एक अँक न दे पाने का अफसोस सालता रहेगा.
न जाने कब तक...इन उत्सवों ने मौका ही नहीं दिया
न जाने क्यों पाँच लिंकों का आनन्द जारी रहा...जबकि
दो चर्चाकारों ने त्रिदिवसीय व्रत का पारण बुध को किया
शुभकामनाएँ उनको...
छ्ठ पर्व के कुछ चुनिंदा चित्र...... हेमन्त दास
छ्ठ पूजा की हार्दिक शुभकामना!
बिहार के छठ उत्सव को पवित्र धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है और पवित्रता, शुद्धता, स्वच्छता और संयम के मामले में चरम अनुपालन के लिए जाना जाता है। अहिंसा और समावेश वास्तविक अर्थ में प्रदर्शित होता है और यही कारण है कि लोग इस सप्ताह के दौरान अपनी जाति और धर्म को भूल जाते हैं। यहां हम इस पर्व के कुछ ताजा चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आप इस त्यौहार के वास्तविक वातावरण का अनुभव कर सकें-
आस्था निजी भावना... विभा दीदी
रूढ़िवादी:- एक उम्र होने के बाद महिलाएँ सिला हुआ ब्लाउज पेटीकोट नहीं पहनती थी... तर्क के आगे उनकी सोच तब नहीं थी...
सिले कपड़े को अशुद्ध मानते थे। कारण बस यह है कि पहले के समय में सिले कपड़े नहीं होते थे...।
"तलवार उतना ही भाँजो ,जितना से दूसरे की नाक ना कटे"
मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ - डॉ. वर्षा सिंह
किस तरह उजड़ी हुई सी भूमि पर
रख सकेंगे उत्सवों वाले दिए
मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए
मिथ्या यह जीवन..... अनुराधा चौहान
मिथ्या यह जीवन
मिथ्या इसकी माया
जिसको अब तक
कोई समझ नहीं पाया
मिथ्या है यह काया
जो सबके मन भाया
मौत के सच को
कोई समझ नहीं पाया
व्यर्थ के झगड़ों में
क्यों जीवन को खोते
बुला रहा है कौन....मुदिता
छाँव ममत्व की
देती है सुकून
द्वंदों की धूप में झुलसे
मन को
छुप जाती हूँ
माँ के स्नेहिल आँचल में
सोचते हुए शायद यहीं है
यहीं कहीं है
जो बुला रहा है मुझको
देने सुकून
तभी होती है सरगोशी सी
कानों में मेरे "चली आओ ".....
आज के लिए बस
मिलते हैं अगले शनिवार को
यशोदा
न जाने कब तक...इन उत्सवों ने मौका ही नहीं दिया
न जाने क्यों पाँच लिंकों का आनन्द जारी रहा...जबकि
दो चर्चाकारों ने त्रिदिवसीय व्रत का पारण बुध को किया
शुभकामनाएँ उनको...
छ्ठ पर्व के कुछ चुनिंदा चित्र...... हेमन्त दास
छ्ठ पूजा की हार्दिक शुभकामना!
बिहार के छठ उत्सव को पवित्र धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है और पवित्रता, शुद्धता, स्वच्छता और संयम के मामले में चरम अनुपालन के लिए जाना जाता है। अहिंसा और समावेश वास्तविक अर्थ में प्रदर्शित होता है और यही कारण है कि लोग इस सप्ताह के दौरान अपनी जाति और धर्म को भूल जाते हैं। यहां हम इस पर्व के कुछ ताजा चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आप इस त्यौहार के वास्तविक वातावरण का अनुभव कर सकें-
आस्था निजी भावना... विभा दीदी
रूढ़िवादी:- एक उम्र होने के बाद महिलाएँ सिला हुआ ब्लाउज पेटीकोट नहीं पहनती थी... तर्क के आगे उनकी सोच तब नहीं थी...
सिले कपड़े को अशुद्ध मानते थे। कारण बस यह है कि पहले के समय में सिले कपड़े नहीं होते थे...।
"तलवार उतना ही भाँजो ,जितना से दूसरे की नाक ना कटे"
मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ - डॉ. वर्षा सिंह
किस तरह उजड़ी हुई सी भूमि पर
रख सकेंगे उत्सवों वाले दिए
मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए
मिथ्या यह जीवन..... अनुराधा चौहान
मिथ्या यह जीवन
मिथ्या इसकी माया
जिसको अब तक
कोई समझ नहीं पाया
मिथ्या है यह काया
जो सबके मन भाया
मौत के सच को
कोई समझ नहीं पाया
व्यर्थ के झगड़ों में
क्यों जीवन को खोते
बुला रहा है कौन....मुदिता
छाँव ममत्व की
देती है सुकून
द्वंदों की धूप में झुलसे
मन को
छुप जाती हूँ
माँ के स्नेहिल आँचल में
सोचते हुए शायद यहीं है
यहीं कहीं है
जो बुला रहा है मुझको
देने सुकून
तभी होती है सरगोशी सी
कानों में मेरे "चली आओ ".....
आज के लिए बस
मिलते हैं अगले शनिवार को
यशोदा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteशुभ प्रभात बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार यशोदा जी
ReplyDeleteसुंदर अंक
ReplyDeleteसुंदर अंक विविधता समेटे सराह नीय संकलन।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत सुंदर संकलन,आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए
ReplyDeleteआपके द्वारा किये गए संकलन सदैव पठनीय होते हैं।
ReplyDeleteमेरी पोस्ट को भी शामिल किया, यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है।
हार्दिक आभार 🙏
जी गद-गद बा
ReplyDeleteहार्दिक आभार छोटी बहना
बिहारी धमाका ब्लॉग के पोस्ट "छ्ठ पर्व के कुछ चुनिंदा चित्र: शामिल करने हेतु आपका हृदयतल से आभार. आपका स्नेह और समर्थन हमें प्राप्त होता रहे. पुन: आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति 👌
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