Sunday, June 24, 2018

रुको ! जरा ठहरो।...पूजा पूजा

रुको ! जरा ठहरो।
मत डालो खलल मेरी नींदों में
अभी ही तो मैंने सपनों के बीज बोए हैं
अभी ही तो ख्वाबों के अंकुर फूटे हैं
उम्मीदों की नर्म गीली मिट्टी पर
अभी ही तो हसरतों की कलियां गुनगुनाई हैं
तितलियाँ खुशियों को अभी उड़ने तो दो
रंगत उपवन की निखर जाने दो
मत डालो खलल मेरी नींदों में
अभी ही तो मैंने सपनों के बीज बोए हैं
महकने को आतुर है गुलशन मेरे ख्वाबों का
बहारों को अपना सौरभ छलकाने तो दो
मेरे सपनों ने अभी ही तो ली है अंगड़ाई
कुछ पल उन्हें थोड़ा बहक जाने तो दो
मत डालो खलल मेरी नींदों में
अभी ही तो मैंने सपनों के बीज बोए हैं
© पूजा

10 comments:

  1. सपने पूरे होते हैं लगन से संकल्प से ...
    सपनों की परवाज़ लाजवाब है ... सुंदर रचना ...

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  2. वाह सुंदर बहकते स्वप्नों के अंकुर

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  3. सतत प्रवाह अंकुरण ...👌👌👌👌👌

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. कुनमुनाते सपनों की सुंदर दास्ताँ !!!!!

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  6. वाह!बहुत खूब !

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  7. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आपातकाल की याद में ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  8. बहुत सुंदर रचना

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  9. मत डालो खलल मेरी नींदों में
    अभी ही तो मैंने सपनों के बीज बोए हैं
    अभी ही तो ख्वाबों के अंकुर फूटे हैं
    उम्मीदों की नर्म गीली मिट्टी पर....वाह

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