सादर अभिवादन
अट्ठाईसवां दिन
अक्टूबर का...
एक लम्बी सांस लीजिए
बस दो महीने हैं 2021 को
आज का पसंदीदा रचनाएँ
मुखरित मौन में पहली बार
स्वराञ्जली
आज का पसंदीदा रचनाएँ
मुखरित मौन में पहली बार
स्वराञ्जली
नरगिसी आँखों पर
सजती दराज पलकें,
नूर के गोहर पे
किरन सी रंगबाज पलकें,
कहाँ पर थे, कहाँ पर हैं
सड़क पर थे, सड़क पर हैं
हमें रोटी ना,कपड़े ना
मंका भी ना,डगर भर है
सड़क के ढोर देखें हैं
जुगाली पर ज़िंदा भर हैं
प्रातः सूर्य देव चले देशाटन को
हो कर अपने रथ पर सवार
बाल रश्मियाँ बिखरी हैं हर ओर
अम्बर हुआ सुनहरा लाल |
मेरी लहरों पर लिखी,
पंक्तियाँ उदास सही आज,
मेरा होगा कल- मीलों चल,
सागर तक पहुँचकर ही रहूँगी l
चाँद और तारों भरी सुहानी रात है,
स्निग्ध शीतल चाँदनी की
अमृत भरी बरसात है,
वादी के ज़र्रे-ज़र्रे में उतरे
इस आसमानी नूर में
कुछ तो अनोखी बात है,
अच्छा किया
‘उलूक’
तूने
टोपी पहनना
छोड़ कर
गिर जाती
जमीन पर
पीछे कहीं
इतनी ऊँचाई
देखने में
टोपी
पहनाना
शुरु कर
चुका है
जो सबको
...
बस अब देखते हैं कल कौन
सादर
...
बस अब देखते हैं कल कौन
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी ग़ज़ल पलकें को इस ब्लॉग पर शेयर करने के लिए आपका आभार
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteयशोदा जी आपका आभार सहित धन्यवाद मेरी कविता शामिल करने के लिए |उम्दा संकलन आज का |