Friday, January 10, 2020

232...कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित

विश्व हिन्दी दिवस
अशेष शुभकामनाएँ
इस दिन को मनाने का उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार 
के लिए वातावरण निर्मित‍ करना, हिन्दी के प्रति अनुराग 
पैदा करना, हिन्दी की दशा के लिए जागरूकता पैदा करना 
तथा हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है.
.....
08 जनवरी को हिन्दी का एक सूर्य अस्त हो गया
किशन सरोज का जन्म बरेली के बलियाग्राम में हुआ था। 
बालपन में ही इन्होंने पिता को खो दिया। इनका बचपन गांव 
में ही बीता। किशन सरोज गीत विधा के रागात्मक भाव 
के कवि हैं। इन्होंने अब तक लगभग 400 गीत लिखे हैं।
1939-2020

आज कविताकोश से ली गई 
उनकी श्रेष्ठतम रचनाएँ

सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना

धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम
छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना


सैलानी नदिया के सँग–सँग
हार गये वन चलते–चलते

फिर आयीँ पातियाँ गुलाबों की
फिर नींदेँ हो गईं पराई
भूल सही, पर कब तक कौन करे
अपनी ही देह से लड़ाई
साधा जब जूही ने पुष्प-बान
थम गया पवन चलते–चलते


टूटकर हर दिन ढहा
तटबन्ध—सा सम्बन्ध कोई
दीप बन हर रात
डूबी धार में सौगन्ध कोई
देखता है कौन किसकी बाट, नावें थक गयीं


नींद सुख की फिर हमें सोने न देगा
यह तुम्हारे नैन में तिरता हुआ जल

छू लिये भीगे कमल,
भीगी ॠचाएँ
मन हुए गीले
बही गीली हवाएँ
है बहुत सम्भव, डुबो दे सृष्टि सारी
दॄष्टि के आकाश में घिरता हुआ जल
.....
अश्रुपूरित श्रद्धांजली
सादर


2 comments:

  1. बहुत सुन्दर अंक। विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।

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  2. बहुत सुंदर अंक। स्वर्गीय किशन सरोज जी की अनमोल रचनाओं को पढ़ना हम जैसे नौसिखिए लेखन में प्रयासरत लोगों के लिए आवश्यक है। राग में भी विरागी होने की झलक इनमें मिलती है।
    टूटकर हर दिन ढहा
    तटबन्ध—सा सम्बन्ध कोई
    दीप बन हर रात
    डूबी धार में सौगन्ध कोई
    देखता है कौन किसकी बाट, नावें थक गयीं !

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