सादर अभिवादन..
मुखरित मौन आज वाकई मौन व्रत धारण
कर लिया है...वजह है ही नहीं कुछ
इसीलिए शायद मौन है....
आज क्या-क्या है देखिए.....
कर लिया है...वजह है ही नहीं कुछ
इसीलिए शायद मौन है....
आज क्या-क्या है देखिए.....
समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं
शिकायतें द्वार पर टंगी हैं
अफसर सलीके से रो रहें हैं
भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
दाने-दाने को मोहताज
फिरते लिए हड्डियों का ढांचा
काम मिला तो भरता है पेट
नहीं तो भूखे कटते दिन अनेक
भूख!!
जलाती है
तन को मन को,
संसार के समस्त
कर्मों के पीछे
है यही भूख।।
भूख के हैं कई रूप
क्षुधातुर
नहीं देखता
उचित-अनुचित
मांगता भिक्षा या
जूठन में ढूंढ़ता
अपनी भूख का इलाज।।
कौन होगा जो दो घड़ी बातें करेगा मुझसे
पूछेगा मुझसे क्या शहर शहर होने से
तुम थक नहीं गए...।
कितनी फैली है जमीन तुम्हारी
कितना चलते हैं लोग तुम पर
चलते-चलते एक साधारण मगर
असाधारण खबर..डॉ. सुशील जोशी
असाधारण खबर..डॉ. सुशील जोशी
‘उलूक’
खबर की भी
होती हैं लाशें
कुछ नहीं
बताती हैं
घर की घर में
ही छोड़ जाती हैं
मरी हुई खबर
को देखकर
इतना तो
समझ ही
लिया कर ।
आज बस इतना ही..
फिर मिलते हैं
यशोदा
फिर मिलते हैं
यशोदा
बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी
ReplyDeleteशुभ-प्रभात यशोदा जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
शुभप्रभात यशोदा जी
ReplyDeleteकमाल जा संयोजन और संकलन
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
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