Saturday, August 11, 2018

पहला अंक....छुट-पुट

अभिव्यक्ति और संवाद की पहली विधा गद्य है।
साधारणतया मनुष्य के छंद रहित बोलने पढ़ने की साधारण 
व्यवहार की भाषा को गद्य कहा जाता है।
पर ऐसा कहना गद्यकार की सृजनात्मक गुण की अवहेलना होगी।
सुगठित शब्द और सटीक भाव संप्रेषण के द्वारा की गयी विशिष्ट छंदविहीन अभिव्यक्ति  जो व्यवस्थित और स्पष्ट हो 
उसे गद्य कहते है। हमारे इस ब्लॉग का उद्देश्य गद्य 
विधाओं में लिखे रचनाओं का साप्ताहिक संयोजन करना है।

आशा है आप सभी को हमारा यह प्रयास पसंद आयेगा। 
मौन को मुखर करती,अभिव्यक्ति की नयी परिभाषा गढ़ती
 चलिए आज की कुछ चुनिंदा रचनाएँ पढ़ते है-


प्रथम चरण....

पट्टे के रंग के जादू में किसलिये फंसना चाह रहा है बता कहीं दिखा कोई उल्लू जो रंगीन पट्टा पहन कर किसी गुलिस्ताँ को उजाड़ने जा रहा है
रोचक जबरदस्त रोचक


आदरणीय विश्वमोहन जी की अभिव्यक्ति
आलोचना की संस्कृति

विज्ञान में दो विपरीत ध्रुवों में आकर्षण होता है, दोनों चिपक जाते हैं. साहित्य में विपरीत ध्रुवों में प्रबल विकर्षण होता है. चिपकने की तो दूर, देखने से भी परहेज़ . यहीं विज्ञान और साहित्य में मौलिक अंतर है. राजनीति साहित्य की सहेली भले बन जाये, लेकिन विज्ञान पर उसका रंग नहीं चढ़ पाता.

★★★★★★

एक भूमिहार ब्राह्मण रमेश सिंह भला भूख से कैसे मर सकता है...? 
आदरणीय अरुण साथी जी

रमेश मर गया। वजह भूख है या गरीबी या समाज। तय करिये। पर देखिये समाज को। रमेश के शवदाह पे गए लोग गंगा किनारे जम के मिठाई उड़ाई होगी। उसे शर्म न आई होगी। और हाँ रमेश के श्राद्ध पे भी ब्रह्मभोज होगा। हो सकता उसका एक छोटा घर भी बिक जाए.. इससे क्या। समाज को तो भोज खाना है नहीं तो समाज जीने देगा। एक पत्तल भात नै जुटलो। समाज को इससे शर्म नहीं आती की एक गरीब का वह परवरिश न कर सका!

★★★★★

प्रकृति, विभाजन में विश्वास नहीं रखती!
आदरणीया प्रीति अज्ञात जी
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जो देना जानता है, वह न तो अपने गुण कभी गिनाता है और न ही श्रेय लेने का प्रयास करता है। सब कुछ उसे स्वतः मिलता है। प्रकृति विभाजन में विश्वास नहीं रखती। अच्छाई स्वयं अपनी पहचान बनाती है और सद्कर्मों को गिनाये जाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। सूरज की रोशनी ने हम में जीवन भरा, हमने बिन मांगे उसे सरताज बना दिया। चाँद की शीतलता को प्रेम से जोड़ हमने उसे पवित्र प्रेम के सर्वोच्च शिखर पर बिठा दिया। हवाओं के आगे सर झुकाया और ऋतुओं के गुणगान किये। देश-प्रदेश, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं को उनके गुणधर्मों के आधार पर विभाजित कर संवाद हेतु सुविधाजनक मार्ग बनाया।

★★★★★
आदरणीय शशि जी की क़लम से
न तेरा घर, न मेरा घर


    सच तो यह है कि एक सच्चा फकीर  लौकिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करता, आज के तमाम उपदेशकों की तरह। फकीर बाबा का मिसाल ब्लॉग पर मैं इसलिए दे रहा हूं कि मैं स्वयं भी उनका अनुसरण करना चाहता हूं, क्यों कि मैं इस स्थिति में हूं कि यदि कोई कार्य यहां के प्रतिष्ठित जनों या  जनप्रतिनिधि से कह दूं, तो वे इंकार तो नहीं ही करेंगे, इतना तो सम्मान मेरा करते हैं, अनेक ऐसे सामर्थ्यवान लोग । अतः  हम यदि समाजसेवा के क्षेत्र में हैं, पत्रकार हैं, चिंतक हैं, लेखक हैं , समाज सुधारक हैं, उपदेशक है और संत हैं, तो अपने त्याग को इतना बल दें कि स्वयं ही समर्थ जन कहें कि मांगों क्या चाहिए। 

★★★★★

और चलते-चलते
आदरणीय गगन शर्मा जी की लेखनी से
ऊं हूँ ! यह करना नामुमकिन है !
- गगन शर्मा
हमारा शरीर एक अजूबा है। चाहे सहनशक्ति हो, तेजी हो या फिर बल-प्रयोग इससे इंसान ने अनेक हैरतंगेज कारनामो को अंजाम दिया है। कइयों ने तो ऐसे-ऐसे करतब किए, दिखाएं हैं जिन्हें देख आम आदमी दांतो तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाता है। पर विश्वास कीजिए, आकाश से ले कर सागर की गहराई तक नाप लेने वाला हमारा वही शरीर कुछ ऐसे साधारण से काम, जो देखने-सुनने में भी बहुत आसान लगते हैं उन्हें नहीं कर पाता ! कोशिश कर देखिए यदि संभव हो सके तो .........!
चलिए एक छोटी सी माचिस की तीली को ही तोड़ने की कोशिश करते हैं ! एक तीली अपने किसी भी हाथ की बीच वाली उंगली के पीछे की ओर नाखून के पास  रखें, फिर उस पर अपनी पहली और तीसरी उंगलियां रख, कोशिश करें तोड़ने की....!
तो आइए न योगा करें.......

