सादर अभिवादन...
आज का मौन
वाकई मौन है..
आज का मौन
वाकई मौन है..
पता नही क्यों....
चलिए नई-जूनी रचनाओं की ओर...
केक गुलाबी फूलों वाला
"आज केक आयेगा।"
केक आयेगा न पापा? मेरे चेहरे पर मासूम आँखें टिकाकर तनु ने पूछा।
मैंने मुस्कुराकर हामी भरी तो उसकी आँखों में अनगिनत दीप जल उठे।
सात वर्षीय बिटिया तनु खुशी से नाच रही थी पूरे घर में,
आज उसका जन्मदिन है।
आज के दिन के लिए खास उसने तीन महीने पहले से ही मुझसे
कह रखा था उसे भी अपने जन्मदिन पर नयी फ्रॉक पहनकर केक काटना है,रंगीन मोमबत्तियाँ फूँक मारकर बुझानी है फिर पापा और मम्मा बर्थडे सॉग गायेंगे। फिर वह टेस्टी वाला केक खायेगी। सबसे
पहले पापा को फिर मम्मा को खिलायेगी केक पर क्रीम का जो फूल होता है न उसको और कोई नहीं खायेगा बस वही खायेंगी,उसकी
मासूम बातें मुस्कुराने को मजबूर कर देती है।
मन का जंगल
कभी यात्रा की है
किसी जंगल की ?
नहीं?
तो सुनो
अपने मन में झांको
एक गहन जंगल है वहाँ
घुप्प अंधेरा....
कंटीली झाड़ियाँ
हर रोज उगते कूकुरमुत्ते
और सुनो ध्यान से
बोलते सियार, रोते कूत्ते
सन्नाटे को चीरते झींगूर
हँसी नहीं तेज अट्टहास है वहाँ
किसका?
चलिए नई-जूनी रचनाओं की ओर...
केक गुलाबी फूलों वाला
"आज केक आयेगा।"
केक आयेगा न पापा? मेरे चेहरे पर मासूम आँखें टिकाकर तनु ने पूछा।
मैंने मुस्कुराकर हामी भरी तो उसकी आँखों में अनगिनत दीप जल उठे।
सात वर्षीय बिटिया तनु खुशी से नाच रही थी पूरे घर में,
आज उसका जन्मदिन है।
आज के दिन के लिए खास उसने तीन महीने पहले से ही मुझसे
कह रखा था उसे भी अपने जन्मदिन पर नयी फ्रॉक पहनकर केक काटना है,रंगीन मोमबत्तियाँ फूँक मारकर बुझानी है फिर पापा और मम्मा बर्थडे सॉग गायेंगे। फिर वह टेस्टी वाला केक खायेगी। सबसे
पहले पापा को फिर मम्मा को खिलायेगी केक पर क्रीम का जो फूल होता है न उसको और कोई नहीं खायेगा बस वही खायेंगी,उसकी
मासूम बातें मुस्कुराने को मजबूर कर देती है।
मन का जंगल
कभी यात्रा की है
किसी जंगल की ?
नहीं?
तो सुनो
अपने मन में झांको
एक गहन जंगल है वहाँ
घुप्प अंधेरा....
कंटीली झाड़ियाँ
हर रोज उगते कूकुरमुत्ते
और सुनो ध्यान से
बोलते सियार, रोते कूत्ते
सन्नाटे को चीरते झींगूर
हँसी नहीं तेज अट्टहास है वहाँ
किसका?
पुष्पों की सुंदर सौगात
करती धरा का श्रृंगार
लाल, गुलाबी,पीले
पुष्प यहां कई रंग के खिलते
लाल पुष्प कुमकुम सी आभा
सबके मन को बहुत लुभाता
पीले पीले पुष्प सुनहरे
सोने सी छटा बिखेरे
”आपकी आँटी भूली नहीं हैं... तीन साल से कर्ज उतार रही हैं... मेरा, अपना खाता तो खुलवाई ही उस बैंक में जिसमें आपलोग काम करते हैं! कई स्कीम में भी पैसा डलवाती रहती हैं... आपके साथ आये इन महोदय को वो समझ रही हैं जो इन्हें यकीन दिला चुके हैं कि ये ही सड़क से उठाकर घर पहुँचाये थे...।"
पिन भी गिरता तो शोर मचता......
उलूक उवाच..
घरवालों से
हो जाती है चिढ़
घरवाली भी
दिखलाती है चिढ़
रिश्तेदारों से
हो जाती है चिढ़
पड़ोसी को
पड़ोसन से
करवाती है चिढ़
दोस्तों के बीच में भी
घुस आती है चिढ़
हो जाती है चिढ़
घरवाली भी
दिखलाती है चिढ़
रिश्तेदारों से
हो जाती है चिढ़
पड़ोसी को
पड़ोसन से
करवाती है चिढ़
दोस्तों के बीच में भी
घुस आती है चिढ़
बहुत सुंदर सार्थक रचनाओं से सजा अंक बहुत अच्छा लगा दी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार आपका।
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं का संकलन
ReplyDeleteसुन्दर सुन्दर रचनाओं के बीच में 'उलूक' का थोड़ा थोड़ा कसैला भी। आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार यशोदा जी
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