जो भी करना हिसाब से करना
बेहिसाब किया हुआ कुछ भला नहीं होता
उसने जिससे बेहिसाब प्रेम किया
वह हिसाब का बड़ा पक्का था
उसने प्रेम के हिसाब में
'बे' की वैल्यू शून्य निकाली।
उसके पास बहुत से खाते थे
और हर खाते का पक्का हिसाब भी
वह एक ही खाते में सब बेहिसाब रखकर
कंगाल हो गया।
जब चुक गईं उसकी सारी बेहिसाब बातें
हिसाबदार बोला आओ अब बात करें।
वह सोच में पड़ गया कि हर चीज़
हिसाब से करनी चाहिए कहने वाले ने
क्या कभी कुछ बेहिसाब न किया होगा।
हर बात में कितना वजन रखना है
कितने ग्राम कहना है
यह कोई बेहिसाबी कभी न कर पाएगा।
एक रोज हिसाबदार ने ज़ोर से कहा
या तो हिसाब में रहो या सोच लो।
उस दिन पहली बार उसने हिसाब से दुआ माँगी
जो प्यार न हो तो हम कभी न मिलें।
बेहिसाबी कभी भली नहीं होती
प्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो।
उसे फिर भी हिसाब न आया
वो हाशिये पर ही रहा
मुस्कुराता रहा
हिसाब के पक्के लोगों को हिसाब में उलझते देखकर।
इन्दु सिंह
वाह
ReplyDeleteकुछ लोग प्रेम भी हिसाब लगाकर करते हैं, बेहतरीन लिखा है इंदु सिंह जी ने
ReplyDeleteबेहिसाबी कभी भली नहीं होती
ReplyDeleteप्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो।
उसे फिर भी हिसाब न आया
वो हाशिये पर ही रहा
मुस्कुराता रहा
हिसाब के पक्के लोगों को हिसाब में उलझते देखकर।
बेहिसाब प्रेम के लोग कोई कीमत ही नहीं रखते हैं सामने वाला अगर बेहिसाब प्रेम करता है किसी से तो उसे मूर्ख समझ बैठते हैं!
बेहतरीन रचना!
प्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो..बहुत खूब ।
ReplyDeleteसुंदर सराहनीय रचना 👌💐
वैसे हिसाब का हिसाब रखना एक अच्छी-खासी मशक्कत है
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteक्या बात है। बहुत ही बढ़िया हिसाब ।
ReplyDeleteबेहिसाब का वजन तो पता है पर हिसाब का वजन क्या है अब तक पता नहीं चला।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबेहिसाबी दुनिया में
ReplyDeleteजब लगाते हैं हिसाब
तो कभी भी
नहीं मिलता हिसाब
बेहिसाब प्यार का
कभी भी हिसाब
कर नहीं पाता कोई
या तो रहता है
वो बेहिसाब ही
या फिर "बे" के
हिसाब से
हो जाता है शून्य ।
वैसे आपने इसमें उलझा दिया । बढ़िया अभिव्यक्ति ।
अति सुन्दर रचना
ReplyDeleteVery Nice
ReplyDeleteप्रेम तो नाम ही उसी का है जो बेहिसाब हो, सुंदर सृजन!
ReplyDeleteबेहिसाब की कीमत शून्य ही लगाई गई है आज तक।बहुत ही चिंतन परक रचना,बधाई इन्दु जी 🙏
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