सादर अभिवादन
कल प्रकृति दिवस था , कोई बात नहीं
प्रकृति दिवस तो रोज मना सकते है
ये नई कि आज एक पौधा लगाए और
उसकी याद अगले प्रकृति दिस मे आए
आज की रचनाएं...
आज विश्व प्रकृति दिवस है,
प्रकृति है तो हम हैं ,
प्रकृति की गोद में ही हम
फलते फूलते हैं जीते हैं खेलते हैं सीखते हैं
विकास करते हैं इस लिए
अपनी मां जननी सरीखी इस
प्रकृति के लिए सदा हम कुछ करते रहें
जिंदगी नही, जिंदगी का भरम, जी रहा आज का आदमी
जिंदगी की ख्वाइश में जिंदगी, खो रहा आज का आदमी
सुबह सबेरे उठके तडके, करने लगता जुगाड दो रोटी का
खुशी की तलाश में, खुद से दूर हो रहा आज का आदमी
दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय,
होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..
बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल,
यूकेलिप्टिस तेल लें, सूंघें डाल रुमाल..
अजवाइन को पीसिये, गाढ़ा लेप लगाय,
चर्म रोग सब दूर हो, तन कंचन बन जाय..
अजवाइन को पीस लें, नीबू संग मिलाय,
फोड़ा-फुंसी दूर हों, सभी बला टल जाय..
अजवाइन-गुड़ खाइए, तभी बने कुछ काम,
पित्त रोग में लाभ हो, पायेंगे आराम..
वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लॉन भी
मगर इस दरीचे से पूछना वो दरख़्त अनार का क्या हुआ
मिरे साथ जुगनू है हम-सफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चराग़ कोई चराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ
मुझे ऑनलाइन देख तुम खुश होती हो
स्टेटस पे मुझे तुम जोहती हो
जो जोड़े हमें 'नेट' वो डोर है
तेरे अंदर बैठा एक चोर हैं
यह सब उसी चोर का खेल है
कहीं सच उजागर न हो जाए
उसी डर से खिली यह बेल है
सादर
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