सादर अभिवादन..
खुश खबर...
अगले शनिवार को इस ब्लॉग में
प्रस्तुति होगी सखी मीना भारद्वाज की
तब तक नई सरकार भी आ जाएगी...
सरकार का क्या ...
गधा आए या घोड़ा
आते-जाते रहते हैं....
अंगद का पैर तो हम लोग हैं
जमें रहते हैं...
चलिए चलें रचनाओं की ओर....
बच्चे भी काम पर जाते है ....
मत पूछिए कौन सा काम मिलता है इनको
जहाँ हम आराम से चाय-समोसे-छोले मज़े से खाते है
जरा गौर फरमाईयेगा तो
नाबालिग बच्चों को ही परोसते हुए ज्यादातर पाईयेगा।
अपने घर के पीछे कूड़े-कचरेवाले जगह में
चिलचिलाती धूप में
ऐसे ही बच्चे दिखेंगे पॉलीथिन,
तेल आदि के डिब्बे और
बॉसी रोटियां भी उठाते-खाते हुए
रुको मत !!!! ....
सीधी लाईन होती है न
जब ईसीजी में
तो उसका अर्थ होता है
हम जीवित नहीं है
उतार-चढ़ाव ये टेढ़े-मेढ़े रास्ते
जिन पर उछल-कूद करते हुये
जिंदगी बिंदास होकर
अपना संतुलन बना ही लेती है
तब हम मुस्करा देते हैं
लुटा हुआ ये शहर है ....
ख़बर ये है कि
ख़बरों में वो ही नहीं
जिनकी ये ख़बर है
.
डर से ये
कहीं मर न जाएं
बस यही डर है
जानती हूँ ......
नहीं बदलना चाहती परिदृश्य
मासूम सपनों को संभावनाओं के
डोर से लटकाये जागती हूँ
बावजूद सच जानते हुये
रिस-रिसकर ख़्वाब एक दिन
ज़िंदा आँखों में क़ब्र बन जायेंगे
खरबूजे के फेंके हुए हिस्से से बनाइए पौष्टिक शरबत
खरबूजे का बीजों वाला हिस्सा ज्यादातर लोग फेंक देते हैं। लेकिन खरबूजे के फेंके हुए हिस्से से एक बार यह शरबत बनाने के बाद आप कभी भी इस हिस्से को फेंकेगे नहीं। क्योंकि यह शरबत बहुत स्वादिष्ट लगता हैं साथ ही में खरबूजे में विटामिन ए और विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता हैं इसलिए यह बहुत पौष्टिक भी होता हैं। तो आइए बनाते हैं, खरबूजे के फेंके हुए हिस्से से पौष्टिक शरबत...
जिंदगी की चाय .....
पलटते पन्नों में जैसे समस्या का समाधान मिल गया ... दो कप चाय बनाने और साथ पीने की आदत थी और आज एक कप बनाई थी । चाय का स्वाद नहीं बदला था ,वो तो उस दूसरे कप की कमी को उसका अवचेतन अनुभव कर अनमना हो गया था ।
चलते-चलते एक खबर और
उलूकिस्तान से
बहुत दिन हो गये
मुलाकात किये हुऐ
याद किये हुऐ
बात किये हुऐ
कोई खबर ना
कोई समाचार
आज तुम्हारी याद
फिर से है आई
जब से सुनी है
जानवर के चक्कर में
आदमी की आदमी से
हुई है खूनी
रक्तरंजित हाथापाई
आज बस इतना ही
यशोदा
खुश खबर...
अगले शनिवार को इस ब्लॉग में
प्रस्तुति होगी सखी मीना भारद्वाज की
तब तक नई सरकार भी आ जाएगी...
सरकार का क्या ...
गधा आए या घोड़ा
आते-जाते रहते हैं....
अंगद का पैर तो हम लोग हैं
जमें रहते हैं...
चलिए चलें रचनाओं की ओर....
बच्चे भी काम पर जाते है ....
