Wednesday, October 23, 2019

153...भले हैं नारद जी अच्छा ही चाहते हैं

सादर अभिवादन
दीपावली को तीन दिन शेष
हार्दिक अभिनन्दन
हमारी गाड़ी में ब्रेक नहीं है
रुकती ही नही...

आज की रचनाएँ कुछ ऐसी है...

आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहां की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में


जलते दीप को देख,
दूर एक दीपक बोला
क्यों जलते औरों की खातिर
खुद तल में तेरे है अंधेरा ,
दीपक बोला गर नीचे ही देख लेता
तो वहाँ नही अंधेरा होता ,


वह मेरी पहली दीपावली थी, जो बस के सफर में गुजर गयी । बात वर्ष 1994 की है। उस शाम भी अखबार का बंडल लेकर प्रेस के कार्यालय से निकल सीधे कैंट बस स्टेशन पहुँच गया था। मुझे मीरजापुर अखबार वितरण कर वापस रात बारह बजे तक अपने घर वाराणसी भी लौटना होता था। अतः मन बेहद उदास और कुछ रुआँसा भी हो गया कि इतनी रात क्या बनाऊँगा, ढाबे पर भी तो कुछ नहीं मिलेगा।


सभी को मेरे जनाज़े में जाने की जल्दी दिखी ,
उनको अपने घर से कुछ ज्यादा दूरी दिखी ,

मैं मातम में खुद डूबा रहा अपनी मैयत देख ,
नुक्कड़ पर चाय में डूबी मेरी कुछ बाते दिखी ,

चलते-चलते...
नारद जी दिखाई पड़े

कितने साल
देखिये हो गये
कितने असुर
असुर नहीं रहे
देवता जैसे
ही हो गये

देवताओं का
असुरों में
असुरों का
देवताओं में
आना जाना
भी अब
देखा ही जाता है

नारद जी को
वैसे तो
देवता ही
माना जाता है

बस आज इतना ही
सादर..




6 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर..

    नारद जी को
    वैसे तो
    देवता ही
    माना जाता है
    पुरातन रिपोर्टर...
    सादर...

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  2. वैसे तो अच्छे दिन की प्रतीक्षा हम इस दीपावली पर भी कर रहे थें, परंतु बाजारों में उदासी है।
    वहीं बड़े- छोटे व्यापारी आर्थिक मंदी से परेशान हैं।
    अतः सब कहते मिले कि दिवाली नहीं अबकि तो उनका दिवाला है।
    मेरे संस्मरण को स्थान देने के लिये यशोदा दी आपका बहुत- बहुत आभार,धन्यवाद और सभी रचनाकारों को प्रणाम।
    हम सभी स्नेहभाव से दीपावली मनाएँ और आपस में कोई छल- कपट न करें, यही कामना है।

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  3. आभार यशोदा जी मना करने के बावजूद आप उठा ही लाती हैं 'उलूक' का कूड़ा। बेहतर होता किसी बेहतरीन को जगह मिलती इस जगह पर।

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    1. देवता और असुरों पर आपने बेजोड़ लिखा है, परंतु नारज जी ऐसे संदेशवाहक ( रिपोर्टर ) रहें कि दोनों में ही उनकी पहुँच थी और दोनों ही उनका सम्मान करते थें, परंतु कार्य वे देवों का ही करते थें क्यों शास्त्र देवताओं की मंशा को कल्याणकारी बताता है।
      हम संवाददाताओं के लिये भी यह सबक है कि पक्ष- विपक्ष सबकी सुने, परंतु लेखनी सत्य का अनुसरण करे।
      प्रणाम।

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    2. आदरणीय भैय्या जी..
      सादर नमन..
      ऐसा जान पड़ता है कि
      ये रचना आज के परिप्रेक्ष्य में
      खरी उतरती है..
      सादर..

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