Wednesday, April 1, 2020

312..थोड़ी सी मूरखता का अब तुमसे माँगे वरदान

वो बचपन था
बड़ा प्यारा था
चॉकलेट के रेपर में
पत्थर लपेट कर देते थे
अब तो बस याद है...
नासमझ समझदार हो गए हैं न हम

आइए चलें रचनाओं की ओर...

वरदान ..फेसबुक से
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समझदारी का पाठ पढ़
हम अघा गये भगवान
थोड़ी सी मूरखता का
अब तुमसे माँगे वरदान

अदब,कायदे,ढ़ंग,तरतीब
सब झगड़े बुद्धिमानों के
प्रेम,परोपकार,भाईचारा
श्रृंगार कहाये मतिमारों के


सब कुछ भूल रहा था ...एक्सपीरिएंस ऑफ इण्डियन लाईफ

धरती से लेकर अंबर तक,
जिसको अपना मान लिया था।
सच्चाई से मुख मोड़ा था,
दुख की गठरी बाँध लिया था,
थोड़ा-थोड़ा सुख जो पाया,
कोई उसको छीन रहा था।


और भरो टमाटर फ्रिज में ... यूँ होता....तो क्या होता

इन दिनों गली के कुत्तों की बड़ी मौज है। हमारी गली में दर्जन भर से अधिक तो पहले ही थे और हाल ही में कई पिल्लों के जन्म के बाद से रौनक और बढ़ गई है। अब सुबह वाहनों की आवाज की जगह इनकी भौं-भौं ने ले ली है। असल में हमारे घर के कॉर्नर पर खड़े हों तो वह चार पतली सड़कों का केंद्र बिंदु है।


वे आँखें ...गूंगी गुड़िया

वे आँखें प्रश्न कर रही हैं,  
अपने ही निर्णय से,  
पैरों में पड़े ज़िंदगी के छालों से, 
मन में उठती बेचैनी से, 
उस बेचैनी में सिमटी पीड़ा से।


उग आए थे अप्रैल में इतने सारे फूल ..मेरी धरोहर

सिर्फ़ तुम्हारी बदौलत
भर गया था अप्रैल
विराट उजाले से
हो रही थी बरसात
अप्रैल की एक ख़ूबसूरत सुबह में
चाँद के चेहरे पर नहीं थी थकावट
....
अब बस
शायद कल फिर
सादर





6 comments:

  1. व्वाहहहहहह
    बढ़िया
    सादर....

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  2. सभी लोग सुरक्षित और स्वस्थ रहें

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  3. आभारी हूँ दी।
    सादर।

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  4. बेहतरीन रचना संकलन,सभी रचनाएं उत्तम ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार 🙏🙏

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर. मेरी रचना को स्थान देने हेतु सहृदय आभार.
    सादर

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