Sunday, January 30, 2022

803 ...बेहिसाब प्रेम

जो भी करना हिसाब से करना
बेहिसाब किया हुआ कुछ भला नहीं होता
उसने जिससे बेहिसाब प्रेम किया
वह हिसाब का बड़ा पक्का था
उसने प्रेम के हिसाब में
'बे' की वैल्यू शून्य निकाली।
उसके पास बहुत से खाते थे
और हर खाते का पक्का हिसाब भी
वह एक ही खाते में सब बेहिसाब रखकर
कंगाल हो गया।
जब चुक गईं उसकी सारी बेहिसाब बातें
हिसाबदार बोला आओ अब बात करें।
वह सोच में पड़ गया कि हर चीज़
हिसाब से करनी चाहिए कहने वाले ने
क्या कभी कुछ बेहिसाब न किया होगा।
हर बात में कितना वजन रखना है
कितने ग्राम कहना है
यह कोई बेहिसाबी कभी न कर पाएगा।
एक रोज हिसाबदार ने ज़ोर से कहा
या तो हिसाब में रहो या सोच लो।
उस दिन पहली बार उसने हिसाब से दुआ माँगी
जो प्यार न हो तो हम कभी न मिलें।
बेहिसाबी कभी भली नहीं होती
प्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो।
उसे फिर भी हिसाब न आया
वो हाशिये पर ही रहा
मुस्कुराता रहा
हिसाब के पक्के लोगों को हिसाब में उलझते देखकर।
इन्दु सिंह


16 comments:

  1. कुछ लोग प्रेम भी हिसाब लगाकर करते हैं, बेहतरीन लिखा है इंदु सिंह जी ने

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  2. बेहिसाबी कभी भली नहीं होती
    प्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो।
    उसे फिर भी हिसाब न आया
    वो हाशिये पर ही रहा
    मुस्कुराता रहा
    हिसाब के पक्के लोगों को हिसाब में उलझते देखकर।
    बेहिसाब प्रेम के लोग कोई कीमत ही नहीं रखते हैं सामने वाला अगर बेहिसाब प्रेम करता है किसी से तो उसे मूर्ख समझ बैठते हैं!
    बेहतरीन रचना!

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  3. प्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो..बहुत खूब ।
    सुंदर सराहनीय रचना 👌💐

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  4. वैसे हिसाब का हिसाब रखना एक अच्छी-खासी मशक्कत है

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  5. क्या बात है। बहुत ही बढ़िया हिसाब ।

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  6. बेहिसाब का वजन तो पता है पर हिसाब का वजन क्या है अब तक पता नहीं चला।

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  7. बेहिसाबी दुनिया में
    जब लगाते हैं हिसाब
    तो कभी भी
    नहीं मिलता हिसाब
    बेहिसाब प्यार का
    कभी भी हिसाब
    कर नहीं पाता कोई
    या तो रहता है
    वो बेहिसाब ही
    या फिर "बे" के
    हिसाब से
    हो जाता है शून्य ।

    वैसे आपने इसमें उलझा दिया । बढ़िया अभिव्यक्ति ।

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  8. अति सुन्दर रचना

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  9. प्रेम तो नाम ही उसी का है जो बेहिसाब हो, सुंदर सृजन!

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  10. बेहिसाब की कीमत शून्य ही लगाई गई है आज तक।बहुत ही चिंतन परक रचना,बधाई इन्दु जी 🙏

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  11. सब जगह यही चलता है आजकल - रिश्तों में, दोस्ती में, यहां तक कि घरवालों के बीच भी, सब कुछ तौलने लगे हैं लोग। "कितना दिया, कितना लिया?" इस कविता की सबसे कमाल बात ये लगी कि जिस "बेहिसाबी" को लोग कमजोरी समझते हैं, वही असल में इंसान की सबसे बड़ी ताकत होती है। और जो हाशिये पर रहकर भी मुस्कुराता है, वो असली फ्रीडम जीता है, क्योंकि उसे हिसाब में बंधना ही नहीं आता।

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