Saturday, July 24, 2021

709 ..."लगता है गंगा मैया अपने सामने ही इनसे गाँठ भी जुड़वा लेंगी."

सादर अभिवादन
विश्वमोहन कुमार

जोकहा (बेतिया), ज़िला - पश्चिमी चंपारण , बिहार, वर्तमान निवास दिल्ली
पृष्ठदृष्य -151,827, कुल पोस्ट -188, फॉलोव्हर - 123

बेहद विलक्षण, बहुत विद्वान, कुशाग्र बुद्धि, बहुमुखी प्रतिभा के धनी अति विनम्र स्वभाव के साथ संवेदनशील बहुआयामी व्यक्तित्व विश्वमोहन जी स्वयं को कवि या साहित्यकार नहीं मानते हैं। 
 वर्तमान में प्रसार भारती के सिविल निर्माण स्कंद में अधिशासी अभियंता विश्वमोहन जी की 
रचनाएँ...


इंसानियत! चिचियाती चीत्कार।
लहू में सने सलोने
सपने स्याह !
उजड़ी कोखों की कातर कराह,
इंशा अल्लाह!
तेरी इस रहनुमाई को धिक्कार!

बनते कृष्ण, ये द्वापर के,
राम बने, त्रेता के।
साहित्य कला इतिहास साधक,
याचक अनुचर नेता के।
गांधीगिरी! अब गांधीबाजी!
बस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?


थी अर्थनीति जब भरमाई,
ली कौटिल्य ने अंगड़ाई ।

पञ्च शतक सह सहस्त्र एक
अब रहे खेत, लकुटिया टेक।

जहां राजनीति का कीड़ा है,
बस वहीं भयंकर पीड़ा है ।


पर घर की आबरू,
भाई, सब पर भारी.
या लूटना ललना को,
राम-रहीम की लाचारी!

मेरा क्रांतिकारी कद!
कसम से कसमसाया.
पर पुचकार के पूछा,
तुम कौन! किसने बुलाया?


नवनिहारिका नशा नयन मद,
प्रेम अगन सघन वन दहके .
सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.

क्रीड़ा-कंदर्प कण-कण-प्रतिकम्पन,
उदान  अपान  समान .
व्यान परम पुरुष प्रकृति भाषे,
ब्रह्म योग  चिर प्राण .


बगल का ओहार उठाकर एक नन्ही कली बहुरिया के शिविर में समाई और कुंवरजी के साथ अपनी बाल क्रीडा में मशगुल हो गयी. दोनों का खेल और आपसी संवाद बहुरिया का मन मोहे जा रहा था. उस मासूम बालिका को खोजते खोजते उसकी माँ भी इस बीच पहुँच गयी. लिहाज़ वश मुंह पर घूँघट ताने माँ ने बहुरिया से माफ़ी मांगी. बहुरिया ने उसे बिठाया, बताशा खिलाया और पानी पिलाया. "लगता है गंगा मैया अपने सामने ही इनसे गाँठ भी जुड़वा लेंगी."  उस बाल जोड़े की मोहक क्रीड़ा भंगिमा को निहारती पुलकित बहुरिया ने किलकारी मारी.
'इस गरीब के ऐसे भाग कहाँ, मालकिन!'
"गंगा मैया के इस पूरनमासी के परसाद को ऐसे कैसे बिग देंगे. हम जबान देते हैं कि इस जोड़ी को समय आने पर हम बियाह के गाँठ में बाँध देंगे." बहुरिया ने जबान दे दिया.
....
आज बस
कल कौन  अंदाजा लगाइए
सादर

25 comments:

  1. आदरणीय विश्वमोहन जी साहित्यिक के गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखते हैं।
    एक विलक्षण लेखक जो हमारे पूर्वज साहित्यिकारों की विरासत को और समृद्ध कर रहें हैं अपनी परिष्कृत और विशिष्ट शैली से प्रभावित करते और आने वाली पीढियों के लिए अमूल्य धरोहर सँजो रहे।
    यशोदा दी बहुत आभार आपका एक सुंदर संकलन के लिए।
    अंक में विश्वमोहन जी के द्वारा लिखे लेख की कमी लगी।

    प्रणाम
    सादर।

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  2. आज के इस संकलन में विध्वमोहन जी की बेहतरीन रचनाओं से परिचय कराया ।
    साधुवाद

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    1. विश्वमोहन जी *
      क्षमा सहित

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    2. जी, अत्यंत आभार!!! अतिरिक्त स्नेहवश ऐसा कदाचित हो जाता है। :)

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  4. विश्वमोहन भाई की लेखन शैली बहुत ही विलक्षण है। उनके लेखों का बहुत बढ़िया संकलन।

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  5. जी, गुरु पूर्णिमा पर आप समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम। मेरी ब्लॉग यात्रा में मेरी किसी रचना पर जो सबसे पहली टिप्पणी मिली वह यशोदा जी की और दूसरी टिप्पणी पम्मीजी की थी। गूगल प्लस भले ही उन टिप्पणियों को अपने साथ मिटा ले गया किंतु भला उन अमित यादों को वह कहाँ से मिटा पाता जो आज भी हमारे मानस पटल पर जस का तस है। एक कवि या साहित्यकार न मानने के बावजूद आपने किसी साहित्यकार या कवि से हमें कम मान नहीं दिया और आपका यही आशीष और स्नेह हमारी लेखनी में स्याही भरता रहा है। अपनी पुरानी रचनाओं पर आपके स्नेहिल दृष्टिपात को हार्दिक प्रणिपात।
    अत्यंत आभार और सादर प्रणाम। गुरु पूर्णिमा और श्रावण मास के आगमन की आहट की शुभकामनाएँ!!!