मत पूछिए कौन सा काम मिलता है इनको
जहाँ हम आराम से चाय-समोसे-छोले मज़े से खाते है
जरा गौर फरमाईयेगा तो
नाबालिग बच्चों को ही परोसते हुए ज्यादातर पाईयेगा।
अपने घर के पीछे कूड़े-कचरेवाले जगह में
चिलचिलाती धूप में
ऐसे ही बच्चे दिखेंगे पॉलीथिन,
तेल आदि के डिब्बे और
बॉसी रोटियां भी उठाते-खाते हुए
सीधी लाईन होती है न
जब ईसीजी में
तो उसका अर्थ होता है
हम जीवित नहीं है
उतार-चढ़ाव ये टेढ़े-मेढ़े रास्ते
जिन पर उछल-कूद करते हुये
जिंदगी बिंदास होकर
अपना संतुलन बना ही लेती है
तब हम मुस्करा देते हैं
लुटा हुआ ये शहर है ....
ख़बर ये है कि
ख़बरों में वो ही नहीं
जिनकी ये ख़बर है
.
डर से ये
कहीं मर न जाएं
बस यही डर है
जानती हूँ ......
नहीं बदलना चाहती परिदृश्य
मासूम सपनों को संभावनाओं के
डोर से लटकाये जागती हूँ
बावजूद सच जानते हुये
रिस-रिसकर ख़्वाब एक दिन
ज़िंदा आँखों में क़ब्र बन जायेंगे
खरबूजे के फेंके हुए हिस्से से बनाइए पौष्टिक शरबत
खरबूजे का बीजों वाला हिस्सा ज्यादातर लोग फेंक देते हैं। लेकिन खरबूजे के फेंके हुए हिस्से से एक बार यह शरबत बनाने के बाद आप कभी भी इस हिस्से को फेंकेगे नहीं। क्योंकि यह शरबत बहुत स्वादिष्ट लगता हैं साथ ही में खरबूजे में विटामिन ए और विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता हैं इसलिए यह बहुत पौष्टिक भी होता हैं। तो आइए बनाते हैं, खरबूजे के फेंके हुए हिस्से से पौष्टिक शरबत...
जिंदगी की चाय .....
पलटते पन्नों में जैसे समस्या का समाधान मिल गया ... दो कप चाय बनाने और साथ पीने की आदत थी और आज एक कप बनाई थी । चाय का स्वाद नहीं बदला था ,वो तो उस दूसरे कप की कमी को उसका अवचेतन अनुभव कर अनमना हो गया था ।
चलते-चलते एक खबर और
उलूकिस्तान से
बहुत दिन हो गये
मुलाकात किये हुऐ
याद किये हुऐ
बात किये हुऐ
कोई खबर ना
कोई समाचार
आज तुम्हारी याद
फिर से है आई
जब से सुनी है
जानवर के चक्कर में
आदमी की आदमी से
हुई है खूनी
रक्तरंजित हाथापाई
आज बस इतना ही
यशोदा
स्नेहाभिवादन !
ReplyDeleteसदैव की भांति अत्यन्त सुन्दर प्रस्तुति ।
सादर आभार ।
मेरी पोस्ट को मुखरीत मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का संगम ।चाय की चुस्कियों के साथ न्युज पढ़ना बहुत अच्छा लगा । शरबत सचमुच बहुत अच्छा और पौष्टिक लगा।बधाई।
ReplyDeleteआभार यशोदा जी
ReplyDeleteफिर एक बार
'उलूक' के गधे को
जगह देने के लिये इस बार।
बहुत शानदार प्रस्तुति भुमिका बहुत ही रोचक अंगद के पैर हैं हम वाह।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
वाह!!लाजवाब प्रस्तुति!!
ReplyDeleteसरकार का क्या ...
ReplyDeleteगधा आए या घोड़ा
आते-जाते रहते हैं....
अंगद का पैर तो हम लोग हैं
जमें रहते हैं...
चलिए चलें रचनाओं की ओर....लाज़बाब दी आप का हर अंदाज मन को छू जाता है | बेहतरीन प्रस्तुति ��
सादर
तारतम्य में सब कुछ
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/05/2019 की बुलेटिन, " मजबूत इरादों वाली अरुणा शानबाग जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर साप्ताहिक अंक
मुझे यहाँ स्थान देने के लिए अत्यंत आभार आदरणीया