Thursday, October 3, 2019

133...हनुमानजी कुइया में समा गए....

स्नेहाभिवादन !
 सभी रचनाकारों और पाठक वृन्द का हार्दिक अभिनंदन !
आज की सांध्य दैनिक मुखरित मौन" की प्रस्तुति के चयनित सूत्र आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं --

तेज धड़कनों का सच
समय के साथ बदल जाता है

कभी देखते ही
या स्पर्श भर से
स्वमेव तेज रुधिर धार
बता देती थी
हृदय के अलिंद निलय के बीच
लाल-श्वेत रक्त कोशिकाएं भी
करने लगती थी प्रेमालाप
वजह होती थीं 'तुम'

एक छोटी सी लेकिन बड़ी सुखद, ऊर्जावान, और ताज़गी भरी उज्बेकिस्तान की यात्रा से लौटी हूँ ! कितने अर्थों में यह यात्रा मुझे समृद्ध कर गयी एकदम से बता पाना मुश्किल है लेकिन इतना बता सकती हूँ कि इस यात्रा का हर पल हर लम्हा मैंने शिद्दत से जिया है, और हर पल नए अनुभव, नये एह्सास और नई दृष्टि से खुद को निखारा है ! हर दिन स्वयं को अपने ज्ञान और अनुभव के छोटे से दायरे से बाहर निकाल दुनिया के वृहद्, व्यापक, और विशाल स्वरुप को निहार उसे सराहने का सलीका सिखाया है और नए देश, नए स्थान, नयी संस्कृति, नए लोग, नयी भाषा, नए परिवेश में स्वयं को तदाकार कर उनके साथ हर पल को भरपूर जी लेने के आनंद को जीना सिखाया है !

हनुमान बने पात्र को देख-देख मण्डली का संचालक कभी गुस्सा हो रहा था तो कभी दया दिखा रहा था। लाड़ से डाँटते हुए, अपनी बोली में बोला - ‘हनुमान की एक्टिंग करते-करते तू तो सच्ची में हनुमान बन गया!’ नजरें नीची किए, सहमी आवाज में जवाब आया - ‘अब हनुमानजी बने हैं तो हनुमानजी की ही तो एक्टिंग करेंगे न दद्दा! हमें क्या पता कि वहाँ कुइया है! कुइया का पता होता तो हमारी छोड़ो, हनुमानजी भी वहाँ जाते?

सायली को कैलेंडर निहारते देखा तो मुस्कुरा के बोली,"क्यों ? तुझे बहुत पसंद आया क्या कैलेंडर सायली ?"
सायली चौंक गई. बोली,"हाँ, दीदी कितना सुन्दर है ना ? और इतना बड़ा ! सच्ची के जैसा ! इसलिए मैं देखते ही रह गई !"
दीदी हँस कर बोली," हाँ, है तो बहुत सुन्दर. हर महीने का एक चित्र है. अच्छे-मोटे कागज़ का है तो भारी भी बहुत है. हम तो लगाने से रहे. तुझे चाहिए तो ले जा."

गाँधी
अभी तक
जिन्दा है

और
इसी बात की
शर्मिंदगी है

उसकी
मुक्ति
नहीं
हो पा रही है

देख लो

अभी भी
याद किया
जा रहा है

आज
उसकी
एक सौ
पचासवीं
जयन्ती है

★★★★★

इजाजत दें... फिर मिलेंगे..
 शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"










7 comments:

  1. व्वाहहहहहह
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर..

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  2. बहुतसुंदर रचनाओं से सुसज्जित सुघढ़ प्रस्तुति दी। सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।

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  3. विनम्र आभार मीना जी.
    विचारों के हर सोपान पर एक रचना मुस्कुराती है.
    सांध्य के मुखरित मौन की ऐसी सुन्दर झांकी है.

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  4. आभार मीना जी। सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. अच्छी रचनाओं के साथ सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  6. सुन्दर सार्थक सूत्रों का अनुपम संकलन मीना जी ! मेरी प्रस्तुति को आज के अंक में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !सप्रेम वन्दे !

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