अन्त में हरियाली अमावस की शुभकामनाएँ
-श्वेता


15 comments:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन संकलन
    सादर

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  2. बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर ब्लॉग है। पहली बार इस पर आया हूँ,अतः सभी को प्रणाम। मेरे विचारों का स्थान देने के लिये हृदय से धन्यवाद।

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  4. बेहतरीन संकलन व प्रस्तुतिकरण। वंदनीय प्रयास
    चयनित रचनाकारों को बधाई

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  5. सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

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  6. वाह!!बेहतरीन संकलन ...सभी रचनाएँ बहु उम्दा ।

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  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति । चयनित रचनाकारों को बधाई।

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  8. नही, अभिव्यक्ति और संवाद की पहली विधा कविता है। जन्म लेते ही बालक पहले रोता है, हंसता है, बाल किलकारियां करता है, फिर शब्दों का उच्चारण करना सीखता है - सब कुछ पद्यात्मक लहजे में कविता की छंदमयी सरस शैली में..... और उसकी व्यंजना यात्रा की परिपक्व परिणति है- गद्य!
    इसीलिए हमारे शास्त्रों ने गद्य को काव्य का निकष कहा है। जब भावों की सघन प्रगाढ़ता वैचारिकता का बौद्धिक निकष गढ़ लेती है तो वह निर्बंध संप्रेषणा निबंध के आकार में सामने आती है, चाहे वह व्यक्तिव्यंजक हो या ललित! जिसकी काव्यात्मक कला जितनी प्रखर उसका निबंध लेखन उतना विलक्षण! विद्यानिवास मिश्र ने अपने एक निबंध में इस पर बखूबी प्रकाश डाला है। और सच कहें तो हमें भी इस बात की सुखद अनुभूति है कि बड़े बड़े कवियों यथा महादेवी, जयशंकर प्रसाद, दिनकर आदि के निबंध ने हमे उनकी कविताओं से कम आकर्षित नही किया है। आप जरा अरुण कमल का गोलमेज पढ़कर तो देख लें।
    बात जो भी हो मेरे मन की मुराद 'मुखरित मौन' ने मुखरित कर दी। यशोदा दी और श्वेताजी आपको सादर नमन, प्रणाम और अभिनंदन। देर आये, दुरुस्त आये।आपने इस ब्लॉग को शुरू कर मुझ पर बड़ा उपकार किया कि अब आप मुझे स्तरीय लेख उपलब्ध कराएगी।
    श्वेताजी, आपसे आशा है कि अपने स्वाभाविक लय में लेखों के लालित्य के अवलोकन का अनुपम अवसर लेखों के स्तर से बिना कोई समझौता किये परोसती रहेंगी।
    आभार! बधाई!! और शुभकामनाएं!!!

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  9. बेहतरीन प्रयास..बधाई!!
    पर पहली विधा गद्य..बच्चों का म् म् माँ..द्..द् लयात्मक बोल है। बहुत धन्यवाद श्रेणीगत रचनाओं को पढ़वाने के लिए।
    आभार।

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  10. मुखरित मौन के पहले अंक की बधाई। आभार श्वेता जी 'उलूक' के कुछ को भी गद्य और पद्य के बीच में जगह देने के लिये।

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  11. मुखरित मौन की प्रस्तुति पर चर्चा कारों और पाठको और चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई प्रस्तुतियां अभी पढ नही पाई पढूंगी जरूर।

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  12. अच्छा संकलन ...
    एक नई शुरुआत की शुभकामनायें ... मौन यूँ ही मुखरित होता रहे ... आमीन ...

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  13. मुखरित मौन का यह प्रयास बहुत पसंद आया ! फुर्सत पाते ही हर आलेख को पढ़ना होगा ! हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी इस अभिनव ब्लॉग से परिचित कराने के लिए ! इस ब्लॉग की सफलता के लिए मेरी अनंत अशेष शुभकामनाएं स्वीकार करें आप सभी ! सत्य शिव एवं सुन्दर शुभारम्भ ! बधाई बहुत बहुत !

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  14. प्रिय श्वेता -- ब्लॉग मंच पर मैंने देखा गद्य विधा बहुत उपेक्षित है | लेख लिखें तो कई बार पाठकों को तरसता है | सब कविता लेखन को लालायित दीखते हैं| पर गद्य के ही कोई विषय विस्तार पाता है | मैंने कई बार चाहा लिख दूं-- पर शायद समय पर याद ना रहने की वजह से लिख नहीं पाई -- कि पांच लिंकों में कभी कभी गद्य विशेषांक भी दिया करें | ये ब्लॉग पहले ही दिन देख लिया था पर लिखने के लिए नहीं आ पाई सो देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | मेरी अनंत शुभकामनायें इस नई शुरुआत के लिए | पर ध्यान रहे लिंक बोझिल ना होने पाए | इस ब्लॉग की सफलता की कामना करते हुए मेरी हार्दिक बधाई |

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