Saturday, December 22, 2018

19..मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है, मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर

सादर अभिवादन..
मुखरित मौन आज वाकई मौन व्रत धारण
कर लिया है...वजह है ही नहीं कुछ
इसीलिए शायद मौन है....
आज क्या-क्या है देखिए.....

समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं

शिकायतें द्वार पर टंगी हैं
अफसर सलीके से रो रहें हैं

भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
दाने-दाने को मोहताज
फिरते लिए हड्डियों का ढांचा
काम मिला तो भरता है पेट
नहीं तो भूखे कटते दिन अनेक

भूख!!
जलाती है
तन को मन को,
संसार के समस्त
कर्मों के पीछे
है यही भूख।।
भूख के हैं कई रूप
क्षुधातुर
नहीं देखता
उचित-अनुचित
मांगता भिक्षा या
जूठन में ढूंढ़ता
अपनी भूख का इलाज।।

कौन होगा जो दो घड़ी बातें करेगा मुझसे
पूछेगा मुझसे क्या शहर शहर होने से
तुम थक नहीं गए...।
कितनी फैली है जमीन तुम्हारी
कितना चलते हैं लोग तुम पर

चलते-चलते एक  साधारण मगर
असाधारण खबर..डॉ. सुशील जोशी
‘उलूक’ 
खबर की भी 
होती हैं लाशें 
कुछ नहीं 
बताती हैं 
घर की घर में 
ही छोड़ जाती हैं 
मरी हुई खबर 
को देखकर 
इतना तो 
समझ ही 
लिया कर । 

आज बस इतना ही..
फिर मिलते हैं
यशोदा







4 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी

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  2. शुभ-प्रभात यशोदा जी
    बहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

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  3. शुभप्रभात यशोदा जी
    कमाल जा संयोजन और संकलन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

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  4. सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।

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