सादर अभिवादन
आज की अदाकारा (रचनाकार) शिखा दीदी,
परिचयः सूरज को मोमबत्ती दिखाने जैसा ही है
लंदन मे रहती है , अखबारों में छपती हैं,
खाना बनाना भी जानती हैं
खिलाते भी रहती है...खाना है तो आइए भुक्खड़ घाट
फिलहाल रचनाएँ....
सहायता कीजिये भगवान रहम कीजिये हर उपाय कर लिया है.कुछ ब्लॉगरों को ब्लॉगिंग छुडवाने के लिए टंकी पर भी चढ़ाया पर अब उसे भी कोई भाव नहीं देता. तो बेचारे खुद ही उतर आते हैं थोड़ी देर में. माना कि ब्लोगिंग सहज, सरल अभिव्यक्ति का मंच है पर अगर वो हमारे क्षेत्र में घुसपेठ करेंगे तो गुस्सा तो आएगा ना प्रभु !
दुहाई है …दुहाई है…दुहाई है…..
स्वर्ग लोक में से आता शोर सुनकर यमराज के कुछ गणों के भी कान खड़े हो गए .उन्हें उत्पात करने का मौका मिल गया .सोचा चलो बहती गंगा में हमऊँ हाथ धो लें इसी बहाने दो चार पर भड़ास निकाल आयें .
सो उन्होंने आकर सभा में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और सभा बिना किसी हल या नतीजे के ही समाप्त हो गई.
दुहाई है …दुहाई है…दुहाई है…..
स्वर्ग लोक में से आता शोर सुनकर यमराज के कुछ गणों के भी कान खड़े हो गए .उन्हें उत्पात करने का मौका मिल गया .सोचा चलो बहती गंगा में हमऊँ हाथ धो लें इसी बहाने दो चार पर भड़ास निकाल आयें .
सो उन्होंने आकर सभा में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और सभा बिना किसी हल या नतीजे के ही समाप्त हो गई.
शास्त्रों ने मुझे संवारा है.
कविता ने फिर सराहा मुझको,
गीतों ने पनपाया है.
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो,
मुझसे भारत की पहचान।
भारत माँ के माथे की बिंदी,
है हिन्दी मेरा नाम.
पहले जब वो होती थी
एक खुमारी सी छा जाती थी
पुतलियाँ आँखों की स्वत ही
चमक सी जाती थीं
आरक्त हो जाते थे कपोल
और सिहर सी जाती थी साँसें
खड़े वट वृक्ष की तरह
देते छाया कड़ी घूप में
और रहते मौन
नहीं मांगते क़र्ज़ भी
कभी अपने पितृत्व का।
मम्मी ने चेतावनी दी – सोच लो, रह लोगी? नमक नहीं खाते बिलकुल, मीठे पर रहना पड़ेगा. रात को भी सब्जी – वब्जी नहीं मिलेगी. बेसन के परांठे खाने पड़ेंगे चीनी पड़े दही के साथ. सुनकर एक बार को दिल धड़का, बोला – छोड़ न, ऐसा भी क्या है. बेकार का झमेला. फिर आत्मा ने कहा – अरे कुछ नहीं होगा. यूँ भी जन्माष्टमी, शिवरात्री के व्रत नहीं रखते क्या. और दो सही. हो जायेगा और आखिरकार हमें व्रत रखने की इजाजत मिल गई.
आंचलिक बोली में या आम बोलचाल की स्थानीय भाषा में और पाठ्यक्रम की किताबों की भाषा में अंतर होता है और वह अंतर होना ही चाहिए. यही सब देखना शिक्षा बोर्ड, शिक्षाविद और लेखकों का काम भी है और फ़र्ज़ भी. ..यूँ कुछ आंचलिक भाषाओं में गालियाँ भी सहज रूप से प्रयोग की जाती हैं. तो क्या हम उन्हें बच्चों की पाठ्यपुस्तक में शामिल कर लेंगे?
हालाँकि मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि शब्द कोई बुरा नहीं होता, उसे बोलने और समझने वाले की नियत बुरी हो सकती है.
......
2009 से 2021 तक की रचनाएँ हैं
बीच के वर्ष छोड़ दिए...पढ़ने लायक होते हुए भी
चांवल पकाते समय दो-चार दाने ही देखा जाता है
सादर..
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2009 से 2021 तक की रचनाएँ हैं
बीच के वर्ष छोड़ दिए...पढ़ने लायक होते हुए भी
चांवल पकाते समय दो-चार दाने ही देखा जाता है
सादर..
