Monday, June 7, 2021

702..प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

बार बार उड़ने की कोशिश

गिरती और संभलती थी

कांटों की परवाह बिना वो

गुल गुलाब सी खिलती थी

सूर्य रश्मि से तेज लिए वो

चंदा सी थी दमक रही

सरिता प्यारी कलरव करते

झरने चढ़ ज्यों गिरि पे जाती

शीतल मनहर दिव्य वायु सी

बदली बन नभ में उड़ जाती

कभी सींचती प्राण ओज वो

बिजली दुर्गा भी बन जाती

करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे

कितने अगणित रूप दिखाती

प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती

- रामकुमार भ्रमर

6 comments:

  1. Replies
    1. आभार दीदी
      भूल न जाए कोई
      इसीलिए एकाध रचना पोस्ट कर देती हूँ
      सादर नमन

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  2. सभी सुरक्षित, स्वस्थ व प्रसन्न रहें

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    Replies
    1. आभार भैय्या जी
      सादर

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  3. बहुत सुंदर रचना, यशोदा दी।

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  4. करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे

    कितने अगणित रूप दिखाती

    प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

    प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती..नारी की महत्ता व्यक्त करती सुंदर रचना,आपके इस श्रमसाध्य कार्य हेतु बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय दीदी ।

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