सादर अभिवादन
अंततः सरकार भी मान गई है
कि अब जनता को
कोरोना के साथ ही
जीना सीखना है
कि अब जनता को
कोरोना के साथ ही
जीना सीखना है
खुले मुख और हाथ पकड़
घूमना अब भयमुक्त नहीं रहा
वो गीत अब अतीत हो गया
घूमना अब भयमुक्त नहीं रहा
वो गीत अब अतीत हो गया
रेड जोन में आ गया
साथी हाथ बढ़ाना..
साथी हाथ बढ़ाना..
बढ़िए ग्रीन जोन की ओर
अब एकला चलो रे
याद करना होगा
और कराना होगा
अब एकला चलो रे
याद करना होगा
और कराना होगा
आज की रचनाएँ देखें..
तुम हो बबूल के पेड़ जैसे
बड़ी समानता है दौनों में
क्या लाभ बबूल से दुनिया को
ना तो छाँव पथिक को दे पाता
ना ही पशुओं का भोजन बन पाता
सड़क चलते राहगीरों को कष्ट ही दे जाता |
ये त्रासदियाँ
क्या प्रलयंकर का कोप है?
यही प्रलय है।
चेत गये तो जियेंगे
नहीं तो मौत की धारा को धारण करने को
कोई शिव तो बैठा होगा कहीं
चलो आह्वान करें -
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे ......।
जानने में रुचि नहीं है क्या करना है क्या कर रहे हैं।
वर्त्तमान परिवेश-परवरिश में आज हो क्या रहा है...
मानो डोर बोम्मलट्टम , गोम्बेयेट्टा अन्य अंगुल्यादेश
जानो डूब-उतरा रहे अंदेशा, आशंका और पसोपेश
चाँद होना चाहिए कि होना चाहिए चकोर
चाहे जो होना शुद्ध होना बचा रहे घघराघोर
बिलकुल उलटा!
फिर भी तुम
लौट गयी
उसी के पास !
कितनी
भोली हो तुम!
माँ, सुन रही हो न......
माँ............!!!
अनगित स्वप्नों की माला,
अविरल मैं बुनती रहती
अध्याय अपनी यादों के,
अपलक मैं गुनती रहती
धैर्य धरे हम से धीरज से,
करें मिलन की आस प्रिये
कहता हदय तुम पास...
..
आज बस
कल किसने देखा
सादर
..
आज बस
कल किसने देखा
सादर
ध्रुव सत्य..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत उम्दा संकलन आज का |
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |
उम्दा संकलन और अत्यंत आभार।
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