सादर अभिवादन
अंक सोलहवाँ लेकर आई हूँ
एक खुशनुमा भरी रचना से शुरुआत....
एक बार शुक्ल जी और उनकी श्रीमती जी अपनी बिटिया से मिलने पूना चले गए. एक महीने बाद वो
लौटे तो देखा कि सारे कीर्तिनगर में हंगामा मचा
हुआ है. उनके पांवों तले ज़मीन खिसक गयी जब
लौटे तो देखा कि सारे कीर्तिनगर में हंगामा मचा
हुआ है. उनके पांवों तले ज़मीन खिसक गयी जब
उन्हें पता चला कि पचपन साला विधुर, दो विवाहित बेटियों के पिता, उनके लंगोटिया यार, लाला भानचंद ने एक इक्कीस साल की कन्या से चुपचाप शादी कर ली है. अपने घर लौटने के 15 मिनट बाद ही प्रिंसिपल साहब को लाला भानचंद के घर का दरवाज़ा पीटते हुए देखा गया. लाला जी घर पर नहीं थे पर दरवाज़ा
फिर भी खुला और उसे खोला एक
फिर भी खुला और उसे खोला एक
लड़की ने. लड़की ने शुक्ल जी को देखते ही कहा –
‘अरे, सर आप?’
इतना कहकर वह उनके चरण छूने के लिए झुक गयी.
और शुक्ल जी ने उस लड़की को देखते ही कहा –
‘अरे किरण तुम?’
और इतना कहकर उन्होंने अपने दोनोंं हाथों से
अपना सर पीट लिया.
अपना सर पीट लिया.
पता है की कल तो मुझे भी है मरना
लेकिन मैं आज जीना छोड़ दूँ क्या?
पता है खंजर का काम करती है नैना
निगाहों का जाम पीना छोड़ दूँ क्या?
पता है दिलों के ज़ख्म यूँ नहीं भरते
मुहब्बत से ज़ख्म सीना छोड़ दूँ क्या?
मन दर्पण आशा ज्योती
रंग भरें इसमें भावों के मोती
भावनाओं का सागर अपार
कितना सुंदर यह संसार
सबके मन में प्यार बसा है
शब्दों का संसार बसा है
साहित्य के रंगों में रंगी है
अब एक साहित्यिक रचना पढ़िए
मेरे इर्द-गिर्द ऑक्टोपस-सी कसती
तुम्हारे सम्मोहन की भुजाओं में बंधकर
सुख-दुख,तन-मन,
पाप-पुण्य,तर्क-वितर्क भुलाकर
अनगिनत उनींदी रातों की नींद लिए
ओढ़कर तुम्हारे एहसास का लिहाफ़
मैं सो जाना चाहती हूँ
कभी न जागने के लिए।
अनपढ़ के
घर के
आसपास के
अनपढ़
सूखे सुखाये
गली के
कुछ कुत्ते
किसलिये
तुझे
और क्यों
याद आये
कुछ कुत्ते
आज और
बस
आज ही
‘उलूक’
मुखरित मौन के सुन्दर सोलहवें अंक में 'उलूक' की बकबक को जगह देने के लिये आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मुखरित मौन की
ReplyDeleteसादर
सभी रचनाकारों को बधाई
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