Wednesday, February 26, 2020

278..अपना घर अपनों से बस आज बचाना है ।

सादर अभिवादन..
मन खिन्न है
सुनती और देखती हूँ
अपने ही अपनों के बैरी बने बैठे हैं।
राजनीति, राजनीति की तरह करिए
देश जलाकर राजनीति करने से 

क्या और किसे फायदा...
हानि तो राष्ट्रीय सम्पति 

की ही होती है....
अपने आहत होते हैं तो दुःख होता है
....
आज की रचनाएँ देखें..


पुरुषोत्तम उवाच... तंग गलियारे

माना, हम सब सह जाएंगे,
दंगों के विष, घूँट-घूँट हम पी जाएंगे,
आगजनी, गोलीबारी,
तन-बदन और सीनों पर, झेल जाएंगे,
लेकिन, मन की तंग गलियारों से,
आग की, उठती लपटें,
धू-धू, उठता धुआँ,
इन साँसों में, कैसे भर पाएंगे?


अनीता उवाच ...बीज रोप दे बंजर में

बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यों कोई होश नहीं खोता,
अंशुमाली-सी ज्योति मन की,  
क्यों पीड़ा पथ में तू बोता।


विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'. ....किनारों पर वापसी

"अरे! नहीं... बिलकुल ज्यादा नहीं है । इतनी पुस्तकें तो यह एक महीने में पढ़ लेती है। विद्यालय से गृहकार्य मिला है, दो पुस्तकों को लेकर समुन्दर के किनारे बैठकर पढ़ें और छुट्टी खत्म होने के बाद कक्षा में पूरे अनुभव को सबसे साझा करें। पुस्तकालय में इंट्री फ्री और पुस्तकें मुफ्त में मिल जाने से हम अभिभावकों को बहुत सुविधा हो जाती है।"
"ग्रेट! काश भारत में भी यह लहर चलती और बचपन को असामयिक नष्ट होने से बचाया जा सकता।" इशिका कुछ करने की योजना सोच रही थी जब वह भारत वापसी करेगी।


कविता रावत कथन ...मतलबी इंसान से पालतू कुत्ता भला होता है

तलवार अपनी म्यान को कभी नहीं काटती है
उपकार की परछाई बहुत लम्बी होती है

एहसान का बोझ सबसे भारी लगता है
मतलबी इंसान से पालतू कुत्ता भला होता है


एक कड़ुआ सच उलूक के पन्ने से

‘उलूक’
उल्लू के पट्ठे
के
लिखे लिखाये
के
चक्कर में
नहीं
पड़ना है

अपना घर
अपनों से

बस

आज
बचाना है ।
...
आज बस
कल फिर
सादर



4 comments:

  1. बहुत अच्छी सांध्य दैनिक मुखरित मौन प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार!

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति। सराहनीय

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  3. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
    श्रम साध्य कार्य के लिए साधुवाद

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