Saturday, April 11, 2020

322..घर बैठे हैं बस कोरोना से बचने के लिए

प्रदेश का एक कस्बा
कटघोरा
बिजली नगर कोरबा के नजदीक
सीलबंद हो गया कल
सात मरीज मिले
सभी जमात के थे
सभी को एम्स, रायपुर लाया गया है
.. होगा वही जो मंजूरे ख़ुदा होगा
फैलाने वाले भी उसी के बंदे हैं
चलिए उधर से मुंह फेरें, और रचनाएँ देखें...

झुर्रियाँ ....श्वेता सिन्हा

पीढ़ियों की गाथाएँ
हैं लिपिबद्ध 
धुँधली आँखों से
झरते सपनों को
पोपली उदास घाटियों में समेटे
उम्र की तीलियों का
हिसाब करते
जीवन से लड़ते
थके चेहरों के
खूबसूरत मुखौटे उतार कर
यथार्थ से
परिचय करवाती हैं
झुर्रियाँ।



खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, 
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है 
-अमीर मीनाई

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, 
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता 
-अकबर इलाहाबादी

लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. 
- बशीर बद्र

तू इधर उधर की न बात कर 
ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, 
मुझे रहज़नों से गिला नहीं 
तिरी रहबरी का सवाल है 
-शहाब जाफ़री


अपना लहू बहाते ,सब की सहायता में लगे रहते।
तुम्हारी कुर्बानीयों से उन्नत है, भाल देश का ।
औ सैनिकों, मेरे वीर सैनिकों, 
नमन तुम्हें हम प्रतिपल करते।


कोई कृत्य जहाँ नहीं पहुँचता
न कोई वाणी 
कोई पदार्थ तो क्या ही पहुँचेगा
उस लोक में
 है जहाँ का वह वासी 
आज भी वह मिल रहा है अमोल !



तुम दर्द की कविता लिखों,
'मैं' दर्द को सहता रहूँ,
जन्म से मृत्यु का सफ़र,
तेरे लिए गीत होगा,
अभाव में खोजता रहा,
कहीं कोई आसरा मिलें,


...डॉ. टी.एस.दराल

मोह जब टूटा तो हमने ये जाना ,
कितना कम सामां चाहिए जीने के लिए।

तन पर दो वस्त्र हों और खाने को दो रोटी ,
फिर बस दो कप चाय चाहिए पीने के लिए ।
..
आज बस
शायद कल फिर
सादर

6 comments:

  1. बढ़िया चयन..
    सादर..

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  2. खुदा इन जमातियों को अक्ल दे, बेहतरीन लिंक्स, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

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  3. शुक्रिया आपका, सभी दोस्तों को बधाई

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  5. बहुत शानदार मुखरित मौन ,
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

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  6. सभी रचनाकारों को साधुवाद...

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