सादर अभिवादन
अभी अकबर-बीरबल के चुटकुले पढ़ रही थी
उसमें से एक हाजिर जवाबी की मिसाल
बादशाह के दिमाग में एक बार ये आया कि
बीरबल हरदम अपनी दासियों की बुद्धि की
तारीफ करते रहते हैं.. क्यों न परखा जाए
एक बार अकस्मात वे बीरबल के घर पहुंचे
जैसे ही वे छत पर पहुँचे.....
जैसे ही वे छत पर पहुँचे.....
एक दासी उपर चली आई..अकबर नें तारीफ की
ऊपर का हिस्सा खूब सजा हुआ है...ज़रा
नीचे का हिस्सा देखें....तो उस दासी का
जवाब था ..हुज़ूर, आप उसी रास्ते से आए हैं
आपको ख़बर तलक नहीं हुई..
...
चलिए रचनाओं की ओर...
आज की शुरुआत अर्चना दीदी की रचना से
सोचा नहीं था ...
सितारे भी सो गये चांद के संग में
अंतर की चाँदनी टिमटिमाए अंग में
चलो छुप जाएं हम मूँद के पलकें
देख लें सपनों को जो होंगे कल के
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
खोजते सौन्दर्य नया?
देखते क्या दुनिया को?
रहते क्या, रहते हैं
जैसे मनुष्य सब?
क्या करते कविगण तब?
उसने पेपर पर
और मैंने माँ के हाथ पर
कर दिए दस्तखत
और हमें मिल गयी
अपने अपने हिस्से की दौलत
श्री सत्येंद्र मेहता जी अब अपनी बेटी के सवाल के समक्ष अपनी नज़रें झुकाए मौन और मूर्तिवत .. पूर्णरूपेण निरूत्तर खड़े थे। उनके मन में अब बिटिया को आरक्षण के तहत तथाकथित अधिकारस्वरूप या फिर भिक्षास्वरूप मिली पी. ओ. की नौकरी की ख़ुशी से कहीं ज्यादा मलाल .. अपनी बिटिया से ज्यादा अंक लाने के बावज़ूद जेनरल कैटगरी के कारण उन से ग़रीब श्रीवास्तव जी के बेटा राकेश को पी. ओ. की नौकरी नहीं मिलने की होने लगी थी .. शायद ...
ढ़लते चाँद के संग
पुरसोज़ नज़्म की मानिंद
एक ख़्वाब ने दी है
बड़ी ही नामालूम सी दस्तक
और बस इतना ही पूछा
भर लो मुझको आँखों में
सजा दूँ तेरी यादों का दामन
....
आज बस
कल फिर
सादर
बधाई ५००।
ReplyDeleteआभार..
Deleteसादर नमन..
बहुत सुंदर संकलन,मेरी रचना को स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया ।
ReplyDelete1000 के इन्तजार में
ReplyDeleteसादर नमन आपको !
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" के 500वें इस इंद्रधनुषी अंक में मेरी रचना/विचार को साझा करने के लिए आभार आपका ... 500वें अंक यानि सम संख्या , मानो किसी संगीत-लहरी के सम पर आकर गुजरी हो सरगम .. शायद ... :)
500 वें अंक के लिए हार्दिक बधाई
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