Tuesday, January 21, 2020

243...क्या करें हौसला नहीं होता

अभिनन्दन स्वीकारें
दूसरे सप्ताह का दूसरा दिन
ये जनवरी भी क्या चीज थी
आते ही खतम हो गई
तीन पूरे सप्ताह भी नहीं चली

बहरहाल चलते हैं रचनाओं की ओर...

जो बेकार हो,
उसे फेंक देना,
जो काम का हो,
उसे रख लेना.

चादरें रख लेना,
धब्बे फेंक देना,
धागे रख लेना,
गांठें फेंक देना.



आदमी के मरने से पहले 
पढ़ना छोड़ देंगे लोग 
कविताएँ 
खरीदना छोड़ देंगे 
उपन्यास 
सुन ही नहीं पाएंगे 
गीत 
शोर लगने लगेगा 
संगीत अखबार के पृष्ठों से 
गुम हो जाएगा 
खेल समाचार, 
कार्टून का कोना और 
व्यंग्यालेख!


राज जो भी हो, दिल में छुपाना
बनके तमाशा, तुम जग को हँसाना।

खुशबू तेरे मन की,जबतक न महके
इस दुनिया से, यूँ वापस न जाना ।

टूटे  सपने  हो , झूठे सब वादे
ज़ख़्मी जिगर तेरा ,उसे न रुलाना।




खुद ही खुद को क्यों औरों से खास है
ये समय   है, समय  किसके   पास है

लिक्खा    है  मैंने  भावों  की  ले स्याही
खुशियों   से  मातम, मातम   से तबाही
शब्द   वही हैं, तो  क्या ये   बकबास है
ये  समय   है, समय    किसके   पास है

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

फिर मिलेंगेे
सादर..



6 comments:

  1. अब तो गणतंत्र दिवस की तैयारी चल रही है। पुलिस लाइन परेड ग्राउंड से लेकर विद्यालयों में जवान से लेकर बच्चे तक अपने प्रदर्शन को सफल बनाने में जुटे हैं।
    गणतंत्र का महत्व रट्टू तोते की तरफ बताया जाएगा, मंच से उतरते ही मुख्य अतिथि अपने रास्ते और दर्शक अपने..।
    बहरहाल, मेरी रचना को आज की जानदार प्रस्तुति में शामिल करने केलिए आपका हृदय से आभार यशोदा दी।
    सभी को प्रणाम।

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  2. व्वाहहहहहह
    शशि जी की प्रतिक्रिया पसंद आई..
    मीलों आगे की सोच की सराहना करता हूँ
    सादर..

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    1. आशीर्वाद बना रहे, प्रणाम।

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  3. चादरें रख लेना,
    धब्बे फेंक देना,
    धागे रख लेना,
    गांठें फेंक देना.___
    बहुत लाजवाब 👌👌

    सुंदर अंक आदरणीय भैया। सभी रचनाएँ बढ़िया। शशि भाई की टिप्पणी सोने पे सुहागा । सभी रचनाकारों को सादर , सस्नेह शुभकामनायें। 🙏🙏🙏🙏

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  4. सुंदर लिंक्स. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.

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