एक 22-23 साल का नौजवान। साधारण सी दिखने वाली शर्ट, पैरों मे सस्ती सी चप्पल, एक जूते के दुकान में घुसा।
"क्या दिखाऊ भैया?" दुकानदार ने पूछा।
"लेडिज के लिए अच्छी सी चप्पल दिखाना जो अंदर से नरम हो एकदम फूल जैसी। अच्छे कंपनी की दिखाना भैया।"
"कौन सी साइज में दिखाऊ भैया?"
मेरे पास माँ के पैर का नाप नहीं है उसके पैर का छाप लाया हू। उस पर से चप्पल दे सकते है क्या?"
दुकानदार को थोड़ा अजीब लगा। "इसके पहले ऐसे किसी को चप्पल दी नहीं किसी को। आप अपनी माँ को ही ले आइए ना। फिर बदली का झंझट नहीं रहेगा।"
"मेरी माँ गाँव मे रहती है। आज तक उसने कभी चप्पल पहनी नहीं। मेरी पढ़ाई पूरी करने के लिए उसने दिन रात मेहनत की। मेरी छोटी सी फीस भरने के लिए लोगों के घर बर्तन मांजे, खेतों मे काम किया। बस इतना ही कहती थी, बेटा पढ़, बड़ा आदमी बन। एक फैक्टरी मे नौकरी लगी है और आज पगार मिली है। उसमे से आज उसके लिए चप्पल लूँगा और अपने हाथ से पहनाऊंगा। देखूँगा उसके आँखों की खुशी। क्या कहेंगी सुनना है मुझे।" इतना कह के उसने वो कागज आगे बढ़ाया। दुकानदार ने देखा, एक मैला सा कागज जिसपे पैरों के निशान बने थे।
दुकानदार की आंखें भर आयी। उसने पैरों के निशानो को छुआ। खुद उठा और एक अच्छी चप्पल निकाल के लाया। ठीक ठाक अंदाजा लगा के उसने निशान के माप की चप्पल उसे दिखाई। लड़के ने चप्पल पसंद की और पैसे देकर जाने लगा।
"रुको बेटा, ये और एक जोड़ी चप्पल लेकर जाना। माँ से कहना, बेटे ने लायी चप्पल खराब हो गई तो दूसरे बेटे ने दिया जोड़ा पहन ले, पर फिर कभी नंगे पाँव मत घूमना।"
लड़के के चेहरे पर एक खुशी झलक रही थी।" ये कागज मेरे पास छोड़ के जा। तूने मेरे माँ की याद दिला दी आज मुझे।"दुकानदार ने लड़के से कागज लिया और अपने पैसों के ड्रावर मे रखा और उस कागज को नमस्कार किया।
दुकान के नौकर देखते रह गए। "उस कागज को गल्ले मे क्यों रखे सेठ?" एक ने पूछा। "अरे, ये सिर्फ पैरों के निशान नहीं, लक्ष्मी के पाँव का छाप है। जिस माँ ने अच्छे संस्कार दे कर अपने बच्चे को बड़ा किया, उसे जीतने की प्रेरणा दी, उसके पैर अपने भी दुकान मे बरकत ले आयेंगे, इसलिए तो उसको तिजोरी में रखा। "
सादर
सादर
वाह दीदी! कितनी प्यारी और प्रेरक कथा है। सादगी से भरी और सादे लोगों की संस्कार कथा। आँखें नम कर दी। हार्दिक आभार आपका 🙏🙏
ReplyDeleteआभार..
Deleteसादर..
बहुत सुंदर कथा, यशोदा दी।
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