सादर अभिवादन
साप्ताहिक मुखरित मौन
सच मे अब मौन नहीं रहा
मुखरित होने लगा...
मतदान की प्रक्रिया शुरू...
यानि मत पड़ने शुरू...
समय है अभी ....
वक्त नहीं है उतावलेपन का
शान्त रहिए और .....पढ़िए...
सुबह हो गई है ....
सुबह हो गई है
मैं कह रहा हूँ सुबह हो गई है
मगर क्या हो गया है तुम्हें कि तुम सुनते नहीं हो
अपनी दरिद्र लालटेनें बार-बार उकसाते हुए
मुस्काते चल रहे हो
मानो क्षितिज पर सूरज नहीं तुम जल रहे हो
और प्रकाश लोगों को तुमसे मिल रहा है
जब जागेगा भीतर कोई .....
जीवन एक पाठशाला है, जाने कितनी बार हम ये शब्द सुनते हैं. लेकिन इस पाठशाला का शिक्षक कौन है, बिना शिक्षक के कोई विद्यार्थी चाहे वह कितना ही होशियार हो, नहीं पढ़ सकता. जीवन की इस पाठशाला का शिक्षक हमारी चेतना है, हमारा जमीर. यदि वह स्वयं ही सोया हुआ है तो जीवन लाख पाठ पढ़ाये हमारी समझ में कुछ नहीं आता.
मैं पुकारती हूँ तुम्हें !! माँ
मैं पुकारती हूँ तुम्हे
पर वो पुकारना शुन्य में विलिन हो जाता है
जब भी दर्द में होती हूँ
किसी को न दिखने वाले मेरे आँसू
छलकना चाहते है तेरे आगोश में
पर वो जज्ब नहीं हो पाते तेरे आँचल में
और भटकते रहते है मुझमें ही
तलाशते रहते है एक कोना अंधेरा सा
एक काँधा अपना सा,
चांदनी चौक का गौरी शंकर मंदिर एक ''कॉस्मिक पिलर''
दिल्ली का चांदनी चौक, जो देश के प्रमुख और पुराने बाजारों में से एक तो है ही, वहां की इमारतों, भवनों व पूजा स्थलों का भी अपना समृद्ध इतिहास है। ऐसा ही एक शिव मंदिर, जो गौरी-शंकर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, लाल किले के सामने बाजार की शुरुआत पर दिगंबर जैन लाल मंदिर और गुरुद्वारा शीशगंज के बीच स्थित है। माना जाता है कि तकरीबन 800 साल पुराना यह मंदिर शैव सम्प्रदाय के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को ''कॉस्मिक पिलर'' या पूरे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। इसका निर्माण शिव जी के परम भक्त एक मराठा सैनिक आपा गंगाधर द्वारा करवाया गया था। कहते हैं कि एक युद्ध में उनके प्राणों पर बन आने पर उन्होंने भगवान शिव से अपने प्राणों की रक्षा की विनती की थी। प्रभू की कृपा से जब उनकी जान बच गयी तो पूर्णतया स्वस्थ होने पर उन्होंने 1761 में इस मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के गर्भ गृह में रजत कलश के नीचे भूरे रंग के शिवलिंग के पास ही स्वर्णाभूषणों से सज्जित पूरा शिव परिवार भी स्थापित है। यह देवस्थल शिवजी के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप को समर्पित है।
पत्थर को कभी सूरज भी कोई पिघलाया है ...
वक़्त के खेल-ओ-खिलवाड़ के अक्श हज़ार-हज़ार
कौन कहे, कांटे बिछाए कहां गुल को खिलाया है
शायर क़ोशिश जारी रख, रह वही श्यामल ही बनकर
कब पत्थर को कभी सूरज भी कोई पिघलाया है
खबरें उलूकिस्तान से
कोशिश
करके बहुत
अपने को
रोका जाता है
सब कुछ
ना कह कर
थोड़ा सा
इशारे के
लिये ही तो
कहा जाता है
यही थोड़ा
सा कहना
और बनाना
अब देशद्रोह
हो जाता है
आज्ञा दें
यशोदा...
साप्ताहिक मुखरित मौन
सच मे अब मौन नहीं रहा
मुखरित होने लगा...
मतदान की प्रक्रिया शुरू...
यानि मत पड़ने शुरू...
समय है अभी ....
वक्त नहीं है उतावलेपन का
शान्त रहिए और .....पढ़िए...
सुबह हो गई है ....
सुबह हो गई है
मैं कह रहा हूँ सुबह हो गई है
मगर क्या हो गया है तुम्हें कि तुम सुनते नहीं हो
अपनी दरिद्र लालटेनें बार-बार उकसाते हुए
मुस्काते चल रहे हो
मानो क्षितिज पर सूरज नहीं तुम जल रहे हो
और प्रकाश लोगों को तुमसे मिल रहा है
जब जागेगा भीतर कोई .....
