अभिवादन..
शनिवार..
लिखना-पढ़ना कुछ खास नहीं
कुछ आ गए...और
कुछ चले गए फिर से आने के लिए
आइए...इस सप्ताह क्या है.....
खामोश तेरी बातें...एक परिभाषा
संख्यातीत,
इन क्षणों में मेरे,
सुवासित है,
उन्मादित साँसों के घेरे,
ये खामोश लब,
बरबस कुछ कह जाते,
नवीन बातें,
हर जड़ विषाद से परे!
दिसंबर.......एक उलाहना
शीत बयार
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसंबर मुस्कुराया
"आधे में अधूरा-पहला प्यार"....एक ख़्वाब
“और भानु”
“दिल में खुदा नाम कहाँ मिटता है!”
“अपने पति को कभी बताया?”
“मीरा की तरह जहर का प्याला पीने की साहस नहीं जुटा पाई!”
“भानु की तुलना कृष्ण से?”
“ना! ना! तुलना नहीं। ईश और मनु में क्या और कैसी तुलना! भानु को कहाँ जानकारी है
मेरे मनोभावों की।”
चुनरिया...एक कल्पना
धानी तेरी चुनर गोरी
मन में लगन लगाए
लाली तेरी चुनर गोरी
तन में अगन जगाए।
मह-मह के महकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाये
रह-रह के बहकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए
बेनक़ाब मन...एक मनन
नक़ाब पर नक़ाब ख़ूब रखे , मन को बेनक़ाब करते है,
ठिठुरी रही इस धूप को फिर से दुल्हन बनाते है,
ग़मों की दावत ठुकराते , खुशियों के चावल पकाते है,
मोहब्बत के नगमे गुनगुनाते, ग़मों की दास्ताँ दफ़नाते है |
गुलाम ....एक व्याख़्या
घर में ही
घर के
भेड़िये
नोच रहे
होते हैं
अपनी भेड़ें
अपने हिसाब से
शेर
का गुलाम
शेर की
एक तस्वीर
का झंडा
ला ला कर
क्यों लहराता है ?
अथः शीर्षक कथा
आज की ज़रूरत ...पानी
कितना अच्छा है
सोचने में कि
तू भी पानी
और मैं भी पानी
कहाँ होता है अलग
पानी से कभी
कहीं का भी पानी
लूट खसोट चूस
और मुस्कुरा
और फिर कह दे
सामने वाले से
कि मैं हूँ पानी
‘उलूक’
तेरे पानी पानी
हो जाने से भी
कुछ नहीं होना है
पानी को रहना है
हमेशा ही पानी ।
आज बस
आज्ञा दें
यशोदा
शनिवार..
लिखना-पढ़ना कुछ खास नहीं
कुछ आ गए...और
कुछ चले गए फिर से आने के लिए
आइए...इस सप्ताह क्या है.....
खामोश तेरी बातें...एक परिभाषा
संख्यातीत,
इन क्षणों में मेरे,
सुवासित है,
उन्मादित साँसों के घेरे,
ये खामोश लब,
बरबस कुछ कह जाते,
नवीन बातें,
हर जड़ विषाद से परे!
दिसंबर.......एक उलाहना
शीत बयार
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसंबर मुस्कुराया
"आधे में अधूरा-पहला प्यार"....एक ख़्वाब
“और भानु”
“दिल में खुदा नाम कहाँ मिटता है!”
“अपने पति को कभी बताया?”
“मीरा की तरह जहर का प्याला पीने की साहस नहीं जुटा पाई!”
“भानु की तुलना कृष्ण से?”
“ना! ना! तुलना नहीं। ईश और मनु में क्या और कैसी तुलना! भानु को कहाँ जानकारी है
मेरे मनोभावों की।”
चुनरिया...एक कल्पना
धानी तेरी चुनर गोरी
मन में लगन लगाए
लाली तेरी चुनर गोरी
तन में अगन जगाए।
मह-मह के महकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाये
रह-रह के बहकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए
बेनक़ाब मन...एक मनन
नक़ाब पर नक़ाब ख़ूब रखे , मन को बेनक़ाब करते है,
ठिठुरी रही इस धूप को फिर से दुल्हन बनाते है,
ग़मों की दावत ठुकराते , खुशियों के चावल पकाते है,
मोहब्बत के नगमे गुनगुनाते, ग़मों की दास्ताँ दफ़नाते है |
गुलाम ....एक व्याख़्या
घर में ही
घर के
भेड़िये
नोच रहे
होते हैं
अपनी भेड़ें
अपने हिसाब से
शेर
का गुलाम
शेर की
एक तस्वीर
का झंडा
ला ला कर
क्यों लहराता है ?
अथः शीर्षक कथा
आज की ज़रूरत ...पानी
कितना अच्छा है
सोचने में कि
तू भी पानी
और मैं भी पानी
कहाँ होता है अलग
पानी से कभी
कहीं का भी पानी
लूट खसोट चूस
और मुस्कुरा
और फिर कह दे
सामने वाले से
कि मैं हूँ पानी
‘उलूक’
तेरे पानी पानी
हो जाने से भी
कुछ नहीं होना है
पानी को रहना है
हमेशा ही पानी ।
आज बस
आज्ञा दें
यशोदा
सुप्रभातम् दी:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर मुखरित मौन का अंक।
सभी रचनाएँ बेहद उम्दा है।
आभार दी मेरी रचना को स्थान देने देने के लिए।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति..
ReplyDeleteआभार...
सादर
आज के इस बेहतरीन प्रस्तुति में मेरी रचना को देखकर अभिभूत हूँ । शुभकामनाएं व बधाई समस्त कविगण व प्रस्तुतकर्ताओं को।
ReplyDeleteसुन्दर मुखरित मौन प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' की बकबक को जगह देने के लिये।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteलाजवाब मुखरित मौन....
ReplyDeleteमौन शब्द शब्द मुखरित हो रहा है | शानदार संकलन के लिए सादर बधाई और आभार |
ReplyDeleteशानदार संकलन यशोदा दी
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