Monday, October 28, 2019

158..शुभकामनाएं पर्व दीपावली पटाखे फुलझड़ी भी नहीं

सादर अभिवादन
बीत गई दीपावली
आज अन्नकूट है
गोवर्धन पूजा भी है
सब की छुट्टियाँ खतम होने की है

चलिए काम पर लगें...

सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!

क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!



यही जिन्दगी का फ़लसफ़ा 
बस मुस्कुराते जाईए
जब्त कर सीने में गम 
अश्क आँखों के पीते जाईए ।


सुख समृद्धि   
हर घर पहुँचे   
दीये कहते।   

मन से देता   
सकारात्मक ऊर्जा   
माटी का दीया।   


उस रात बहुत सन्नाटा था
उस रात बहुत खामोशी थी
साया था कोई ना सरगोशी
आहट थी ना जुम्बिश थी कोई
आँख देर तलक उस रात मगर
बस इक मकान की दूसरी मंजिल पर
इक रोशन खिड़की और इक चाँद फलक पर
इक दूजे को टिकटिकी बांधे तकते रहे


सो रहे थे बेच कर घोड़े, बड़े
और छोटे थे उनींदे से खड़े
ज़ोर से टन-टन बजी कानों में जब 
धड-धड़ाते बूट, बस्ते, चल पड़े  
हर सवारी आठ तक निकल गई


शुभकामनाएं पर्व दीपावली 
शुभकामनाएं
पर्व दीपावली
पटाखे
फुलझड़ी भी नहीं

खाली जेब
सब रोशनी से
लबालब भरी

‘उलूक’ 
हाँ हाँ ही सही

नहीं नहीं
जरा सा भी
ठीक नहीं। 
.....
अब बस
कल फिर मिलूँगी
सादर


6 comments:

  1. आभार यशोदा जी। शुभकामनाएं दीपावली की।

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  2. शुभ संध्या..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..

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  3. सभी रचनाएँ बहुत बढ़िया है।

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  4. मुखर है मुखरित मौन ...
    आभार मेरी रचना को शामिल कारने के लिए ...

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  5. .. दीप पर्व खत्म हो चली और धीरे से ठंड की सुगबुगाहट शुरू हो गई.. महादेवी वर्मा जी की कविता पढ़ कर मन आनंदित हो उठा सुंदर संकलन आप की ओर से प्रस्तुत किया गया ..!!

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  6. दीप पर्व का सुन्दर संकलन
    सबको शुभ-दीपावली!

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