्य है...
पर कोशिश की जा रही है सीखने की
अखिल विश्व में....
एक सर्वमान्य भाषा
जो अखिल भारत में सुनी-बोली-पढ़ी-लिखी जाती है
अहिन्दी भाषी राज्यों में फिल्मी डॉयलाग को रूप में
और ये ध्रुव सत्य है...
पर कोशिश की जा रही है सीखने की
अखिल विश्व में....
सुख-शांति और ज्ञान-बुद्धि के दाता है गणपति जी...कविता रावत
“जगदम्बिका लीलामयी है। कैलाश पर अपने अन्तःपुर में वे विराजमान थीं। सेविकाएं उबटन लगा रही थी। शरीर से गिरे उबटन को उन आदि शक्ति ने एकत्र किया और एक मूर्ति बना डाली। उन चेतनामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं, उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा मांगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर न आने पाए। बालक डंडा लेकर द्वारा पर खड़ा हो गया। भगवान शंकर अंतःपुर में आने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं हैं, उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी- बालक को द्वार से हटा देनी की। इन्द्र, वरूण, कुबेर, यम आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए- वह महाशक्ति का पुत्र जो था।
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भारत की भौगोलिक, भाषायी एवं साँस्कृतिक विविधता इसकी राष्ट्रीय चेतना को स्वाभिमान के साथ समृद्ध वैचारिकी का आभामंडल प्रदान करती है। भारत में अनेक बोलियाँ और भाषाएं अस्तित्व में हैं। अनेक बोलियों (अवधी,भोजपुरी,बृजभाषा,मारवाड़ी,मगही/मागधी, कुमाँऊनी,गढ़वाली,छत्तीसगढ़ी,हरियाणवी आदि ) के समावेश से समृद्ध हिन्दी भाषा विश्व की प्रमुख भाषाओं में अपनी पहचान ऐसी मातृभाषा के रूप में विख्यात किये हुए है जिसके बोलने वाले चीनी भाषा
के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर हैं।
हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसमें जो लिखा जाता है वही बोला जाता है। इसलिये हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है। भाषा में अनुशासन की कठोरता उसे सीमित दायरों में समेट देती है अतः भाषा में लचीलापन होना एक अहम लक्षण है। हिन्दी को लचीला बनाये जाने की गवाही देता
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................ तूलिका कहती है
यहाँ हिंदी को मान देने का मतलब प्रादेशिक और आँचलिक
भाषाओं का विरोध कतई नहीं।
विविधताओं से परिपूर्ण हमारी भारतीय संस्कृति
के लिए एक प्रचलित कहावत है-
"चार कोस में पानी बदले और सौ कोस पर बानी"
संभवतः हमारे देश की क्षेत्रीय और आंचलिक भाषा की उत्पत्ति का स्रोत कमोबेश हिंदी या संस्कृत है। अनुसरण करने की परंपरा के आधार पर मनुष्य जिस क्षेत्र में रहा वहाँ की भाषा,खान-पान,रहन-सहन को अपनाता रहा। इन विविध भाषायी संस्कृति को जोड़ने का माध्यम हिंदी न होकर अंग्रेजी का बढ़ता प्रचलन हिंदी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रतीत होने लगा है।
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कुछ लघु कथाएँ
पण्डित चन्द्रधर शर्मा "गुलेरी" अपरिचित नाम नहीं है
हम सभी को अपना बचपन याद आ जाएगा
हम सभी को अपना बचपन याद आ जाएगा
25 July 1883 -11 September 1922
जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में
मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था.
उसका मुंह पीला था, आंखें सफ़ेद थीं,
दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी. प्रश्न पूछे जा रहे थे. उनका वह
उत्तर दे रहा था. धर्म के दस लक्षण सुना गया, नौ रसों के
उदाहरण दे गया. पानी के चार डिग्री के नीचे शीतलता में
फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राण-रक्षा
को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया,
अभाव को पदार्थ मानने, न मानने का शास्त्रार्थ कर गया
और इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और
पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया.
मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ वर्ना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी सासु माँ आप को यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?" रामादेवी से अब और बर्दाश्त ना हुआ।
काव्या..बेटी मेरी बात तो सुनो... आवाज जानी पहचानी थी
काव्या को मानो झटका सा लगा रामादेवी की तरफ देखा, तो पाँव
तले से जमीन ही खिसक गयी! माँ तुम? झेंपते हुए बोली।
हाँ काव्या ! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। दामाद जी को फोन किया, तो ये मुझे यहां ले आये मैं कहाँ जाती
मैंने कहा मुझे वृद्धाश्रम छोड दो पर अजय जिद करके
मुझे अपने साथ ले आये।
और चलते-चलते एक ग़ज़ल..
चिराग हूँ हज़ार अंधेरों के वजूद मिटा सकता हूँ
मेरी अहमियत तेरे तसव्वुर से ज्यादा है
वो शाह हो तो हो मुझे मेरी मुफ़लिसी पे गुमान है
मैं दरिया हूँ मुझे सफ़र का तजुर्बा समुन्दर से ज्यादा है
सुप्रभातम् दी...बहुत सारगर्भित सुंदर संकलन तैयार किया है आपने..दी मेरी रचना को मान देने केए आभार।
ReplyDeleteआपका यह प्रयास सराहनीय है।
सुप्रभात।विभिन्न विधाओं की इस प्रस्तुति के आनन्द से अभिभूत करवाने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteआभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
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