जीवन एक पाठशाला है, जाने कितनी बार हम ये शब्द सुनते हैं. लेकिन इस पाठशाला का शिक्षक कौन है, बिना शिक्षक के कोई विद्यार्थी चाहे वह कितना ही होशियार हो, नहीं पढ़ सकता. जीवन की इस पाठशाला का शिक्षक हमारी चेतना है, हमारा जमीर. यदि वह स्वयं ही सोया हुआ है तो जीवन लाख पाठ पढ़ाये हमारी समझ में कुछ नहीं आता.
मैं पुकारती हूँ तुम्हें !! माँ
मैं पुकारती हूँ तुम्हे
पर वो पुकारना शुन्य में विलिन हो जाता है
जब भी दर्द में होती हूँ
किसी को न दिखने वाले मेरे आँसू
छलकना चाहते है तेरे आगोश में
पर वो जज्ब नहीं हो पाते तेरे आँचल में
और भटकते रहते है मुझमें ही
तलाशते रहते है एक कोना अंधेरा सा
एक काँधा अपना सा,
चांदनी चौक का गौरी शंकर मंदिर एक ''कॉस्मिक पिलर''
दिल्ली का चांदनी चौक, जो देश के प्रमुख और पुराने बाजारों में से एक तो है ही, वहां की इमारतों, भवनों व पूजा स्थलों का भी अपना समृद्ध इतिहास है। ऐसा ही एक शिव मंदिर, जो गौरी-शंकर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, लाल किले के सामने बाजार की शुरुआत पर दिगंबर जैन लाल मंदिर और गुरुद्वारा शीशगंज के बीच स्थित है। माना जाता है कि तकरीबन 800 साल पुराना यह मंदिर शैव सम्प्रदाय के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को ''कॉस्मिक पिलर'' या पूरे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। इसका निर्माण शिव जी के परम भक्त एक मराठा सैनिक आपा गंगाधर द्वारा करवाया गया था। कहते हैं कि एक युद्ध में उनके प्राणों पर बन आने पर उन्होंने भगवान शिव से अपने प्राणों की रक्षा की विनती की थी। प्रभू की कृपा से जब उनकी जान बच गयी तो पूर्णतया स्वस्थ होने पर उन्होंने 1761 में इस मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के गर्भ गृह में रजत कलश के नीचे भूरे रंग के शिवलिंग के पास ही स्वर्णाभूषणों से सज्जित पूरा शिव परिवार भी स्थापित है। यह देवस्थल शिवजी के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप को समर्पित है।
पत्थर को कभी सूरज भी कोई पिघलाया है ...
वक़्त के खेल-ओ-खिलवाड़ के अक्श हज़ार-हज़ार
कौन कहे, कांटे बिछाए कहां गुल को खिलाया है
शायर क़ोशिश जारी रख, रह वही श्यामल ही बनकर
कब पत्थर को कभी सूरज भी कोई पिघलाया है
खबरें उलूकिस्तान से
कोशिश
करके बहुत
अपने को
रोका जाता है
सब कुछ
ना कह कर
थोड़ा सा
इशारे के
लिये ही तो
कहा जाता है
यही थोड़ा
सा कहना
और बनाना
अब देशद्रोह
हो जाता है
आज्ञा दें
यशोदा...
ReplyDeleteसर्व प्रथम रामनवमी पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। यह पर्व हम सभी के आदर्श पुरुषोत्तम श्री राम के जन्मोत्सव का है।
प्रयास हम सभी का होना चाहिए कि हम उनके उस संस्कार को स्वयं में धारण करें, जिसके माध्यम से समाज में समरसता लाने का प्रयास उन्होंने किया। दबे कुचले एवं निम्न जाति के लोगों को गले लगा, उनका जूठन खा सम्मान दिया। अहिल्या का स्पर्श कर समाज को बताया कि किसी के छल के कारण नारी अपवित्र नहीं हो जाती है। यह सबसे बड़ा संदेश उस युग में उन्होंने दिया। आज भी इसकी प्रासंगिकता है।
हर जीवों से प्रेम करें। व्रत उपासना के नाम पर जब आप मांसाहारी से शाकाहारी होते हैं, तब आपके मन में भी कहीं यह भाव होगा ही कि पशु वध उचित नहीं है। क्षुधा शांत करने के लिये हम मनुष्यों के पास और भी भोज्य पदार्थ हैं। मानवता के आवश्यक है कि हम प्रेम की भाषा सीखें। मज़हब तो बस एक यही है। यही धर्म है।
यशोदा दी को इस सुंदर संकलन के लिये प्रणाम।
आभार यशोदा जी आज के मुखरित मौन में देशद्रोही 'उलूक' को जगह देने के लिये।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर साप्ताहिक अंक
ReplyDeleteउम्दा रचनाओं का चयन