सादर अभिवादन
आज भूल ही गए थे
आज की रचनाएँ देखिए
इश्क़ में अब तकलीफ़
क्यों हो रही है?
तुम्हारी तो जान बसती थी
उस दीवाने में?
दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना
इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा
मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर
ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा
नदी ढूंढ लेती है अपना मार्ग
सुदूर पर्वतों से निकल
हजारों किलोमीटर की यात्रा कर
बिना किसी नक्शे की सहायता के
और पहुँच जाती है
एक दिन सागर तक
....
आज बस
कल भले ही तीस ले लीजिएगा
सादर
....
आज बस
कल भले ही तीस ले लीजिएगा
सादर
आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
ReplyDeleteनवसंवत्सर और चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteछोटा सा अंक पर सुंदर रचनाओं से सजा, आभार !
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