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  6. आदरणीय विश्वमोहन जी की दोनो विधाओं गद्य और पद्य में लिखी रचनाएं अपना अटूट छाप छोड़ती हैं,हमे हर रचना कुछ न कुछ नया सिखा जाती है,आपकी वेदों पर आधारित श्रृंखला तो लेखन के क्षेत्र में मील का पत्थर है,जिससे हमारे साथ साथ कई पीढ़ियां लाभान्वित होंगी,आप हमे ऐसे ही अपने लेखन से गौरवान्वित करते रहें,मेरी हार्दिक शुभकामनाएं । आदरणीय यशोदा दीदी का आभार इतना सुंदर संग्रह लाने के लिए।

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    1. सर्व वेद पर लिखा हुआ आलेख नही है
      अनुपम विवेचना है
      और वहा एक शोधप्रबंध भी है
      जब वह ग्रंथ के रूप मे आएगा तो
      विद्यार्थी उसे पढ़कर सका उद्धरण अपने शोध में करेंगे
      आभार
      सादर

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    2. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति आदरणीय दीदी। गुरू पूर्णिमा के दिन मेरे गुरू तुल्य आदरणीय विश्वमोहन जी की रचनाओं पर आधारित ये अंक देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। विश्वमोहन जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय के मोहताज नहीं। विद्वतापूर्ण लेखन के साथ उनका शालीन और गरिमापूर्ण व्यक्तित्व , उनकी विनम्रता से और विशेष हो जाता है। प्रिय श्वेता ने सच कहा वे दिग्गज कवियों की परंपरा को आगे बढ़ाते दिखते हैं। शब्दनगरी में मैने जब उन्हें पहली बार पढ़ा था तो मुझे यही लगा कि वे कोई कॉलेज छात्र हैं जो छायावादी कवियों का अनुशरण कर रहे हैं पर ब्लॉग से जुड़ने के बाद पता चला कि वे सुदक्ष कवि और लेखक हैं। तब से उनकी प्रतिभा का निरंतर विस्तार देख रही हूं। गद्य, पद्य दोनों में वे बेमिसाल हैं।
      नए ब्लॉगर भी उनके प्रेरक उत्साहवर्धन से खूब प्रोत्साहन पाते हैं। इसके अलावामाननीय श्री कांत तलगेरी जी के मूल शोध के सुपाठ्य, सरल अनुवाद के रूप में" वैदिक वांगमय और इतिहास बोध '' लेख श्रृंखला के रूप में अपनी निष्ठा और समर्पण से हिंदी पाठक वर्ग को एक अनमोल थाती सौंपी है। विश्वमोहन जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं इस अवसर विशेष पर। उनकी लेखनी निर्बाध प्रवहमान रहे यही दुआ और कामना करती हूं।🙏🙏

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    3. जी, अत्यंत आभार!!!

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  7. रेणु जी,सच ! बहुत सुंदर और शानदार उद्बोधन विश्वमोहन जी के सम्मान में,आपको और विश्वमोहन जी को मेरी बहुत शुभकामनाएं 🙏🙏💐💐

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    1. शुक्रिया जिज्ञासा जी 🙏🌷🌷💐

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  8. आदरणीय विश्वमोहन जी के उत्कृष्ट लेखन से सजा शानदार मुखरित मौन...।
    सही कहा रेणु जी ने गुरु पूर्णिमा पर गुरु तुल्य आदरणीय विश्वमोहन जी !वाकई बढ़िया संयोग।...
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके अनुपम आशीष का।

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  9. My foray into the blog world is very recent, and that too as a mere reader, therefore am not sure if I am even qualified to comment . Thank you, Yashoda ji for curating this collection.
    Mr Vishwamohan's work straddles the world of poetry and prose with equal ease and myriad of topics range from philosophy, romance, spritualism, , social commentary,
    politics as well as some well researched serious essays. Have found his unapologetic use of the pure Sanskritised Hindi reminiscent of greats of Hindi literature,and also gives solace that the language is still breathing.
    May your ink never dry.
    Best wishes.

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  11. वाह!यशोदा जी ,हृदय से आभार इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए । आदरणीय विश्व मोहन जी की रचनाओं की तो बात ही निराली होती है ।गद्य हो या पद्य दोनो में महारथ हासिल है ।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके सुंदर शब्दों का।

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