सादर अभिवादन...
बीत गई जनवरी भी..
ये फरवरी भी बीतेगी ही
समय कहां रुकता है...
बढ़ता चलता है...आगे
और आगे...हमारी उम्र के समान
चलता रहे कारवाँ मुखरित मौन का
चलिए आगे बढ़ें हम भी......
कंगना के बारे कुछ कन-बतियाँ
कंगना रानाउत ने जिस तरह रानी लक्ष्मी बाई के चरित्र को जीवंत किया है वैसा करने की कोई और अभिनेत्री सोच भी नहीं सकती है. इस फ़िल्म के बाद निश्चित रूप से कंगना एक बेमिसाल अभिनेत्री के रूप में प्रतिष्ठित होगी. एक योद्धा रानी के रूप में कंगना ने कमाल किया है. वह सुन्दर भी बहुत लगी है और जुझारू योद्धा के रूप में भी छा गयी है.
विश्वास के साथ खड़ी है मीना जी
नेह की बुनियाद है ।
अटल खड़ा है हिमालय सा
रोक लेता है हर आवेग को ।
गहरी खामोशी के बाद …,
मन के किसी कोने से
एक आवाज उभरती है….,
ये हिमालय यूं ही खड़ा रहे ।
अडिग…,अटल ….., निश्चल…,
इस कायनात से उस कायनात तक ।।
हरदम नई सौगातें प्रस्तुत करते हैं पुरुषोत्तम जी
हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
आदरणीय बच्चन जी की रचना...
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
जहां - तहां चोरी करते रहते हैं संजय जी
देखिए न, मेरा दिल भी चुरा लिया मेरी तारीफ कर के
उनके ही ब्लॉग से हम भी चुरा लाए हैं
इक दिन फुरसत पायी सोचा खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े वो लम्हे खर्च आऊं !!
खोला बटुआ...लम्हे न थे जाने कहाँ रीत गए !
मैंने तो खर्चे नही जाने कैसे बीत गए !!
फुरसत मिली थी सोचा खुद से ही मिल आऊं !
आईने में देखा जो पहचान ही न पाऊँ !!
आदरणीया सुधा सिंह की रचना ...
पथिक अहो.....
मत व्याकुल हो!!!
डर से न डरो
न आकुल हो।
नव पथ का तुम संधान करो
और ध्येय पर अपने ध्यान धरो ।
आदरणीय सुशील भैय्या से
क्षमा याचना सहित....
चलते-चलते अकस्मात हमें
एक टाईम मशीन मिल गई...
हम चले गए अंदर...कुछ बटन
ऊट-पटांग सा दबा दिए...और..
पहुँच गए सन् 2010 में..उस समय
एक अखबार उलूक टाईम्स भी
इस समय की भाँति.....
बड़ी बेदर्दी से पढ़ा जाता था...
एक कतरन ले आए हैं
आपके लिए....
लगने लगता
है उसे
वो नहीं
खुद सूरज
घूम
रहा है
उसके ही
चारों
ओर ।
बस अब और नहीं
दें आदेश
यशोदा
बीत गई जनवरी भी..
ये फरवरी भी बीतेगी ही
समय कहां रुकता है...
बढ़ता चलता है...आगे
और आगे...हमारी उम्र के समान
चलता रहे कारवाँ मुखरित मौन का
चलिए आगे बढ़ें हम भी......
कंगना के बारे कुछ कन-बतियाँ
कंगना रानाउत ने जिस तरह रानी लक्ष्मी बाई के चरित्र को जीवंत किया है वैसा करने की कोई और अभिनेत्री सोच भी नहीं सकती है. इस फ़िल्म के बाद निश्चित रूप से कंगना एक बेमिसाल अभिनेत्री के रूप में प्रतिष्ठित होगी. एक योद्धा रानी के रूप में कंगना ने कमाल किया है. वह सुन्दर भी बहुत लगी है और जुझारू योद्धा के रूप में भी छा गयी है.
विश्वास के साथ खड़ी है मीना जी
नेह की बुनियाद है ।
अटल खड़ा है हिमालय सा
रोक लेता है हर आवेग को ।
गहरी खामोशी के बाद …,
मन के किसी कोने से
एक आवाज उभरती है….,
ये हिमालय यूं ही खड़ा रहे ।
अडिग…,अटल ….., निश्चल…,
इस कायनात से उस कायनात तक ।।
हरदम नई सौगातें प्रस्तुत करते हैं पुरुषोत्तम जी
हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
आदरणीय बच्चन जी की रचना...
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
जहां - तहां चोरी करते रहते हैं संजय जी
देखिए न, मेरा दिल भी चुरा लिया मेरी तारीफ कर के
उनके ही ब्लॉग से हम भी चुरा लाए हैं
इक दिन फुरसत पायी सोचा खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े वो लम्हे खर्च आऊं !!
खोला बटुआ...लम्हे न थे जाने कहाँ रीत गए !
मैंने तो खर्चे नही जाने कैसे बीत गए !!
फुरसत मिली थी सोचा खुद से ही मिल आऊं !
आईने में देखा जो पहचान ही न पाऊँ !!
आदरणीया सुधा सिंह की रचना ...
पथिक अहो.....
मत व्याकुल हो!!!
डर से न डरो
न आकुल हो।
नव पथ का तुम संधान करो
और ध्येय पर अपने ध्यान धरो ।
आदरणीय सुशील भैय्या से
क्षमा याचना सहित....
चलते-चलते अकस्मात हमें
एक टाईम मशीन मिल गई...
हम चले गए अंदर...कुछ बटन
ऊट-पटांग सा दबा दिए...और..
पहुँच गए सन् 2010 में..उस समय
एक अखबार उलूक टाईम्स भी
इस समय की भाँति.....
बड़ी बेदर्दी से पढ़ा जाता था...
एक कतरन ले आए हैं
आपके लिए....
लगने लगता
है उसे
वो नहीं
खुद सूरज
घूम
रहा है
उसके ही
चारों
ओर ।
बस अब और नहीं
दें आदेश
यशोदा
सुप्रभात
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुती
बेहतरीन अंक
उम्दा रचनाएं..
बच्चन जी रचना संकलित करने के लिए आभार ..........सादर
सुप्रभात ! सूर्योदय की लालिमा सी मन में ऊर्जा संचारित करती मनभावन प्रस्तुति ! मेरी रचना को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए सादर आभार !!
ReplyDeleteलाजवाब मुखरित मौन...उम्दा लिंको से सजा...।
ReplyDeleteवाह! अद्भुत प्रस्तुति !!! नया रंग, नयी कूची!!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्षमा याचना किसलिये? कूड़े से कुछ उठा कर लाने के लिये क्या? हा हा। आभारी है 'उलूक' यशोदा जी आज के सुन्दर मुखरित मौन में जगह देने के लिये।
ReplyDeleteबेहतरीन संयोजन
ReplyDeleteसाधुवाद