सादर नमस्कार
देश भर में आज
भारतीय थल सेना दिवस मनाया जा रहा है.
इसे लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे देश के दिग्गजों और
सेना के पदाधिकारियों ने थल सेना के
सेना के पदाधिकारियों ने थल सेना के
प्रति अपना सम्मान जाहिर किया है
देखिए आज का पिटारा...
हिमयुग-सी बर्फीली
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
चींटियों की भाँति कतारबद्ध
कमर पर रस्सी बाँधे
एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते
ठिठुरते,कंपकंपाते,
हथेलियों में लिये प्राण
निभाते कर्तव्य
वीर सैनिक।
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
चींटियों की भाँति कतारबद्ध
कमर पर रस्सी बाँधे
एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते
ठिठुरते,कंपकंपाते,
हथेलियों में लिये प्राण
निभाते कर्तव्य
वीर सैनिक।
प्यार करने का कोई वादा न था
पर तेरी नफ़रत का अंदाजा न था
बाद कि जंगों में रावण बच गए
फिर कभी वनवास में राजा न था
सारी महफ़िल खुशबुओं के नाम थी
फूल कोई भी वहाँ ताज़ा न था
मायाबाज़ार ...शान्तनु सान्याल
उम्र भर जिनसे की बातें वो
आख़िर में पत्थर के दीवार निकले,
ज़रा सी चोट से वो घबरा गए,
इस देह से हम कई बार निकले,
किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां,
क्यूँ कर कोई बेवजह हो परेशां,
वो हमारे हिस्से के भंवर थे,
लिहाज़ा हम डूबके उस पार निकले,
क्या फायदा......डॉ. अंशु सिंह
बोझ लगता हो ग़र जिंदगी मे कोई
यादें उसकी सजाने से क्या फ़ायदा
चुभ रहा हो जो बन करके तीखा सुआ
प्यार उस पर लुटाने से क्या फ़ायदा
जिसको पल भर मे बाहर किया झाड़ के
कविता उस पर बनाने से क्या फ़ायदा
उड़ रही पतंग है ...नूपुर
सुबह सुबह सांकल खटका के,
चंचल हवा आ बैठी सिरहाने ।
हाथों में थामे थी चरखी और पतंग,
बातों से छलके थी बावली उमंग !
कि सांस थम सी गयी है ..स्वीट एंजल
सितारों से चुरा लूँ बेचैनियाँ ...
और चाँद से वो भोला पन ...
बादलों की बेखास्ता मुहब्बत ..
और हवाओं की सरगोशियाँ ...
...
आज बस
सादर
आज बस
सादर
व्वाहहह...
ReplyDeleteआज आप से ही जाना
आज भारतीय सेना दिवस है
आभार..
सादर..
बेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित अंक दी।
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ
आदरणीय सर।
सादर।
मुग्ध करता हुआ अंक, विविध रंगों से सज्जा हुआ, वीर शहीदों की शौर्य गाथा के साथ प्रेरणादायक प्रस्तावना - - बहुत ही सुन्दर। मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय दिग्विजय जी - - नमन सह।
ReplyDeleteनमस्ते दिग्विजयजी. शाम की डाक में सैनिकों के नाम ख़त और कुछ कवितायेँ मिलीं.
ReplyDeleteपतंग भी उड़ी. कुछ अलग-सा था ज़ायका. बहुत-बहुत शुक्रिया.