Saturday, April 20, 2019

36....अपनी कब्र का पेटेंट 2019 के चुनावों से पहले तुरन्त करा बिल्कुल नया है ये आईडिया

सादर अभिवादन
तकलीफे जब आती है
हर तरफ से आती है
कुछ अकड़ कर आती है
कुछ आते ही जकड़ लेती है
बिलकुल अजगर के माफिक
चलिए अकड़न-जकड़न के फेर में न पड़िए
देखिए इस सप्ताह क्या है....


जियो और ​जीने दो.....

प्राचीन काल में जैन तीर्थंकरों ने अहिंसा को केंद्र में रखकर अपने कर्तव्यों का निर्धारण एवं निर्वाह किया। अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर की 17 अप्रैल को जयन्ती है। भगवान महावीर ने अहिंसा को जैन धर्म का आधार बनाया। उन्होंने तत्कालीन हिन्दू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया और सबको एक समान मानने पर बल दिया ।उन्होंने " जियो और ​जीने दो "के सिद्धान्त पर जोर दिया। सबको एक समान नजर में देखने वाले भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह के साक्षात मूर्ति थें । वे किसी को भी कोई दु:ख नहीं देना चाहते थें।
भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया। उन्होंने यज्ञ के नाम पर होने वाली पशु-पक्षी एवं नर की बाली का विरोध किया । सभी जाती और धर्म के लोगों  को धर्म पालन का अधिकार बतलाया। उन्होंने उस समय जाती-पाति और लिंग भेद को मिटाने के लिए उपदेश दिये।




अजगर - ए - ' आजम '......

फूलकर फैल गया है
फुंफकारता अब।
अजगर - ए - ' आजम '!
.......... ..........
श्श.. श्श... श्श....
सांप सूंघ रहा है
सर्प संप्रदाय को अब!

आप बदलो-जग बदलेगा.....

"हमलोग क्या कर सकते हैं?"
"आप ही लोग तो कर सकते हैं... , अब समय आ गया है कि बुद्धिजीवियों को पुनः राजनीति में आना चाहिए। मतदान करने की प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा हो।"


मां .....

पथ अंधेरे लग रहे मुझको सभी
मां मेरी रहबर रही तू ज्योत सी

ख्वाहिशें खिलती थी तेरी गोद में
रिक्त लेकिन अब है मेरी अंजुरी

तू अथक ही जागती थी रात दिन
ख्वाब मेरे सींचे तूने हर घड़ी


अनुज प्रेरणा ....

कदम बढ़ाकर अब जल्दी - जल्दी
मंजिल अपनी दूर बहुत।
रामपुर है दूर बहुत तो,
लखनपुर भी दूर बहुत।
तेज चाल से चल मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।

पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन ... .....

छूट गया दुःख भेद, हृदय से
 गीत विराग सरस गाया,
खनक उठी अनजानी कोई
कदमों में ताल समाया !

खबर-ए - उलूकिस्तान

अखबार के 
चौथे पन्ने 
यानी 
बस कस्बे 
की खबर 
हो जा 
छ्प जा 
तर जा 

बिना कोई 
गुल छिपाये 
गुल खिलाये 
घर के अन्दर 

मुख्य पृष्ठ में 
छपने का 
भूल जा 
.....
अब बस
यशोदा....














8 comments:

  1. जी यशोदा दी
    प्रणाम।
    यह लेख मेरे मन का एक भाव है, जिज्ञासा है,करुणा है, संवेदना है। आपने इस लेख को अपने ब्लॉग पर प्रमुखता दी है। इससे मुझे अत्यधिक खुशी हुई है। आपको बताना चाहूँगा कि हमारे कुछ मित्रों ने भी इसे पढ़ यह महसूस किया है कि अनावश्यक अन्य प्राणियों की हत्या क्यों की जाए।
    इसके पूर्व गौशाला वाले लेख का परिणाम यह रहा है कि उसका स्थान परिवर्तन किया जा रहा है।

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  2. परंतु मैंने किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिये यह लेख कदापि नहीं लिखा हूँ। बस यह एक करुण भाव है मेरा।

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  3. बेहद खूबसूरत लिंक्स और बेहद खूबसूरत प्रस्तुति ।

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  4. आभार यशोदा जी 'उलूक' की एक पुरानी कतरन को भी आज के सुन्दर मुखरित मौन में जगह देने के लिये।

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  5. बहुत शानदार प्रस्तुति हर रचना लाजवाब पठनीय ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मुखर हुवा फिर मुखरित मौन ।

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  6. सुंदर प्रस्तुति

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  7. वाह! मौन का मुखर नाद!

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  8. यशोदा दी मुखरित मौन में मेरी रचना को साझा करने के लिए सादर आभार। उत्त्साहबर्धन के लिए धन्यवाद।नमस्कार।

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