Saturday, September 8, 2018

05....भगवान का धन, भगवान के बच्चों के लिए ही क्यों नहीं

सादर अभिवादन....
यह अंक लाया है...कुछ कड़वी -मीठी...
........
पढ़िए एक लघुकाव्य.....
जो टूटन के पलों में
आकर कस ले 
और अहसास दिला दे
कि कोई है
जिसे हम अपने
सारे दुःख सौंप सकते हैं।

कहना सही ही है...आपदा प्राकृतिक है तो सरकार क्यों भुगते
सवाल है; यह धन-सम्पदा और किस काम आएगी ? किस ख़ास आयोजन के लिए इसे संभाला जा रहा है ? क्या समय के साथ यह 
सब जमींदोज हो जाने के लिए है ? मंदिरों में जमा यह 
धन का पहाड़ देश की अमानत है ! 
यह अकूत, बेशुमार दौलत साधारण लोगों के द्वारा दान करने पर 
ही इकट्ठा हुई है ! तो जब वही इंसान मुसीबत में है, देश संकट में है,
तो फिर इस बेकार पड़े, भगवान के नाम के धन का उपयोग 
भगवान के बंदों के लिए क्यों नहीं किया जा रहा ? क्या प्रभु खुद 
आकर इन्हें आदेश देंगे ? या प्रबंधकों ने यह राशि अपनी 
संपत्ति मान ली है और जहां चाहेंगे वहीं खर्च करेंगे ?

आज एक ग़ज़ल भी है
राजदार ने मिला दी जिंदगी खाक में
दुश्मन मिले हैं दोस्तों के लिबास में..

घौसले उजड़ गए परिंदे निकल गए
क्या अब और रखा हैं तलाक में,

आपको दुखी और निराश होने की जरूरत नहीं है । कुछ डॉलर पॉकेट 
में आ जाये फिर देखिए कैसे लुढ़कते रुपये को देख दिल खुश 
होता है। वैसे भी रुपये को हाथ का मैल ही कहते रहे है और 
इस मैल को रगड़ रगड़ कर साफ कर ले नही तो भावी योजना 
में अभी तो सिर्फ रुपया लुढ़क रहा है। हो सकता है कही 
लुढ़कते- लुढ़कते गायब ही न हो जाय...क्या पता..?

हमें तो आये दिन मिठाई मिलती ही रहती हैं..बच्चों ने कहा
दोपहर का समय है। मजदूर निर्माणाधीन मकान के पास नीम के पेड़ की छाँव मेँ दोपहर का भोजन कर रहे हैं। कुछ शोरगुल सा सुनकर सरमन उस तरफ देखते हैं तो अवाक रह जाते हैं।

मजदूर भोजन कर रहे हैं। मजदूरों के ना ना कहने पर भी सरमन के पोते-पोती उन्हें मिठाइयाँ परोस रहे हैं।

सरमन जैसे ही उनके पास पहुँचते हैं, उनका बड़ा पोता सिर 
झुका कर बोल उठता है-बब्बा जी हमें तो आये दिन मिठाई 
मिलती ही रहती हैं। इन अंकल लोगों का भोजन देखकर नहीं 
लगता कि ये कभी मिठाई खा पाते होंगे। इसलिए हम लोगों ने...।
सुप्रतीक बाला की कलाकृति

बुद्धिजीवियों की मानसिकता कैसी होती है
ऐसी तो नहीं होनी चाहिए न....
न्यूकमर थी,........... इसलिए सभी सीनियर कुछ न कुछ 
काम बताने के लिए मेरे पी सी पर आ जाते। शुरुआत में यह 
सब अच्छा लगा। सोचा इन सब के अनुभव से काम में परफेक्शन 
आ जाएगा। पर यह क्या सीट पर आते ही बालों में हाथ घुमा देते 
और कभी-कभार हंसी मजाक में गाल को भी टच कर देते। यह 
सब हैरान और अचंभित करने वाला था।

आज बस इतना है
अगले सप्ताह फिर मिलेंगे
यशोदा




5 comments:

  1. सुप्रभात।
    आज की ये प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी।समाजिक आर्थिक हर प्रकार की समस्या को छूने की कोशिश करता और एक आसान भाषा में हमो समझाता हैं।मेरी ग़ज़ल को भी स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार।धन्यवाद

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  2. सुप्रभातम् दी:),
    एक सुंदर और रोचक संकलन है हर विषय पर को स्पर्श करती।
    एक अच्छा प्रयास है साप्ताहिक पत्रिका पाठकों तक पहुँचाने का।

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  3. शानदार प्रस्तुति।

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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