सादर वन्दे
आज मैं दिव्या
कल आने वाली थी तो
दीदी प्रस्तुति लगा रही थी
सो हम बैक टू पेव्हेलियन हो गए
आज हैं पर रचनाएँ पढ़िए...
हर तन अब तो जलता है
मोम -सरीखा गलता है ।
दिन अनुबंधित अंधकार से
सूरज कहाँ निकलता है ।
अब गुलाब भी इस माटी में
कहाँ फूलता-फलता है ।
तो क्यों ना खर्च भी उसी से वसूला जाए
है ना विडंबना ! देश के तकरीबन 21 हजार वीआईपी लोगों की सुरक्षा के लिए करीब 57 हजार जवान तैनात हैं। जबकि आम इंसान जो अपनी गाढ़ी कमाई के एक हिस्से से इन महानुभावों की रक्षा का खर्च उठाता है, उस जैसे साढ़े छह सौ से भी ज्यादा लोगों की देख-भाल की जिम्मेदारी के लिए सिर्फ एक पुलिस वाला उपलब्ध होता है !
कभी स्थिर पलों में, बहुत कुछ कहने
की चाह में, कांपते हैं होंठ, कभी
बहुत कुछ कहने के बाद भी
रह जाती है, दिल की
बात दिल में,
कभी
निगाहों में उभरते हैं महीन बादलों के
कण, कभी डूब जाती हैं पलकें
कुछ इस तरह मैं करूं मोहब्बत
सम्हल के भी तू कभी न सम्हले
बस इतना हो जब उठे जनाजा
हमारा और दम तुम्हारा निकले।
आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।
आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।
आज बस
कल की छोड़ परसों फिर
सादर
कल की छोड़ परसों फिर
सादर
सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, मुझे शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteपरसो आओगी तो
कल का क्या होगा
सादर..
आभार।
ReplyDeleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति करण।
ReplyDeleteरचना को मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
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