Saturday, May 11, 2019

39.....मदारी जमूरे और बंदर अभी भी साथ निभाते हैं

सादर अभिवादन...
कल मातृ-दिवस है


मेरी माँ की डबडब आँखें
मुझे देखती है यों
जलती फसलें, कटती शाखें
मेरी माँ की किसान आँखें


ध्यान रखिएगा न होने पाए
तकलीफ किसी भी माँ को


चलिए देखें इस सप्ताह क्या है

वही पगडंडियाँ ....

है ये वही पगडंडियाँ .... 
जहाँ वादों का था, इक नया संस्करण, 
हुआ ख्वाबों का, पुनर्आगमण, 
शायद फिर बने, नए भ्रम के समीकरण, 
चलो फिर से करें, नए वादे हम, 
उन्हीं पगडंडियों पर! 

पीछे .....

गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको
चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..

वो दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन
क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे..

अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन”
जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे..

घिनौनी निशानियां .....

कितना बेहतरीन था भूत मेरा 
रहते थे हम सब साथ सदा. 
न कोई अणु बम 
न परमाणु बम. 
न ईर्ष्या न द्वेष 
न  ही मन में कोई रोष. 
न थी कोई टेक्नोलॉजी 
न ही सीमाओं पर फौजी. 
न ये ऊंँची- नीची जातियाँ 
ये तरक्की नहीं, 
ये हैं तरक्की की घिनौनी निशानियांँ. 



ट्रैक्टर : ज़िंदगी की

आगे... पर बौने ...
और औरतें - ट्रैक्टर की पिछले
पहियों जैसी पीछे
पर छोड़ देती हैं पीछे पुरुषों को
जब-जब ट्रैक्टर की पिछली पहियों-सी
फुलती-फूलती, फैलती, फलती हैं
गर्भवती बनकर और गढ़ती हैं
सृष्टि की नई-नई कड़ियाँ
सृष्टि की नई-नई कड़ियाँ ......


जड़ जीवन ....

ठहर जाता है जहां जीवन,
थम जाती है सारी उम्मीदें।
लुटती नजर आती खुशियां,
टूटती उम्मीदें बिखरते सपने।
अपनों को खोकर रोते अपने,
अस्पतालों का ये जड़ जीवन।
संवेदनाओं का यहां अकाल पड़ा,
हरकोई यहां पेशेंट बनके पड़ा।


शीशम रूप तुम्हारा ....

आँधी तूफानों से लड़कर 
हिम्मत कभी न हारा 
कड़ी धूप में तपकर निखरा 
शीशम रूप तुम्हारा 
अजर अमर है इसकी काया 
गुण सारे अनमोल 
मूरख मानव इसे काटकर 
मेट रहा भूगोल 


अब तो जाग जाओ ....

कातर स्वर   
करे धरणि पुकार । 
स्वार्थ वश मनुष्य 
अपनी जड़ें रहा काट।। 
संभालो, बचा लो 
मैं मर रही हूँ आज। 
भविष्य के प्रति हुआ 
निश्चिंत ये इन्सान। 

एक पुरानी कतरन उलूकिस्तान से

आदमी और बंदरों 
के बीच संवाद 
करवाते हैं 
ऐसे कुछ बंदर 
बाड़े से बाहर 
रख लिये जाते हैं 
पहचान के लिये 
कुछ झंडे और डंडे 
उनको मुफ्त में 
दे दिये जाते हैं ।

अब बस
यशोदा ..





10 comments:

  1. "मुखरित मौन" के 39वें अंक के अतिउत्तम (एक से बढ़ कर एक रचनाएँ) संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार आपका ....

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  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार यशोदा जी 🙏🌷

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  3. वाह्ह्ह दी सुंदर सराहनीय संकलन है।
    सभी रचनाएँ बेहद प्रशंसनीय👌

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  4. आभार यशोदा जी 'उलूक' के मदारी जमूरे और बन्दर को जगह देने के लिये।

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  5. वाह बहुत खूबसूरत संकलन।
    मां पर बेहद शानदार पंक्तियाँ मन मोह गई ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  6. बेहतरीन संकलन ।सभी रचनाकारों को बधाई

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  7. सुंदर लिंक्स. मेरी दो रचनाओं को शामिल करने के लिए शुक्रिया दी 🙏 🙏

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  8. बहुत सुंदर साप्ताहिक अंक
    उम्दा रचनाएं

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