सादर नमस्कार
दो दिन पहले ही दशहरा बीता
शहर में पठाकों की ध्वनि आने लगी है
ये पठाके बच्चे नहीं पठाका दुकानदार
छुड़ा रहे हैं ताकि बच्चे जिद करें अपने
अपने पालकों से....
आज की रचनाएँ ....
ये पठाके बच्चे नहीं पठाका दुकानदार
छुड़ा रहे हैं ताकि बच्चे जिद करें अपने
अपने पालकों से....
आज की रचनाएँ ....
नेत्रहीनों को हरा रंग --- कैसे समझाएं ..मुक्ता दत्त
जॉन मिल्टन ने भी अपने अंधेपन के बारे में लिखा था कि
जब मैं समझा ये दुनिया रोशनी खो चुकी है और
मेरी आंखें अंधी हो चुकी हैं, फिर भी आधी जिंदगी
और काटनी है; इस अंधेरे, बड़े संसार को बांटनी है.
हमने शब्दों का व्यापार करना चाहा
परंतु शब्द भी खोखले प्रभावरहित थे
हमारा व्यवहार संवेदनारहित
भाव दिशा भूल ज़माने से भटक चुके थे
शुष्क हृदय पर दरारें पड़ चुकी थी
"तुम दोनों बेहद चिंतित दिख रहे हो क्या बात है?"
बेटे-बहू से लावण्या ने पूछा।
"मेरा बहुत खास दोस्त कल भारत जा रहा है माँ..,"
"मैं समझ नहीं पा रही हूँ तो इसमें तुम लोगों के
परेशान होने की क्या बात है?"
"माँ वह हमेशा के लिए भारत जा रहा है..,"
"इस भयावह काल में उसकी भी नौकरी चली गयी..!"
"नहीं, माँ! उसे कम्पनी वाले पदोन्नति देकर भारत भेज रहे हैं..,"
अच्छा क्या है
बुरा क्या है
कुछ अच्छा कभी-कभी अच्छा नहीं
कुछ बुरा कभी-कभी नहीं बुरा
रूहानी राबिते थे
जिस्मानी बंदिशों में
मरासिम वो पुराना था,
अनजान पैरहन में....
क्षणिक हो सकता है
प्रेम ..पर
सम्मान नहीं होता
क्षणिक..वो क्यों
दिखावटी हो सकता है
प्रेम....पर
सम्मान नहीं
.....
बस
सादर
.....
बस
सादर
बेहतरीन..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन
सादर आभार आदरणीय सर शीर्षिक पंक्ति पर अपनी रचना के शब्दों से अत्यंत हर्ष हुआ।स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर संकलन सर।
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचनाओं का संकलन
मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद । सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteWow..
ReplyDelete