सादर अभिवादन
जनवरी की दूसरी प्रस्तुति
हो सकता है आज प्रकाशित रचना
जनवरी की दूसरी प्रस्तुति
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लाज़िमी है ...ये साप्ताहिक अंक है
सोमवार से बननी शुरू होती है
चलिए चलें.....
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सोमवार से बननी शुरू होती है
चलिए चलें.....
अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
दर्दे दिल की अजब कहानी है
होंठों पर मुस्कां आँखों में पानी है
जिनकी ख़्वाहिश में गुमगश्ता हुये
उस राजा की कोई और रानी है
मेरा अंतर्मन
मुझसे प्रश्न करता है -
आख़िर कैसे कोई भूल जाता है
सदियों का नाता
पल भर में
उसके लिए
जो कभी अपना नहीं था
न कभी होगा।
जानिए क्यूँ दिल कि वहशत दरमियां में आ गयी
बस यूँ ही हम को बहकना भी था बहकाना भी था
इक महकता-सा वो लम्हा था कि जैसे इक ख्याल
इक ज़माने तक उसी लम्हे को तड़पना भी था
शहर में जब प्रेम का अकाल पड़ा था
और भाषा में रह नहीं गया था
उत्साह का जल
तुम मुझे मिलीं
ओस में भीगी हुई
दूब की तरह
दूब में मंगल की
सूचना की तरह
कभी मिले थे दो दिल
बने एक-दूजे का आसरा
मिलकर दोनों साथ चले
जीवन की मुश्किल में
एक-दूजे के साथ खड़े
धीरे-धीरे परिवार बना
चलते-चलते एक और रचना
उलूक के दरबार से
उलूक के दरबार से
वकालत
करने वो कहीं
भी नहीं जाते थे
हैट टाई लौंग कोट
रोज पहन कर
बाजार में चक्कर
लगाते चले जाते थे
बोलने
में तूफान
मेल भी साथ
साथ दौड़ाते थे
लकडी़ की छड़ी
भी अपने हाथ
में लेके आते थे
-*-*-*-*-
आज्ञा दें
यशोदा
यशोदा
बहुत बढ़ियाँ संकलन
ReplyDeleteसुन्दर मुखरित मौन में वाचाल वकील साहब को जगह देने के लिये आभार यशोदा जी। फिर से याद दिला गयी आप बहुत पुराने एक तूफानी आदमी की।
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह भरा आभार ।
ReplyDeleteमुखरित मौन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी रचनाकारों को बधाई सब रचनाऐं बेहतरीन।
वाह !.......बेहतरीन अंक
ReplyDeleteउम्दा रचनाए ..
आभार .....जी पढवाने के लिए
तुम मुझे मिलीं -पंकज चतुर्वेदी जी रचना सम्मिलित करने के लिए आभार...सहृदय
बेहतरीन रचनाएं सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी
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