Saturday, November 3, 2018

13.....महज इक्तेफाक था

सादर अभिवादन.....
एक अरसे के बाद फिर हम

जब हम...तब तुम....अभिलाषा (अभि)
जब हम घर का आख़िरी दिया बुझा दें,
जब हम भीतर आकर
किवाड़ की सांकल चढ़ा दें,
जब हम इन पाँवों पर
होंठों की लकीर सजा दें,
जब हम बदन से लिबास की
दूरी बढ़ा दें,


इक्तेफाक...डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
कैसे समझ लूं, मिलना तुमसे
महज इक्तेफाक था
इतने बडे जहाँ में
एक छत के नीचे
तेरा मेरा साथ होना
महज इक्तेफाक था
हजारों की भीड में
टकरा जाना


ज्योति जीवन की..अभिलाषा चौहान
अभी भी जल रही
आश-ज्योति
प्रदीप्त जिजीविषा
प्रबल होती
प्राण- ज्योति
अनवरत, निरंतर।


वो आकर्षण :)...संजय भास्कर
कॉलेज को छोड़े करीब 
नौ साल बीत गये !
मगर आज उसे जब नौ साल बाद 
देखा तो 
देखता ही रह गया !
वो आकर्षण जिसे देख मैं 
हमेशा उसकी और
खिचा चला जाता था !
आज वो पहले से भी ज्यादा 
खूबसूरत लग रही थी 

आज बस
मिलते हैं फिर
दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएँ
यशोदा









3 comments:

  1. दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर अंक।

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  2. उत्तम चयन, सुंदर संकलन

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  3. बहुत ही सुन्दर संकलन सभी चयनित रचनाकारों को बधाई मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद

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