Tuesday, November 17, 2020

542 ..महापर्व छठ की शुरुआत कल से

सादर अभिवादन
कल से नहाय खाय के 
व्रत का प्रारम्भ
व्रत का कार्यक्रम आज से ही शुरु हो गया है

चलिए आज की रचनाएँ देखें



एक ही केंद्र बिंदु से जीवन के असंख्य
जल भँवर उभरे, कुछ किनारे तक
पहुंचे कुछ उभरते ही डूब गए,
कुछ कबीर थे, सांसों के
ताने - बाने बुनते रहे, 
कुछ बुद्ध थे, बहुत जल्दी ज़िन्दगी से ऊब गए,


एक परिंदा कहीं से 
उड़ता हुआ आया,
गाने लगा कोई बेसुरा-सा गीत,
नाचने लगा कोई बेढंगा-सा नाच,
पर मुग्ध हो गई डाली,
झूमने लगी ख़ुशी से.


चाहे जितना लगा लो फेरा
चारों दिशाओं में शाम हो या सवेरा
मिलेंगी शांति तुम्हे आ के वहीं
जहां हो मातृशक्ति का बसेरा
...
अब दो रचनाएँ बंद ब्लॉग से

23 सितम्बर 2015


फूलों   की  महकी  घाटी में 
क्यों  लाशें  बिछाई जाती  हैं
केसर की  क्यारी  में बोलो
क्यों संगीने उगाई जाती हैं 

क्या हुआ आज इस घाटी को
क्यों आग लगी इस  माटी को
क्यों चश्मों से आसूं  झरते हैं
क्यों चूल्हों में सपने जलते हैं



मैनें एक एक करके
इश्क़ के सभी हर्फ़ पढ़ डाले
इश्क़ मेहरबान हुआ मुझ पर
दुआएं कबूल हुईं मेरी
हर्फे- मोहब्बत में
तेरा नाम लिखा पाया...!!
....
अब बस
सादर





3 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति.आभार.

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  2. सुन्दर रचनाओं व प्रस्तुति की आकर्षक रंगों में ढला मुखरित मौन, शाम को अधिक ख़ूबसूरत बना जाता है, मुझे स्थान देने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  3. सुंदर प्रस्तुति, शानदार रचनाएं ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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