शिखा दी के ब्लॉग पर शायद पहली बार आना हुआ है। पहली पोस्ट इंद्रा लोक में ब्लॉगिंग पढ़ कर ही मैं उनके ब्लॉग की कायल हो गई हूं। इंद्रा लोक में ब्लॉगिंग....वा...व्व....मजा आ गया पढ़ कर। धीरे धीरे बाकी पोस्ट भी पढूंगी।
ReplyDeleteयशोदा दी,इतने अच्छे ब्लॉगर से मिलाने के लिए धन्यवाद।
अभी सारी दोबारा नहीं पढ़ी , सीधे इंद्रलोक पहुंचे और याद आ गयी उस समय की ब्लॉगिंग । तब भी टिप्पणियों के रोना होता था और आज भी । कुछ तो न बदला । लेकिन आज शायद टंकी पर चढ़ना क्या होता था ये नहीं पता । और फिर से अपनी टिप्पणी भी पढ़ी तो सच्ची इंद्र न ढूंढ पाए । 😆😆😆😆 अपने समय का जबदस्त व्यंग्य ।
ReplyDeleteआपने तो भावुक कर दिया आज ... न जाने क्या क्या याद आ गया. गुजरा जमाना. बहुत मेहनत से पूरा ब्लॉग खंगाल कर, खोज कर पोस्ट के लिंक लाई हैं आप :) , मैंने खुद जाकर अपना ही पिछ्ला पढ़ा आज. क्या दिन थे वे भी. बहुत बहुत आभार आपका.
ReplyDeleteहाँ , यह साईट पर हो सकता है कमेंट्स / टिप्पणी करते हुए आपको थोड़ी परेशानी हो, क्योंकि अनावश्यक घुसपेठियों से बचने के लिए मोडरेशन लगाया हुआ है. पर चिंता न कीजिये, मैं वक़्त वक़्त पर देखकर सब टिप्पणियाँ रिलीज कर दूंगी.
एक बार फिर आभार यशोदा जी आपका.
आदरणीय दीदी..
Deleteभुक्खड़ घाट का जिक्र त़ो किया है
पर लिंक नहीं ला पाई..
गुज़ारिश है लिंक दीजिएगा
सादर..
यह लीजिये - http://www.bhukkhadghaat.com/
Deleteआज शिखा जी की रचनाओं से परिचय करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा दीदी,आपके परिश्रम को सादर नमन।
ReplyDeleteअभी रचनाओं पर जाकर उनका आनंद लूँगी, वैसे कुछ पहले पढ़ी हैं वे एक समृद्ध और श्रेष्ठ रचनाकार हैं,मेरी आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
सच में क्या क्या याद दिला गया. मैं तो वैसे भी पोस्ट्स का संपादन करती ब्लॉग पर ही भटक रही हूँ 😁
ReplyDeleteसच्ची बात तो ये है कि अपना खुद का ब्लॉग पढ़ने में भी बहुत आनंद आता है । लगता है अरे ये हमने लिखा था ?
Deleteसुन्दर प्रयोजन!बधाई एवं शुभकामनाएं आप दोनों को!
ReplyDeleteअच्छी रचनाकार से साक्षात्कार। आभार!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन
ReplyDeleteआदरणीय दीदी,शिखा जी को यूं तो बहुत बार पढ़ा है पर अधिक परिचय नहीं था। आज उनके ब्लॉग भ्रमण कर बहुत अच्छा लगा। सुदक्ष बहुरंगी लेखन जिसमेें गद्य शानदार है। आज शामिल सभी लेख संस्मरण लाज़वाब हैं। शिखा जी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आज के मुखरित मौन की स्टार रचनाकार बनने के लिए।मंच का भी आभार एक प्रबुद्ध, विदूषी के अनौपचारिक परिचय के लिए 🙏🙏💐🌷
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आ.यशोदा जी का एक शानदार ब्लॉग से परिचय करवाने हेतु..
ReplyDeleteआ.शिखा जी का लेखन बहुत ही उत्कृष्ट है...।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
वाह गज़ब...इंद्रलोक में ब्लॉगिंग शानदार व्यंग्य।
ReplyDeleteकविताओं में सहज भावप्रवणता पाठकों को जोड़ लेती है।
एक बहुत लाज़वाब अंक।
शिखा दी की रचनाएँ पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका यशोदा दी।
सादर।
सभी को सावन के पावन पर्व ही हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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