सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति की रचनाओं का चयन
एक दिन पहले.....क्षमा
हम शनिवार सुबह से शहर से बाहर रहेंगे
चलिए चलें रचनाओं की ओर...
आज की प्रस्तुति की रचनाओं का चयन
एक दिन पहले.....क्षमा
हम शनिवार सुबह से शहर से बाहर रहेंगे
चलिए चलें रचनाओं की ओर...
लाख रात भर रोकर भी समझ ना पाया हूँ,
प्यार करके हमने कौनसी खता की हैं,
बस एक ग़ज़ल दिल में छुपा के रखी हैं
जबके हमने तेरी हर बात भुला दी हैं
ज़िंदा हूँ मैं ज़िन्दगी मुझसे पूछती,
ख़ामोशी में चेतना बन वह साया विहरता,
पसारा था हाथ अवसाद में बनी याद वही,
रोम-रोम उस मोड़ पर सिहरता रहा।
चित्र यही है इस जीवन की.... भारती दास
चित्र यही है इस जीवन की
प्रेम पिपासा उलझन मन की
अरमानों के उड़ते रथ पर
अभिलाषा के बढ़ते पथ पर
नूतन रमणी रुपसी बनकर
अगणित रुप उमंग की भरती...
ये कैसी पिपासा ! ...व्याकुल पथिक
होटल के रिसेप्शन से लेकर चौराहे तक खासा मजमा लगा हुआ था। दरोगा और सहयोगी सिपाही एक वृद्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर समीप के कोतवाली ले जा रहे थें। साथ में एक महिला पुलिसकर्मी थी और उसकी उँँगली थामे वह मासूम बच्ची बिल्कुल डरी-सहमी कभी उस वृद्ध को तो कभी अपने इस नये अभिभावक को देख रही थी ।
रक्त पिपासा ...सुबोध सिन्हा
साहिब ! .. महिमामंडित करते हैं मिल कर
रक्त पिपासा को ही तो हम सभी बारम्बार ...
होती है जब बुराई पर अच्छाई की जीत की बात
चाहे राम का तीर हो रावण की नाभि के पार
अर्जुन का तीर अपने ही सगों के सीने के पार
कृष्ण के कहने पर हुआ हो सैकड़ों नरसंहार
'मन की तृष्णा' ....मीना भारद्वाज
मिल गया अगर सब कुछ तो भी तुष्टि नही है ।
अधूरी रह गई अभिलाषाएं अभी अधूरी क्यों है ।।
अधूरी इच्छाओं को पूरा करने की आशा ।
हो गई यदि सभी पूरी तो और पाने की प्रत्याशा ।।
ज्ञान पिपासा ...सुजाता प्रिय
जिसके मन में ज्ञान पिपासा।
ज्ञान की जिसे है अभिलाषा।
ज्ञानामृत उसके घर बरसेगा।
ज्ञान पान कर मन हरषेगा।
घट ज्ञान का कभी न भरता।
ज्ञान को ना कोई भी हरता।
अब बस
कल मिलेंगे
चित्र यही है इस जीवन की.... भारती दास
चित्र यही है इस जीवन की
प्रेम पिपासा उलझन मन की
अरमानों के उड़ते रथ पर
अभिलाषा के बढ़ते पथ पर
नूतन रमणी रुपसी बनकर
अगणित रुप उमंग की भरती...
ये कैसी पिपासा ! ...व्याकुल पथिक
होटल के रिसेप्शन से लेकर चौराहे तक खासा मजमा लगा हुआ था। दरोगा और सहयोगी सिपाही एक वृद्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर समीप के कोतवाली ले जा रहे थें। साथ में एक महिला पुलिसकर्मी थी और उसकी उँँगली थामे वह मासूम बच्ची बिल्कुल डरी-सहमी कभी उस वृद्ध को तो कभी अपने इस नये अभिभावक को देख रही थी ।
रक्त पिपासा ...सुबोध सिन्हा
साहिब ! .. महिमामंडित करते हैं मिल कर
रक्त पिपासा को ही तो हम सभी बारम्बार ...
होती है जब बुराई पर अच्छाई की जीत की बात
चाहे राम का तीर हो रावण की नाभि के पार
अर्जुन का तीर अपने ही सगों के सीने के पार
कृष्ण के कहने पर हुआ हो सैकड़ों नरसंहार
'मन की तृष्णा' ....मीना भारद्वाज
मिल गया अगर सब कुछ तो भी तुष्टि नही है ।
अधूरी रह गई अभिलाषाएं अभी अधूरी क्यों है ।।
अधूरी इच्छाओं को पूरा करने की आशा ।
हो गई यदि सभी पूरी तो और पाने की प्रत्याशा ।।
ज्ञान पिपासा ...सुजाता प्रिय
जिसके मन में ज्ञान पिपासा।
ज्ञान की जिसे है अभिलाषा।
ज्ञानामृत उसके घर बरसेगा।
ज्ञान पान कर मन हरषेगा।
घट ज्ञान का कभी न भरता।
ज्ञान को ना कोई भी हरता।
अब बस
कल मिलेंगे
बहुत ही बढियां प्रस्तुति
ReplyDeleteनगर के बाहर हो अथवा घर में , किंतु कार्य के प्रति आपकी निष्ठा सराहनीय एवं हम सभी केलिए प्रेरणादायक है, यशोदा दी।
ReplyDeleteमेरी रचना को प्रतिष्ठित पटल पर स्थान देने केलिए हृदय से आपका आभार
साथ ही सभी को प्रणाम।
जिसके मन में ज्ञान पिपासा।
ReplyDeleteज्ञान की जिसे है अभिलाषा।
अति सुंदर।
आज तो प्रस्तुति और रचनाओ का चयन लाज़वाब हैं।मुझ नज़ीज़ को स्थान देने के लिए आभार।
बहुत सुन्दर अंक।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय दी.सभी रचनाएँ बेहतरीन मेरी रचना को स्थान देने हेतु सहृदय आभार
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमन
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय दीदीजी।मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद ।सादर नमस्कार।
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