Wednesday, May 6, 2020

346..मन में उठी इच्छा को तृप्त करना असम्भव है

सादर अभिवादन
आज का अंक
पता नहीं क्यूँ
मन नहीं हो रहा था कि
प्रकाशित न करें..
रिक्त जाने दें आज का दिन

चलिए रचनाओं की ओर..


बुद्ध कहते हैं...
अतृप्त रहना 
इच्छा का स्वभाव है. 
मानव इस सत्य को 
भूल जाता है... और 
इस असंभव कार्य को 
पूरा करने में अपना 
सारा जीवन लगा देता है. 


एक बार फिर...
वीर सैनिकों के 
रक्तरंजित शव
कंधों ने उतारकर रखें है 
चिताओं पर,
मातृभूमि के लिए
मृत्यु का भोग बने
शहीदों की शहादत पर
तिरंगे में लिपटे शौर्य की
गर्वित गाथाएँ


तुझे जब याद करती हूँ, स्वयं को भूल जाती हूँ।
सदा अपने  स्वरों  में  मैं ,तुझे  ही  गुनगुनाती हूँ।

वो' तेरे प्यार का संगम, अदा वो मुस्कुराने की।
तसव्वुर  में बसाकर  लाज  से नजरें झुकाती हूँ।



नागफ़नी!!! 
सरल नहीं है तुमसे प्यार करना, 
कुपोषित ,बंजर , 
ऊसर जमीन की उत्पन्न तुम 
और तुम्हारी उत्पन्न भी 
खुरदुरी, काँटोभरी। 


हर ओर मन आक्रांत है
चारों दिशाएं रो रही
छाई निशा में मौन है
है कहर हर ओर ढा रही
जीवन को है झुलसा रही
कैसी तूफानी रात है


न जाने कौन सी जगह है
उस पार, जो लुभाती है
मुझे जुगनुओं के
द्वीप की तरह
हर बार,
मेरा जिस्म होना चाहे कोई
विस्मृत, पुरातन मंदिर,
तुम विशालकाय
बरगद बन
पाओ
.....

आज बस इतना ही
कल फिर


3 comments:

  1. बेहतरीन अंक..
    सादर..

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  2. सुंदर रचनाओं का संग्रह।

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  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर. सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर है.
    सादर

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