सादर अभिवादन
कल का सारा दिन
गहरी नींद में थी देवी जी
और रात में..
कभी किचन में..कभी बॉलकनी में
सुबह 5 बजे सोई अब उसका सबेरा हुआ
खैर ..अब दुरुस्त है..
चलिए आज के चयन की ओर....
आँधी के आमंत्रण का गीत ...जयकृष्ण राय तुषार
षड्यंत्रों से
महायुद्ध से
कभी नहीं हम डरते ,
अतिशय हो
तो महाकाल बन
केवल तांडव करते ,
इसका प्रहरी
चक्र सुदर्शन
परशुराम का बान है |
अज्ञात सफ़र ....रवीन्द्र सिंह यादव
सफ़ेद कबूतर ने
लौटने का निश्चय किया
जहाँ से उड़ा था
उस ओर मुड़ा था
थक-हारकर
साहिल पर आ गिरा था
ज्वार आया तो
सुरक्षित ज़मीन पा गया था
सांसें सामान्य हुईं
प्राची में लालिमा देख
नवजीवन पाकर
जिजीविषा के साथ
उड़ गया ज्ञात परिवेश में
पंछियों का आमद सुकून है .....प्रतिभा कटियार
कल सारा दिन जररररर्र से निकल गया. किया क्या कुछ याद नहीं. लेकिन बेजारी सी रही हर वक्त. इतनी बेजारी कि कुछ लिखने का भी जी न किया. यूँ बेजारी तो रहती ही है इन दिनों हरदम. सारी दुनिया मजदूर दिवस मना रही थी सिवाय मजदूरों के. कहीं से कोई खबर न आई कि आज मजदूरों ने पेटभर खाया और इस तरह दिन सेलिब्रेट किया. कहीं से कोई खबर न आई कि आज मजदूरों का भी सम्मान होना जरूरी है ऐसा कहा सुना गया हो कहीं.
मुखौटा ...कुसुम कोठारी
जो फूलों सी ज़िंदगी जीते कांटे हज़ार लिये बैठे हैं ।
दिल में फ़रेब मुख पे मुस्कान का मुखौटा लिये बैठें हैं।।
खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानों का ताजमहल लिये बैठें हैं। ।
छाँह कहाँ रह गई ....विनोद प्रसाद
मनचाही जाने अब चाह कहाँ रह गई
पहुँचा दे घर तलक,राह कहाँ रह गई
दंतहीन वृक्ष खड़े रास्तों में कतारों से
सुलग रही धूप में छाँह कहाँ रह गई
भूख के लिए विश्व युद्ध ... गुरुमिन्दर सिंह
तीसरे विश्वयुद्ध की,
शुरूआत हो रही है,
समझौतों के बंड़ल,
जेब में डालो,
और करो परीक्षण,
कश्मीर या रवांडा में,
समुन्द्र और एकान्त बचा नहीं,
हो सके तो,
कहीं घनी आबादी में,
बम्ब फोड़कर देख लो,
..
आज बस
शायद कल फिर
सादर
कल का सारा दिन
गहरी नींद में थी देवी जी
और रात में..
कभी किचन में..कभी बॉलकनी में
सुबह 5 बजे सोई अब उसका सबेरा हुआ
खैर ..अब दुरुस्त है..
चलिए आज के चयन की ओर....
आँधी के आमंत्रण का गीत ...जयकृष्ण राय तुषार
षड्यंत्रों से
महायुद्ध से
कभी नहीं हम डरते ,
अतिशय हो
तो महाकाल बन
केवल तांडव करते ,
इसका प्रहरी
चक्र सुदर्शन
परशुराम का बान है |
अज्ञात सफ़र ....रवीन्द्र सिंह यादव
सफ़ेद कबूतर ने
लौटने का निश्चय किया
जहाँ से उड़ा था
उस ओर मुड़ा था
थक-हारकर
साहिल पर आ गिरा था
ज्वार आया तो
सुरक्षित ज़मीन पा गया था
सांसें सामान्य हुईं
प्राची में लालिमा देख
नवजीवन पाकर
जिजीविषा के साथ
उड़ गया ज्ञात परिवेश में
पंछियों का आमद सुकून है .....प्रतिभा कटियार
कल सारा दिन जररररर्र से निकल गया. किया क्या कुछ याद नहीं. लेकिन बेजारी सी रही हर वक्त. इतनी बेजारी कि कुछ लिखने का भी जी न किया. यूँ बेजारी तो रहती ही है इन दिनों हरदम. सारी दुनिया मजदूर दिवस मना रही थी सिवाय मजदूरों के. कहीं से कोई खबर न आई कि आज मजदूरों ने पेटभर खाया और इस तरह दिन सेलिब्रेट किया. कहीं से कोई खबर न आई कि आज मजदूरों का भी सम्मान होना जरूरी है ऐसा कहा सुना गया हो कहीं.
मुखौटा ...कुसुम कोठारी
जो फूलों सी ज़िंदगी जीते कांटे हज़ार लिये बैठे हैं ।
दिल में फ़रेब मुख पे मुस्कान का मुखौटा लिये बैठें हैं।।
खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानों का ताजमहल लिये बैठें हैं। ।
छाँह कहाँ रह गई ....विनोद प्रसाद
मनचाही जाने अब चाह कहाँ रह गई
पहुँचा दे घर तलक,राह कहाँ रह गई
दंतहीन वृक्ष खड़े रास्तों में कतारों से
सुलग रही धूप में छाँह कहाँ रह गई
भूख के लिए विश्व युद्ध ... गुरुमिन्दर सिंह
तीसरे विश्वयुद्ध की,
शुरूआत हो रही है,
समझौतों के बंड़ल,
जेब में डालो,
और करो परीक्षण,
कश्मीर या रवांडा में,
समुन्द्र और एकान्त बचा नहीं,
हो सके तो,
कहीं घनी आबादी में,
बम्ब फोड़कर देख लो,
..
आज बस
शायद कल फिर
सादर
जब दिल करे सोयें परेशानी का सबब ना बने नींद कभी। जब ना आये कुछ गुनगुनाएं कुछ पढ़ें कुछ ऐसा करें जो सामान्यत: ना कर पायें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय अग्रवाल साहब |
ReplyDeleteसुंदर सांध्य दैनिक का अंक।
ReplyDeleteसभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।