आज शरद पूर्णिमा है..
पूरे सोलह कलाओं के साथ..
अमृत वर्षा करेंगे चन्द्रदेव..
आधी रात तक गरबा खेला जाएगा
आँख-मिचौली भी खेली जा सकती है
हमारे पास बातें फालतू नहीं है
चलिए लिंक की ओर...
शरद पूर्णिमा ...
क्या क़यामत ढा रही, है शरद की पूर्णिमा।
गीत उजले गा रही, है शरद की पूर्णिमा।
भेद करती है नहीं धनवान, निर्धन में ज़रा
पास सबके जा रही, है शरद की पूर्णिमा।
एक ठो खेला है, नाम है ''कौबक''
चलिए छोड़िये ! अपुन ने कौन सा इसमें हिस्सा लेना है या कोई आस लगा रखी है ! खेल चल रहा है, अवाम सम्मोहित है ! गरीब देश का मनई लोगन को जबरिया करोड़पति बनाने, देश को खुशहाल बनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है ! अब ये तो समझ के बाहर की बात भी नहीं है कि कौन खुशहाल हो रहा है ! कोई तो हो ही रहा है ना ! अच्छी बात है ! जितने ज्यादा लोग अमीर होंगे, उतने और टी.वी. बिकेंगे ! और ज्यादा लोग उसे देखेंगे ! और ज्यादा विज्ञापन झोंका जाएगा ! और ज्यादा बेकार, प्रयोजनहीन चीजों की बिक्री बढ़ेगी ! बाज़ार की सुरसा रूपी भूख को और ज्यादा खुराक मिलेगी ! पैसा बरसेगा ! एक करोड़, पांच करोड़, सात करोड़................
इस बार की धन राशि है दस करोड़ !!!
मैं जानता हूँ ....
एक दिन मैं गिर पडूँगा,
मेरे घुटने शायद छिल जाएँ तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें साल को,
जहाँ खोने के लिए अब कुछ भी नहीं,
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
इस बार ...
इस बार मैं मिलने आऊँ,
तो ए .सी. बंद कर देना,
खिड़कियाँ खोल देना,
आने देना अन्दर तक
बारिश में भीगी हवाएं.
देखिए उलूक नामा क्या कहता है
समय
के साथ
लिखा लिखाया
हरे से पीला
हो लेता है
किताबें
पुरानी
हो जाती हैं
लिखाई
से
आती महक
उसकी उम्र
बता जाती है
.....
आज तो वाकई बन गई प्रस्तुति
हर बार अधूरी सी बनती थी
सादर...
आधी रात तक गरबा खेला जाएगा
आँख-मिचौली भी खेली जा सकती है
हमारे पास बातें फालतू नहीं है
चलिए लिंक की ओर...
शरद पूर्णिमा ...
क्या क़यामत ढा रही, है शरद की पूर्णिमा।
गीत उजले गा रही, है शरद की पूर्णिमा।
भेद करती है नहीं धनवान, निर्धन में ज़रा
पास सबके जा रही, है शरद की पूर्णिमा।
एक ठो खेला है, नाम है ''कौबक''
चलिए छोड़िये ! अपुन ने कौन सा इसमें हिस्सा लेना है या कोई आस लगा रखी है ! खेल चल रहा है, अवाम सम्मोहित है ! गरीब देश का मनई लोगन को जबरिया करोड़पति बनाने, देश को खुशहाल बनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है ! अब ये तो समझ के बाहर की बात भी नहीं है कि कौन खुशहाल हो रहा है ! कोई तो हो ही रहा है ना ! अच्छी बात है ! जितने ज्यादा लोग अमीर होंगे, उतने और टी.वी. बिकेंगे ! और ज्यादा लोग उसे देखेंगे ! और ज्यादा विज्ञापन झोंका जाएगा ! और ज्यादा बेकार, प्रयोजनहीन चीजों की बिक्री बढ़ेगी ! बाज़ार की सुरसा रूपी भूख को और ज्यादा खुराक मिलेगी ! पैसा बरसेगा ! एक करोड़, पांच करोड़, सात करोड़................
इस बार की धन राशि है दस करोड़ !!!
मैं जानता हूँ ....
एक दिन मैं गिर पडूँगा,
मेरे घुटने शायद छिल जाएँ तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें साल को,
जहाँ खोने के लिए अब कुछ भी नहीं,
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
इस बार ...
इस बार मैं मिलने आऊँ,
तो ए .सी. बंद कर देना,
खिड़कियाँ खोल देना,
आने देना अन्दर तक
बारिश में भीगी हवाएं.
देखिए उलूक नामा क्या कहता है
समय
के साथ
लिखा लिखाया
हरे से पीला
हो लेता है
किताबें
पुरानी
हो जाती हैं
लिखाई
से
आती महक
उसकी उम्र
बता जाती है
.....
आज तो वाकई बन गई प्रस्तुति
हर बार अधूरी सी बनती थी
सादर...
अच्छे लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteसुंदर सधे हुए लिंक्स का चुनाव बहुत दिनों के बाद उलूक नामा दोबारा पढ़ने को मिली इसकी मुझे बहुत खुशी है सभी चुने गए रचनाकारों को बधाई एवं धन्यवाद
ReplyDeleteअधूरा से पूरे होने तक बना रहे ये जज्बा। आभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteशरद ऋतु की पूर्णिमा के चन्द्रमा की रसमयी किरणों में भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर तक पहुंचने की लीला है । चन्द्रमा का सम्बंध मानव के मन से है । सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर विकास तक के पीछे मन की भूमिका है । मन अंधकार की ओर भी ले जाता है तो ज्ञान के बल प्रकाश की ओर ले जाता है । ब्रह्मांड के सबसे बड़े शिक्षक श्रीकृष्ण है । मन की गोपियों (प्रवृत्तियों) के साथ रासलीला कर रहे हैं ।
ReplyDeleteहमें तो यही बताया गया है।
प्रस्तुति एवं लिंक्स सुंदर हैं, प्रणाम।
यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि मेरी पोस्ट को आपने शामिल किया...
ReplyDeleteहार्दिक आभार 🙏
सदा की तरह सुंदर अंक ! मुझे सहभागी बनाने का हार्दिक आभार ! सभी को मंगलकामनाएं
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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