Monday, January 6, 2020

228..मानव! क्यों तनिक प्रतिकूलता से घबरा जाता है

सादर अभिनन्दन
कुछ-कुछ भूलते रहते हैं
चलिए चलते हैं भूल सुधार करते हुए
आज की रचनाएँ देखें...

जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।
उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्य
जिजीविषा से
बहुत डरती है।


हमने था शामिल किया अपनी दुआओं में तुझे
पर न शामिल हो सके तेरी दुआओं में कभी,
दूर था तेरा ठिकाना रास्ता दुश्वार था
हम जतन करते रहे तुझ तक पहुँचने के सभी !


साच दर्रा हिमालय के पीर पंजाल पर्वतमाला पर चंबा जिला, हिमाचल प्रदेश, भारत में स्थित समुद्र तल से ऊपर 4.420 मीटर (1,4500 फीट) की ऊँचाई पर स्थित एक ऊँचा पर्वत दर्रा है। यह दर्रा जून के अंत या जुलाई की प्रथम सप्ताह  से अक्टूबर के मध्य तक खुलता है और सितम्बर महीना वहाँ पर जाने के लिए सबसे अच्छा है, तो इसी आधार पर मैंने "एक पंथ दो काज" वाला मुहावरा को चरितार्थ करने हेतु 4 सितम्बर'2018  को अपनी पत्नी की जन्मदिन पर साच  पास घूमने का कार्यक्रम बनाया।


एक परिचित का पुत्र अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद छोटे-मोटे काम करते हुए जीवन में स्थापित होने का प्रयास कर रहा था । शादी योग्य उसकी उम्र थी और संयोग से उचित लडकी के साथ उसका विवाह हो गया । लडकी जिस शहर व परिवार से थी वहाँ उनके कोई परिचित रेडिमेड कपडों में प्रयुक्त होने वाला केनवास बनाते व वस्त्र निर्माताओं को सप्लाय करते थे जबकि लडकी की बडी बहन भी पहले से उसके ससुराली शहर में ब्याही थी.

छत पर पड़ा, मकई का भुट्टा,
हवा के साथ आई मिट्टी
और बरसात का आसरा ले
अंकुरित हो जाता है।
मानव! क्यों तनिक प्रतिकूलता से
घबरा जाता है?
कोसता है, अपने भाग्य और विधाता को।
आत्मदाह का चिंतन करता है।
क्यों कमजोर हो जाती है
उसकी जिजीविषा?
....
आज बस इतना ही
सादर


4 comments:

  1. वाह ! सुन्दर सक्षिप्त सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की पत्रिका ! मेरी रचना को इसमें सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. सुंदर प्रस्तुति एवं सारगर्भित सूत्र, आभार.

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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